Thursday, 28 November 2019

हर वर्ग को साधने की कोशिश

देवानंद सिंह
झारखंड विधानसभा के पहले चरण के चुनाव को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं। कल यानि 3० नवंबर को पहले चरण के चुनाव के लिए मतदान होना है। इसीलिए सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपना-अपना घोषणा-पत्र जारी कर दिया है। सभी ने अपने-अपने तरह के लुभावने वादे घोषणा-पत्र में किए हैं। हर पार्टी ने हर वर्ग को साधने की कोशिश की है। पर जनता किसके लुभावने वादों से प्रभावित होती है, इसका पता तो चुनाव परिणाम सामने आने के बाद ही लगेगा, लेकिन वादों की झड़ी लगाने में किसी भी पार्टी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। बीजेपी ने जहां अपने संकल्प-पत्र के माध्यम से यह दर्शाने की कोशिश की है कि उसने अपने शासनकाल के दौरान जो घोषणाएं की थीं, उनमें से अधिकांश योजनाओं को अंजाम तक पहुंचाया गया और आगे भी अगर, राज्य का विकास कोई कर सकता है तो वह बीजेपी ही है। पार्टी ने इस बार हर बीपीएल परिवार को रोजगार देने व पिछड़ों को आबादी के आधार पर महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का वादा भी किया है।

63 पन्नों के संकल्प-पत्र मेंभबीजेपी ने पिछले पांच वर्षों में किए गए कार्यों का लेखा-जोखा भी पेश किया है। साथ ही, किसानों, महिलाओं, आदिवासी-एससी-पिछड़ों, युवाओं और छात्रों के लिए भी कई घोषणाएं की गईं हैं, इसके अलावा कृषि, उद्योग, लघु उद्योग, कौशल विकास, आधारभूत संरचना, शिक्षा, स्वास्थ्य, बाल विकास, सामाजिक कल्याण से लेकर सूचना तकनीक के क्षेत्र में विकास योजनाओं की रूपरेखा भी पेश की है।

उधर, कांग्रेस भी लुभावने वादे करने में पीछे नहीं रही है। उसने कांग्रेस पार्टी द्बारा लोकसभा चुनाव के दौरान किए गए वादों के अनुरूप ही अपना घोषणा-पत्र तैयार किया है, जिसमें विशेष रूप से किसानों पर फोकस किया गया है। पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में किसानों का 2 लाख तक का ण माफ करने के साथ-साथ बेरोजगार युवाओं को भत्ता, सरकारी नौकरी के खाली पदों को छह महीने में भरने, धान खरीद पर किसानों को 25 सौ रूपए देने, लघु वन उपज के लिए कानून बनाने से लेकर पेटोल-डीजल व बिजली के दरों में कमी व रांची, धनबाद और जमशेदपुर में मेटो रेल आदि की सुविधा मुहैया कराने का वादा भी किया है।

वहीं, महिलाओं की लीगल व कानूनी सहायता के लिए वुमन हेल्पलाइन खोलने व महिलाओं के बसों में अकेले सफर करने पर किराया नहीं लगने जैसे वादे भी किए हैं।
झारंखड़ भाजपा की सहयोगी पार्टी रही आजसू ने भी चुनाव के मद्देनजर अपना घोषणा-पत्र जारी कर दिया है, जिसे भाजपा की तर्ज पर संकल्प-पत्र का नाम दिया गया है। यहां बता दें कि आजसू ने अब भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया है और वह अपने दम पर चुनाव मैदान में है। पार्टी ने गांवों को लेकर विशेष जोर दिया है। उसने नारा दिया है- अब की बार गांव की सरकार। वहीं, पार्टी ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने की बात भी कही है, जिस सीमा को बढ़ाकर 73 फीसदी करने का वादा किया गया है। इसके अलावा छात्र हित में स्नातक पास करने के साथ ही प्रत्येक माह उन्हें 21०० रूपए प्रोत्साहन राशि देने का भी भरोसा दिया गया है।

