Thursday 24 February 2022

कोरोना काल में हेमंत सोरेन सरकार की पूरे देश में खूब तारीफ हुई थी तो बड़ी भूमिका स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता की थी

देवानंद सिंह

राष्ट्र संवाद नजरिया : चिंतन शिविर से झारखंड सरकार चिंतित, स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के तल्ख तेवर ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की उड़ाई नींद…मुख्यमंत्री जी ! झारखंड के निर्माण में भाषाओं को दिया जाएगा सम्मान तो साहित्यकार, कवियों के साथ-साथ बुद्धिजीवियों का मिलेगा समर्थन…. झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने भले ही कोरोना काल के दौरान अच्छा कार्य कर खूब सराहना बटोरी हो, लेकिन भाषाई मुद्दे को लेकर सरकार घिरती हुई नजर आ रही है। बाहरी तौर पर घिरती तो कोई बात नहीं थी, लेकिन झामुमो की सहयोगी पार्टी के रूप में सरकार में शामिल कांग्रेस पार्टी भी भाषाई विवाद में सरकार से स्वयं को अलग-थलग किए हुए है। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा है कि इस मामले में वह इस्तीफा तक दे सकते हैं, लेकिन कतई सरकार का साथ नहीं देंगे। बन्ना गुप्ता का यह बयान अपने-आप में बहुत बड़ा ऐलान है, क्योंकि बन्ना गुप्ता हेमंत सोरेन सरकार के महत्वपूर्ण मंत्रियों में से एक हैं और कोरोना काल में सबसे अधिक महत्वपूर्ण रोल बन्ना गुप्ता का ही रहा था। ऐसे संकट के समय एक स्वास्थ्य मंत्री के रोल को समझा जा सकता था। 



बन्ना गुप्ता ने इस जिम्मेदारी का जिस तरह निर्वहन किया, उससे हेमंत सोरेन सरकार की पूरे देश में खूब तारीफ हुई थी। और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हर कदम का बन्ना गुप्ता ने समर्थन किया था, लेकिन भाषाई विवाद को लेकर जिस तरह बन्ना गुप्ता मुखर नजर आ रहे हैं, उससे सरकार के अंदरूनी संकट को समझा जा सकता है। दरअसल, गिरिडीह के पारसनाथ में चल रहे तीन दिवसीय चिंतन शिविर के दौरान जिस तरह बन्ना गुप्ता ने सरकार का अब तक का सबसे बड़ा हमला बोला है, उससे एक तरह से झारखंड की सियासत में भूचाल आया हुआ है। उन्होंने सीधेतौर पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर हमला बोलते हुए कहा कि वह कांग्रेस के वोट बैंक को कमजोर करने में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि हम गठबंधन सरकार को चला रहे हैं और इस सरकार में हमारी स्थिति ऐसी है, जैसे पुराने गाने की तरह, जब मांझी ही नाव डुबोए तो उसे कौन बचाए जैसी हो गई है। 



उन्होंने कहा कि हम मंत्री बनकर घूम रहे हैं, यह अच्छा लगता है, लेकिन हम मंत्री कैसे बने, कैसे जमशेदपुर जैसे शहर से एक लाख वोट लेकर आ रहे हैं, यह सोचने की जरूरत है। हमें यह तय करना होगा, हमारी विचारधारा व सिद्धांत कभी कमजोर न होने पाए। और राष्ट्रभाषा के साथ कभी समझौता नहीं किया जा सकता है। जिस दिन राष्ट्रभाषा के साथ और मां भारती के साथ समझौता करना पड़ेगा तो मेरे जैसे लोग इस्तीफा देना उचित समझेंगे। उन्होंने समन्वय समिति बनाने पर भी जोर दिया, जिससे सरकार को घेरा जा सके। यह सरकार को स्वास्थ्य मंत्री के रूप में भी और गठबंधन सरकार में शामिल कांग्रेस पार्टी की तरफ से बहुत बड़ा संदेश है, क्योंकि उनका यह भी मानना है कि कांग्रेस न केवल हर वर्ग के साथ रहती है, बल्कि भाषा और साहित्य के मामले ने भी वह हमेशा अपने सहयोगात्मक रुख पर कायम रही है। इसीलिए हेमंत सोरेन सरकार भाषा और साहित्य के खिलाफ कोई भी कदम उठाती है तो इसे न तो समर्थन दिया जा सकता है और न ही बर्दाश्त किया जा सकता है। हेमंत सोरेन सरकार भाषाई विवाद के अलावा कई अन्य मुद्दों को लेकर भी इस तरह घिर गई है कि सरकार पर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। विधि व्यवस्था से लेकर बिजली व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था जैसे मुद्दों पर भी सरकार घिरी हुई है।




