देवानंद सिंह
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का हालिया बयान कि चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैनिकों की वापसी से जुड़ी समस्याएं 75% तक सुलझ गई हैं, महत्वपूर्ण है। यह बयान न केवल द्विपक्षीय संबंधों में एक संभावित सकारात्मक बदलाव का संकेत देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच तनाव के बावजूद संवाद और वार्ता का रास्ता खुला है। विदेश मंत्री जयशंकर के बयान के कुछ घंटों के भीतर ही ब्रिक्स देशों की एनएसए बैठक के लिए रूस गए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की। यी विदेश मंत्री भी हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने अपने चीनी समकक्ष के साथ दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों की जल्द पुनर्बहाली से जुड़े पहलुओं पर बातचीत की। ये सारे प्रयास इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण हैं कि अगले महीने ब्रिक्स देशों की शिखर बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात होने वाली है।
दरअसल, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एक पुराना और जटिल मुद्दा है, जो कई दशकों से चल रहा है। 1962 का युद्ध, डोकलाम और लद्दाख में पिछले दो वर्षों में हुई झड़पें इस विवाद के बड़े उदाहरण हैं। इन घटनाओं ने दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी और भू-राजनीतिक तनाव को बढ़ाया। पिछले वर्ष लद्दाख में हुई झड़प ने स्थिति को और भी जटिल बना दिया, जिससे भारत ने अपनी सैन्य तैयारियों को मजबूत किया और चीन ने अपनी सेना को बढ़ाया।
भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद के चार वर्षों में दोनों पक्षों के बीच बातचीत के दर्जनों दौर हो चुके हैं। लेकिन यह पहला मौका है जब विदेश मंत्री ने इसमें हुई प्रगति को इस तरह सकारात्मक रूप में व्यक्त किया, जिसका एक अच्छा संदेश निकाला जा सकता है, जिसे इस मायने में अहम कहा जा सकता है कि इससे साथ-साथ चल रहे अन्य प्रयासों की भावना भी रेखांकित होती है। ऐसे में, यह महत्वपूर्ण है कि दोनों पक्षों ने शांति बनाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने का प्रयास किया है। विदेश मंत्री का यह बयान दर्शाता है कि बातचीत के जरिए मुद्दों को सुलझाने में कुछ प्रगति हुई है। जब एस जयशंकर कहते हैं कि 75% समस्याएं सुलझ गई हैं, तो इसका अर्थ है कि कुछ प्रमुख मुद्दे, जैसे कि सैन्य तैनाती और सीमांकन पर सहमति बन रही है। हालांकि, यह ध्यान में रखना जरूरी है कि 25% समस्याएं अब भी मौजूद हैं। इसका मतलब है कि दोनों देशों के बीच कुछ मुद्दे अभी भी जटिल और संवेदनशील हैं, जैसे कि क्षेत्रीय दावे, बुनियादी ढांचे का विकास और स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा आदि।
भारत और चीन के रिश्तों में सुधार न केवल इन देशों के लिए, बल्कि पूरे एशिया और विश्व के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और चीन का प्रभावशाली भू-राजनीतिक स्थान इन संबंधों को और अधिक महत्वपूर्ण बनाते हैं। यदि, दोनों देश सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने में सफल होते हैं, तो यह न केवल द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि करेगा, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी बढ़ावा देगा, हालांकि जयशंकर का बयान सकारात्मक संकेत देता है, लेकिन इस प्रक्रिया में निरंतर संवाद और संवाद की आवश्यकता बनी हुई है। द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से ही दोनों पक्ष जटिल मुद्दों का समाधान निकाल सकते हैं। इस संदर्भ में, भारत को अपनी रणनीति को ध्यान में रखते हुए चीन के साथ एक संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा। इस सबके बीच भविष्य में भी कई चुनौतियों से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। चीन की आक्रामकता, उसकी सैन्य तैनाती और रणनीतिक विस्तार की नीतियां भारत के लिए चिंता का विषय हैं। इसके अलावा, भारत को अपनी आंतरिक सुरक्षा और सीमा क्षेत्रों के विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि कोई भी स्थिति पुनः उत्पन्न न हो सके।
फिर भी वर्तमान परिदृश्य में एस जयशंकर का बयान भारत-चीन संबंधों में एक नई आशा की किरण पेश करता है। LAC पर सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया में हुई प्रगति दर्शाती है कि दोनों देश वार्ता और सहयोग के माध्यम से आगे बढ़ सकते हैं। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि भारत अपनी सुरक्षा और क्षेत्रीय हितों की रक्षा करते हुए एक ठोस रणनीति बनाए रखे। यदि, दोनों देश सामंजस्य और समझदारी से आगे बढ़ते हैं, तो न केवल वे अपने संबंधों को सुधार सकते हैं, बल्कि एक स्थायी शांति की दिशा में भी कदम बढ़ा सकते हैं। भारत और चीन के बीच का यह संवाद और समझौता न केवल एशिया के लिए, बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।
भविष्य में, दोनों देशों को एक-दूसरे के साथ संतुलित और सकारात्मक तरीके से आगे बढ़ने की आवश्यकता है।सामान्य रिश्तों के लिए सीमा पर सामान्य स्थिति बहाल होने के साथ ही एक-दूसरे पर भरोसा होना भी जरूरी है। उसके लिए दोनों पक्षों के व्यवहार में पारदर्शिता होनी चाहिए। कुल मिलाकर, रिश्तों की बेहतरी के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है, लेकिन दोनों पक्ष अगर इसकी इच्छा जता रहे हैं तो यह भी अच्छी बात है। जहां चाह होती है, वहां राह निकलना बहुत कठिन नहीं होता है।
No comments:
Post a Comment