स्थानीय नीति पर भी पार्टी ने अपनी नीति स्पष्ट करते हुए कहा है कि खतियान के आधार पर स्थानीय नीति तय होगी। पार्टी ने घोषणा-पत्र में सीएनटी-एसपीटी एक्ट का पूरी तरह अनुपालन करने का भी भरोसा दिया है। वहीं, झाविमो ने इस चुनाव में आरक्षण का कार्ड खेला है। पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र से एक साथ महिलाओं, पिछड़ों और किसानों को भी साधने का प्रयास किया है। नौकरियों में महिलाओं के लिए 5० फीसदी आरक्षण व राज्य के ओबीसी समुदाय के लोगों को 27 फीसदी आरक्षण देने की बात कही है। इसके अलावा बुजुर्गों के लिए पेंशन योजना बहाल करने, सभी परिवारों को 1० वर्षों के अंदर आवास उपलब्ध कराने और 9० दिनों में सभी परिवारों को राशन कार्ड देने का वादा भी किया गया है। पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार पर भी विशेष फोकस किया है और एक वर्ष के अंदर रिक्त पदों पर शिक्षक बहाली का भी वादा किया है।

मुख्य विपक्षी नेता के रूप में चुनावी मैदान में उतरे झामुमो नेता हेमंत सोरेन ने भी अपना चुनावी घोषणा-पत्र पहले ही जारी कर दिया है। उन्होंने भूमि अधिकार कानून बनाने से लेकर नौकरियों में स्थानीय लोगों को 75 फीसदी आरक्षण देने, महिलाओं को सरकारी नौकरी में 5० फीसदी आरक्षण देने से लेकर बेरोजगार युवकों को बेरोजगारी भत्ता देने, दो साल के अंदर पांच लाख लोगों को रोजगार देने जैसे बड़े-बड़े वादे किए हैं।
चुनाव मैदान में उतरने वाली किसी भी पार्टी के लिए घोषणा-पत्र खास मायने रखता है, इसीलिए पार्टियां इसके माध्यम से हर वर्ग व समाज को साधने की कोशिश करती हैं। बशर्ते, बहुत-सी ऐसी घोषणाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें पूरा नहीं किया जाता है। इसीलिए अक्सर समय-समय पर सरकारें बदलती रहती हैं। पार्टियों व नेताओं का नेचर होता है कि वो वादे ऐसे करें, जिसे जनता उनके पाले में फंस जाए, लेकिन इस दौर की बात करें तो ऐसा नहीं है, किसी भी राज्य व देश की जनता काफी जागरूक हो गई है।

 वह सरकार व पार्टी के वादों के आधार पर नहीं, बल्कि उनके कार्यों के आधार पर उनका आकलन करती है। इसीलिए राजनीतिक पार्टियों के लिए बेहद जरूरी हो जाता है कि वे जनता को बनाने के बजाय अपने वादों पर कार्य करने पर फोकस करें, क्योंकि झूठे वादों की लंबी उम्र नहीं होती है। वादों पर कितना काम किया गया है, उसे देखने और समझने की जहमत आज की जनता आसानी से उठा रही है। इसीलिए झारखंड विधानसभा चुनाव मैदान में उतरी पार्टियों ने अपने-अपने घोषणा-पत्र में जो वादे किए हैं, वह पूरे होंगे, चाहे किसी भी पार्टी की सरकार सत्ता में क्यों न आए।

Wednesday, 27 November 2019

घोषणाओं से जनता को लुभाने की कोशिश

देवानंद सिंह
झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों ने गठबंधन की राजनीतिक सेट करने के बाद अब जनता को लुभाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके लिए पार्टियों ने निश्चय-पत्र की घोषणाएं करने का सिलसिला शुरू कर दिया है। पहले चरण के चुनाव के लिए महज 2 दिन बचे हैं। इसीलिए राजनीतिक पार्टियों की जनता तक पहुंचने की कोशिश तेज हो गई है।