झारखंड  कांग्रेस के विधायक इरफान अंसारी बर भोलेपन के लिए जाने जाते हैं इससे संकट की घड़ी में उनका बयान स्वार्थ पूर्ण है कांग्रेस को मजबूत करना हर कांग्रेसियों का कर्तव्य है विधायक इरफान अंसारी ने जिस तरह से बयान दिया है वह कांग्रेस के लिए शुभ संकेत नहीं है आज इसकी निंदा पार्टी के अंदर भी होने लगी है आलाकमान को इस पर विचार कर निर्णय लेने की आवश्यकता है  मॉब लिंचिंग कानून बनने के बाद हजारीबाग में रुपेश पांडे की कथित मॉब लिंचिंग के मामले में सरकार पर सवाल उठ रहे हैं। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन, आंदोलन हुए और हो रहे हैं। इसी बीच झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने भी केंद्रीय गृह मंत्रालय को झारखंड की वर्तमान स्थिति को लेकर एक रिपोर्ट भेजी है। रिपोर्ट में उन्होंने भाषा विवाद, मॉब लिंचिग, नक्सली घटना का जिक्र किया है। उन्होंने कहा है कि इन मुद्दों से विधि व्यवस्था के बिगड़ने की संभावना है। अपनी रिपोर्ट में राज्यपाल ने इस बात का भी जिक्र किया है कि आगामी बजट सत्र और पंचायत चुनाव में उपरोक्त मुद्दों को लेकर

 


विधि-व्यवस्था प्रभावित हो सकती है। भाषाई विवाद के साथ-साथ, नई शराब नीति को लेकर भी सत्ता पक्ष के कई विधायक भी सरकार के खिलाफ हैं। कुछ एक ने तो इस्तीफा भी दे दिया है। वहीं, राज्यपाल रमेश बैस ने जेपीएससी, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा, कार्मिक व वित्त विभाग की तीन महीने की प्रगति रिपोर्ट पर भी असंतोष जाहिर करते हुए प्रदेश के विश्वविद्यालय में रिक्त पड़े पदों पर शीघ्र नियुक्ति करने व सत्र नियमित करने का निर्देश



 दिया है। उन्होंने विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक और प्रशासनिक गतिविधियों की समीक्षा करने के बाद यह निर्देश दिया। कुल मिलाकर, ये सब बातें संकेत दे रही हैं कि प्रदेश की गठबंधन सरकार चारों तरफ से घिरती नजर आ रही है। वैसे में, विकास कार्य प्रभावित होने की संभावना है और यदि कांग्रेस समर्थन वापस लेती है तो सरकार के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। वह भी विपक्ष में खड़ी हो जाएगी, इसीलिए मुख्यमंत्री को अपनी मनमर्जी चलाने के बजाय गठबंधन धर्म का पालन करने की तरफ अधिक ध्यान देना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हेमंत सोरेन सरकार को झारखंड के निर्माण में भाषाओं को सम्मान देना होगा, तभी सरकार को साहित्यकारों, कवियों के साथ-साथ बुद्धिजीवियों का भी समर्थन मिल पाएगा।

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