विपक्ष की तरफ से सीएम चेहरे के रूप में चुनावी मैदान में उतरे झामुमो नेता हेमंत सोरेन ने पहले चरण के चुनाव से ठीक पहले कई घोषणाएं कर डाली हैं। उन्होंने 2० पेज के निश्चय-पत्र में वे सभी मुद्दे शामिल किए हैं, जो राज्य के प्रमुख मुद्दे हैं। उन्होंने कहा कि झामुमो का निश्चय-पत्र आने वाले समय में राज्य को नई दिशा देगा। निश्चय-पत्र में मुख्य रूप उन्होंने भूमि अधिकार कानून बनाकर हर भूमिहीन को भूखंड देने का ऐलान किया है। इसके अलावा 25 करोड़ रूपए तक के सरकारी कार्यों की निविदा सिर्फ स्थानीय लोगों को देने की बात भी पत्र में शामिल की गई है। वहीं, स्थानीय रोजगार अधिकार कानून बना कर राज्य के निजी क्षेत्रों में 75 प्रतिशत नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित की करना भी झामुमो की प्राथमिकता में शामिल है। स्थानीय और नियोजन नीति को भी बदला जाएगा और उसे झारखंड वासियों के हितों के अनुरूप बनाया जाएगा। इस मुद्दे पर हेमंत सोरेन ने कहा कि यहां के लोगों की जनभावना के अनुरूप स्थानीय नीति बनाई जाएगी। उन्होंने आगे कहा कि राज्य की मौजूदा स्थानीय नीति झारखंडवासियों की विरोधी है। इस मसले पर उन्होंने बीजेपी सरकार पर लापरवाही बरतने की आरोप भी लगाया, साथ ही महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर बीजेपी को आड़े हाथों भी लिया। उन्होंने कहा कि बीजेपी देश में नए-नए राजनीतिक इतिहास रच रही है, जिसे हमेशा धब्बे के रूप में देखा और याद किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में जो कुछ बीजेपी ने किया, वह लोकतंत्र की हत्या किए जाने जैसा था। इसीलिए देश के साथ-साथ झारखंड की जनता परिवर्तन के मूड में है। सोरेन ने एक सवाल के जबाव में कहा कि किसी भी राज्य की राजधानी प्रदेश के लिए आईना होती है, लेकिन आप रांची की स्थिति देख सकते हो। उन्होंने कहा कि आज रांची में कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजर रहा है कि जब लूट, हत्या, दुष्कर्म व छेड़खानी की घटनाएं नहीं घट रही हैं। यही वजह है कि प्रदेश की जनता बीजेपी से पूरी तरह तस्त्र है।
झामुमो ने निश्चय पत्र में जो अन्य घोषणाएं की हैं, उनमें पलामू, चाईबास व हजारीबाग को उप-राजधानी बनाना, किसानों की कर्जमाफी, खेतीहर मजूदरों को स्वरोजगार के लिए 15 हजार का अनुदान, महिलाओं को सरकारी नौकरी में 5० प्रतिशत आरक्षण, बेरोजगार युवकों के लिए बेरोजगारी भत्ता, सरकार के दो साल के अंदर पांच लाख युवाओं को नौकरी, पांच वर्षों तक उपयोग में नहीं लाए गए अधिग्रहित भूमि रैयतों को वापस करना, आंगनबाड़ी सेविका, सहायिका एवं रपारा शिक्षकों के लिए सेवा शर्तों एवं वेतनमान का निर्धारण करना, पीएचडी तक लड़कियों को मुफत शिक्षा देना, पिछड़े वर्ग को नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण, गरीब सवर्ण छात्रों को मुफत शिक्षा व छात्रवृत्ति, सभी शहीदों के जन्म स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना, तीन साल तक के बच्चों वाली महिलाओं की न्यूनतम पुरूषों की मजदूरी से 15 प्रतिशत अधिक धनराशि देना, गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं को प्रतिमाह चूल्हा खर्च देने, झारखंड आंदोलनकारियों के लिए पेंशन योजना व शहीदों के आश्रितों के लिए कल्याण योजना, शहीदों के परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी में सीधी भर्ती के लिए कानून सहित कई अन्य घोषणाएं शामिल हैं। अभी ये सिर्फ घोषणाएं हैं, लेकिन इन घोषणाओं पर कितना अमल किया जाएगा, यह सत्ता में आने के बाद ही पता चलेगा। वैसे, झामुमो कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी है। इसीलिए झामुमो अगर सत्ता में आ भी जाती है तो निश्चित ही इस चुनौती से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उक्त घोषणाओं को लागू कर पाए। अगर, ऐसा होता भी है तो गठबंधन सरकार में तालमेल बहुत जरूरी होगा। इन स्थितियों में यह देखने वाली बात होगी कि गठबंधन में शामिल पार्टियों द्बारा जारी संयुक्त घोषणा-पत्र में शामिल कितने मुद्दे झामुमो के घोषणा-पत्र से मैच खाते हैं।
अगर, ऐसा होता है तो निश्चित ही झामुमो के लिए अपनी घोषणाएं लागू करना आसान हो जाएगा। अगर, गठबंधन का नेतृत्व हेमंत सोरेन कर रहे हैं तो वह निश्चित ही अपनी घोषणाओं पर बल देंगे। उधर, बीजेपी ने घोषणा-पत्र में शामिल मुद्दों को लेकर झामुमो का घेरा है, उससे भी आश्चर्य नहीं होता है, क्योंकि झामुमो और गठबंधन लगातार सरकार पर नाकामी का ठींकरा फोड़ रहे हैं और प्रदेश से बीजेपी सत्ता का उखाड़ फेंकने का दम भर रहे हैं। लिहाजा, बीजेपी ने भी झामुमो के घोषणा-पत्र को लेकर कटाक्ष करते हुए कहा है कि यह घोषणा-पत्र कांग्रेस के फलॉप आइडिया की नकल है।
इस संबंध में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष लक्षण गिलुवा ने कहा कि झामुमो के घोषणा-पत्र में मुंगेरी लाल के हसीन सपने दिखाए गए हैं। उन्होंने कहा कि 12वीं पास युवाओं को चार लाख रूपए तक का क्रेडिट कार्ड और महज 72 हजार रूपए की घोषणा को पूरा करने में ही राज्य के कुल बजट की आधी राशि खत्म हो जाएगी। इस प्रकार सभी योजनाओं का खर्च जोड़ लिया जाए, तो यह डेढ़-दो लाख करोड़ रूपए से अधिक हो जाएगा। हेमंत को बताना चाहिए कि ये पैसे कहां से आयेंगे ?

Tuesday, 26 November 2019

महाराष्ट्र के घटनाक्रम से लें सबक


 बिशन पपोला
 कई दिनों से चल रहा महाराष्ट्र का सियासी ड्रामा आखिरकार समा’ हो गया है, लेकिन जिस तरह बीजेपी को बैकफुट पर आना पड़ा, वह सबसे अधिक चौंकाने वाला रहा है। जिस प्रकार आनन-फानन में देवेंद्र फडणवीस व अजीत पवार ने क्रमश: सीएम और डिप्टी सीएम पद की शपथ ली थी और उसके बाद शरद पवार ने एनसीपी के सभी विधायकों के स्वयं के ख्ोमे में होने का दम भरा था, उससे लग ही रहा था कि बीजेपी की यह कहानी फ्लोर टेस्ट से पहले ही खत्म हो जाएगी। हुआ भी ऐसा ही। आखिरकार सीएम देवेंद्र फडणवीस व डिप्टी सीएम अजीत पवार को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया। बीजेपी ने जिस जल्दबाजी में शपथ लेने की प्रक्रिया को अंजाम दिया था, उसमें पार्टी की किरकिरी तो हुई ही, उससे ज्यादा किरकिरी पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह की हुई। हर बार उनका प्लान सफल नहीं हुआ, बल्कि कई बार उनका प्लान फेल भी हुआ है, इसीलिए महाराष्ट्र की घटना कोई पहली घटना नहीं है।

 माना तो यही जा रहा था कि देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार को आनन-फानन में शपथ दिलाने के पीछे अमित शाह का दिमाग था। सोशल मीडिया पर चाणक्य ट्रेंड करने लगा था। अमित शाह की तस्वीरों के मीम्स बनने लगे, 'जहां जीतते हैं, वहां सरकार बनाता हूं, जहां नहीं जीतते, वहां डेफिनेटली बनाता हूं, हालांकि 3 दिन के भीतर बाजी पलट गई और मंगलवार दोपहर बाद फडणवीस को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। वैसे, महाराष्ट्र की घटना कोई पहली घटना नहीं है, बल्कि लगभग डेढ़ साल पहले मई 2०18 में कर्नाटक में भी हो चुका है। इस बार फ्लोर टेस्ट से एक दिन पहले देवेंद्र फडणवीस ने इस्तीफा दिया तो पिछली बार बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक में फ्लोर टेस्ट से ऐन पहले विधानसभा में अपने भाषण के दौरान इस्तीफे का ऐलान किया था।
 यहां बता दें कि 222 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में बीजेपी को 1०4 सीटें मिली थीं, जो बहुमत के लिए जरूरी 112 के आंकड़े से 8 सीटें कम थीं। जेडीएस के 37 और कांग्रेस के 78 विधायक जीतकर आए थ्ो, जबकि तीन सीटें अन्य के खाते में गई थीं। बीजेपी को यह भरोसा था कि कांग्रेस और जेडीएस के कुछ विधायकों को अपने पाले में लाकर उनसे इस्तीफा दिलवाकर वह सरकार बना लेगी। सिगल लार्जेस्ट पार्टी होने के नाते राज्यपाल वजुभाई वाला ने बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दे दिया। 17 मई 2०18 को येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ ली। राज्यपाल ने येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का वक्त दिया, लेकिन कांग्रेस और जेडीएस उनके इस फैसले के खिलाफ रात में ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। देर रात तक सुनवाई चली और उसके अगले दिन भी जारी रही। सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा को उसी दिन बहुमत साबित करने का निर्देश दिया। सबकी नजरें विधानसभा पर थी, लेकिन फ्लोर टेस्ट से पहले ही येदियुरप्पा ने विधानसभा में अपने भाषण के दौरान ही इस्तीफे का ऐलान कर दिया। इस वक्त जिस तरह की किरकिरी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की हो रही है, उस वक्त कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला की भी हुई थी।
 उधर, गुजरात में भी बीजेपी को कुछ ऐसे ही घटनाक्रम से गुजरना पड़ा था। साल 2०17 में हुए राज्यसभा चुनाव में गुजरात की तीन सीटों में से दो पर बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी जीतीं थीं, लेकिन तीसरी सीट पर कांग्रेस के अहमद पटेल विजयी हुए। बीजेपी कुछ कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में खींचने में कामयाब हो गई और आखिर तक सस्पेंस बना रहा कि अहमद पटेल और बीजेपी के बलवंत राजपूत में से कौन जीतेगा। बीजेपी अपने प्लान में तकरीबन कामयाब हो चुकी थी, लेकिन एक तकनीकी पेंच ने उसका बना बनाया पूरा खेल बिगाड़ दिया था। असल में, कांग्रेस के दो बागी विधायकों के वोट को लेकर विवाद खड़ा हो गया। दोनों ने अपना वोट डालने के बाद बीजेपी के एक नेता को बैलट दिखा दिया था कि उन्होंने किसको वोट दिया। इस पर कांग्रेस ने हंगामा कर दिया। कांग्रेस ने कहा कि दोनों ने वोट की गोपनीयता का उल्लंघन किया है। कांग्रेस चुनाव आयोग पहुंच गई थी। वोटों की गिनती रुक गई। आधी रात दोनों दलों के नेता चुनाव आयोग पहुंच गए। आखिर में चुनाव आयोग ने दोनों विधायकों के वोट को खारिज कर दिए और अहमद पटेल चुनाव जीत गए।
 उधर, उत्तराखंड में भी ऐसा ही घटनाक्रम सामने आ चुका है, जब 2०16 में बीजेपी को मात खानी पड़ी थी। उस वक्त राज्य में हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस के कुल 35 विधायकों में से नौ विधायकों ने रावत के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया था, जिसके बाद सरकार के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लग गया। बागी विधायकों को मनाने की कोशिशें होती रहीं। इसी बीच राज्यपाल ने केंद्र को रिपोर्ट भेज दी थी कि राज्य में संवैधानिक तंत्र नाकाम हो गया है, ऐसे में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। इसके बाद पीएम नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन लगाने संबंधी सिफारिश तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास भेज दिया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सिफारिश मान ली थी और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया था। कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया था। पार्टी ने हाई कोर्ट में राष्ट्रपति शासन को चुनौती दी। हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन को अवैध ठहरा दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने हरीश रावत सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दिया। आखिरकार हरीश रावत सरकार ने बहुमत साबित कर दिया। कुल वैध 61 मतों में से 33 विधायकों के वोट हरीश रावत सरकार के पक्ष में आए। इस तरह सूबे में हरीश रावत सरकार बहाल हो गई और राष्ट्रपति शासन हट गया।
 महाराष्ट्र का राजनीतिक घटनाक्रम भी जिस तरह से बदलता रहा, उससे कई चीजें सिद्ध हुई हैं। पहला, हर हाल में सत्ता हासिल करना का जूनून और दूसरा राजनीतिक प्रतिदंद्बिता। यह बात आसानी से हजम नहीं होती है कि इन दोनों ही फ्लोर पर बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी। जिस बीजेपी की पूरे देश में चर्चा है और अधिकांश राज्यों में उसकी सरकारें चल रही हैं, ऐसे में इस घटनाक्रम ने उसको तो सबक दिया ही है, बल्कि यह अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए एक ऐसी सीख भी है कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा इतनी भी अधिक नहीं होनी चाहिए कि लोकतांत्रिक हितों को कोई नुकसान पहुंच्ो और स्वयं की किरकिरी भी न हो।

Monday, 25 November 2019

विपक्षी चक्रव्यूह में फंसे रघुवर दास!

देवानंद सिंह
मोदी फैक्टर करेगा काम!
बीजेपी और आजसू का गठबंधन टूटने से झारखंड विधानसभा का चुनाव रोमांचक स्थिति में आ गया है। कुछ दिनों पूर्व तक भाजपा के पक्ष में जा रहे समीकरणों पर इसका काफी असर पड़ने वाला है और अब मुकाबला सीधी फाइट का नजर आने लगा है। पूर्वी विधानसभा जमशेदपुर सीट के लिए मुकाबला पहले से ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है, लेकिन भाजपा आजसू गठबंधन टूटने और मंत्री सरयू राय के निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उक्त सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी से सीएम रघुवर दास की समस्या बढ़ गई है,


 क्योंकि अब मुकाबला पूरी तरह से सीधी टक्कर की हो गई है हालाकि कांग्रेस व जेवीएम इसे त्रिकोणीय बनाने की मशक्कत कर रहे हैं दूसरी तरफ, झामुमो कांग्रेस व राजद महागठबंधन, जो पहले कमजोर दिख रहा था, वह झाविमो के अलग होने से अब मजबूत होता नजर आ रहा है। इस स्थिति में भी मुख्य सत्तारूढ़ दल बीजेपी के लिए ही चुनौती बढ़ने वाली है।
पूर्वी विधानसभा जमश्ोदपुर सीट राज्य की सबसे प्रतिष्ठित सीट है। सीएम रघुवर दास पिछले 25 सालों से इस सीट से जीतते आए हैं। लगातार जीतते रहने से निश्चित ही आत्मविश्वास बढ़ता ही है, ऐसे में रघुवर दास के संबंध में इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन राज्य में बदली सियासी हवा में जीत को साधना सीएम के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि कई तथ्य ऐसे हैं, जिनको लेकर लोगों में सरकार के प्रति विरोधी हवा बन रही है। एक तो सरयू राय के सीएम के खिलाफ चुनाव लड़ने के ऐलान से राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं, दूसरा आजसू से गठबंधन टूटने की वजह से भी बीजेपी के प्रति विरोधी हवा तेजी से गति पकड़ रही है। टिकट बंटवारे में मनमानी और बाहर से आए लोगों को अधिक तब्बजों दिए जाने से भी आरएसएस कैडर राज्य बीजेपी से खफा दिखाई दे रहा है।



दीगार बात है कि बीजेपी के लिए चुनाव के मद्देनजर आरएसएस कैडर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन टिकट बंटवारे में कैडर की अनदेखी किए जाने से स्थिति नियंत्रण से बाहर दिखाई दे रही है। इसीलिए दो स’ाह पहले तक के जो समीकरण थ्ो या सर्वे में यह बात सामने आ रही थी कि बीजेपी लगभग 55 सीटें निकाल लेगी, पर बदले हालातों में अब यह आसान नहीं दिखाई दे रहा है।
चुनावों में फैक्टर की बात की जाए तो तीन महत्वपूर्ण फैक्टर होते हैं, जिसमें पब्लिक फैक्टर बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसके बाद दूसरा महत्वपूर्ण फैक्टर राजनीतिक होता है और तीसरा फैक्टर सत्तारूढ़ सरकार का कामकाज होता है। हालांकि, बीजेपी के मामले में फिलहाल नरेंद्र मोदी तीसरा महत्वपूर्ण फैक्टर है। तीनों ही फैक्टरों की समीक्षा की जाए तो झारखंड की स्थिति अलग नजर आ रही है।



पब्लिक फैक्टर की बात करें तो बदले राजनीतिक हालातों में स्थिति परिवर्तनकारी है और दूसरा सीएम के जमीनी हकीकत से भी दूर बना रहना, उनके लिए नुकसानदेह साबित होने वाला है, क्योंकि उनका चाटूकारों से घिरा रहना, उन्हें सदा ही जमीनी हकीकत से दूर रखता रहा है। बहुत से पब्लिक के मुद्दों को हल करने में सरकार की नाकामी भी इस फैक्टर को प्रभावित करता है। राजनीतिक फैक्टर की बात करें तो राज्य की स्थिति सबके सामने है। राज्य की राजनीति के दिग्गज चेहरा माने जाने वाले सरयू राय स्वयं सीएम रघुवर दास को सीधी फाइट देने को तैयार हैं और आजसू भी सरकार को घ्ोरने के लिए उससे अपना दामन छुड़ा चुकी है।

 महागठबंधन की बात करें तो कई दल एक साथ आकर बीजेपी को चुनौती देने के लिए चुनाव मैदान में हैं। क्या ऐसे में नहीं लगता है कि बीजेपी के साथ-साथ स्वयं रघुवर दास की समस्या बढ़ने वाली है ? अगर, मोदी फैक्टर की बात करें तो भी स्थिति सीएम रघुवर दास के पक्ष में नहीं जा रही है। विधानसभा चुनावों में जनता स्थानीय मुद्दों को ज्यादा तब्बजो देती है। उसे केंद्र के कार्यों से बहुत कुछ लेना देना नहीं होता है। पिछले पांच वर्षों की बात करें तो राज्य में स्थानीय सरकार के कार्यों से ज्यादा केंद्र सरकार के कार्यों की बात होती रही है। केंद्र की ही योजनाओं का प्रचार-प्रसार भी अधिक होता रहा, जिसमें सरकार के कार्यों से जनता अधिक अवगत नहीं हो पाई। इन हालातों में सीएम रघुवर दास कैसे डैमेज कंट्रोल कर पाएंगे, यह अपने-आप में बहुत बड़ा सवाल है। वहीं, सीएनटी-एसपीटी एक्ट को लेकर सरकार के खिलाफ हुए विरोध व भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर भी सरकार निशाने पर आते दिख रही है। नए राजनीतिक हालातों में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा बनकर उभरने वाला है। खासकर, झारखंड भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कद्दावर नेता सरयू राय के बगावत करने के बाद। निश्चित ही, सरयू राय की छवि राज्य में एक ईमानदार नेता की रही है और विपक्ष भी इसी मुद्दे को हवा देने की तैयारी में जुट गया है। भ्रष्टाचार को लेकर सरयू राय के सरकार के खिलाफ बयानों को विपक्ष ने न केवल जमशेदपुर में, बल्कि पूरे प्रदेश में रघुवर सरकार के खिलाफ पहुंचाने की रणनीति तैयार की है।


झारखंड की मुख्य विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने सरयू राय की बगावत को 'भ्रष्टाचार बनाम ईमानदारी की लड़ाई' का नाम देकर इस रणनीति के संकेत भी दे दिए हैं। भाजपा के प्रदेश नेता भी इसे लेकर सकते में हैं। इसमें कोई शक नहीं कि राय की छवि एक ईमानदार की नेता रही है। ऐसे में, सरयू राय की बगावत के बहाने हेमंत सोरेन को सरकार पर हमला करने का एक और मौका मिल गया है और हेमंत इस मौके को किसी तरह छोड़ना नहीं चाहते। सोरेने ने सभी विरोधी दलों से सरयू राय को समर्थन देने की अपील की है।
उल्लेखनीय है कि सरयू राय मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतर गए हैं। सरयू राय कहते भी हैं कि पार्टी के कुछ नेता उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने देना नहीं चाहते। जब बीजेपी भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने की बात करती है तो ऐसे में यह मुद्दा उसी के खिलाफ जाने वाला है। हेमंत सोरेन सिर्फ मुख्यमंत्री रघुवर के खिलाफ उनकी सीट पर ही नहीं, बल्कि सरयू राय के उक्त बयान और पुराने बयानों के आधार पर पूरे राज्य में भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाने में जुट गए हैं। हेमंत अब सरयू राय को भ्रष्टाचार से लड़ने वाला नेता बताते हुए उनका भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल करने में जुट गए हैं। यहां बता दें कि झारखंड के सभी चुनावों में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा रहता है, ऐसे में माना जा रहा है कि इस चुनाव में भ्रष्टाचार चुनावी मुद्दा बनेगा।

सोशल मीडिया में भी सरयू राय को लेकर भाजपा के खिलाफ मुहिम चलाई जा रही है। ऐसे में, भाजपा के नेता भी सकते में हैं। इसे लेकर सोशल मीडिया में भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री इस चुनाव प्रचार में आकर भ्रष्टाचार के खिलाफ क्या बोलेंगे, यह देखने वाली बात होगी। इन सब परिस्थितियों में मुख्यमंत्री रघुवर दास के लिए स्थिति सामान्य नहीं रह जाती है, क्योंकि आखिरकार हार या जीत के लिए उन्हें ही सबसे अधिक जिम्मेदार माना जाएगा। फिलहाल, पहले चरण का मतदान करीब है और विपक्षी दल किसी भी तरह से बीजेपी को सत्ता को दूर रखना चाह रहे हैं, जबकि 2014 के बाद हर चुनाव में मोदी फैक्टर कामयाब होता रहा है, लेकिन झारखंड चुनाव में इस फैक्टर का कितना असर होगा। यह बात खास मायने रख्ोगी।
अगर, यह फैक्टर चल गया तो राज्य में बीजेपी के लिए जीत आसान हो जाएगी, लेकिन इन सब पस्थितियों में जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह है टिकट बंटबारे में अनदेखी के चलते राष्ट्रीय स्वयं संघ की केतली में आए उबाल की। इस उबाल को मुख्यमंत्री रघुवर दास द्बारा शांत किए जाने की आवश्यकता है। इसके अलावा बस्ती विकास समिति के पदाधिकारियों के मनोबल को बढ़ाना भी आवश्यक है, तभी चुनाव को फतह किया जा सकता है और खतरे में आई बीजेपी और आरएसएस की साख को भी बचाया जा सकता है।

Friday, 15 November 2019

विकास और जातीय मुद्दे डालेंगे चुनाव में असर

देवानंद सिंह
 आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर जितनी तैयारी में सत्तारूढ़ बीजेपी है, उतनी ही तैयारी में विपक्ष भी जुटा हुआ है। बीजेपी से प
हली बार राज्य में पांच साल तक मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा करने वाले रघुवर दास फिर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे, वहीं हेमंत सोरेन महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे। यह साफ हो चुका है कि महागठबंधन उनके नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगा। असल में, महागठबंधन में शामिल तीनों दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है, जिसके तहत झारखंड मुक्ति मोर्चा सबसे अधिक 43, कांग्रेस 31 और राष्ट्रीय जनता दल 7 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। राष्ट्रीय जनता दल को देवघर, गोड्डा, कोडरमा, चतरा, बरकटा, छतरपुर और हुसैनाबाद सीटें मिली हैं। उधर, बाबूलाल मरांडी का झारखंड विकास मोर्चा महाठबंधन का हिस्सा नहीं है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने पहले ही घोषणा की थी कि उनकी पार्टी कम-से-कम 42 या 43 सीटों पर लड़ेगी। राज्य में बहुमत का आंकड़ा 41 है।

 इस प्रकार राज्य में चुनाव की तस्वीर लगभग-लगभग साफ हो चुकी है। इतना अवश्य है कि कुछ दिग्गजों का टिकट कन्फर्म नहीं हुआ है, जिनमें सरयू राय जैसे दिग्गज भी शामिल हैं। राज्य की पूर्वी जमश्ोदपुर विधानसभा सीट से लेकर जुगसलाई, मांडर, जमश्ोदपुर-ईस्ट, जमश्ोदपुर पश्चिम, तमाड़ व कोलेबिरा ऐसी सीटें हैं, जहां चुनावी समीकरण ऑल ओवर रिजल्ट को बहुत हद तक प्रभावित करेंगी, इसीलिए सतारूढ़ बीजेपी समेत अन्य पार्टियों के लिए ये सीटें बहुत मायने रखती हैं। हालांकि इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि राज्य के चुनावों में जातीय समीकरणों का असर नहीं दिख्ोगा। निश्चित ही, जातीय समीकरण चुनावों में असर डालेंगे, लेकिन विकास का मुद्दा भी अहम भूमिका निभाएगा। मुख्यमंत्री रघुवर दास के पास चुनाव मैदान में उतरने के लिए तीन चीजें काफी महत्वपूर्ण हैं, जिसमें पीएम मोदी का चेहरा और केंद्र सरकार द्बारा कराए गए कार्यों का पूरा खाका होगा, वहीं उनके द्बारा राज्य में कराए गए विकास कार्यों का खाका भी होगा। इन्हीं मुद्दों को लेकर वह जनता के बीच अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश करेंगे। निश्चित ही विकास के पुलिंदे ने राज्य की तस्वीर बदली है।

 ऐसे में, इस बात की पूरी उम्मीद की जाती है कि इन मुद्दों के आगे विपक्ष को चुनौती का सामना करना पड़ेगा। वहीं, विपक्षी महागठबंधन के पास सरकार की नाकामियों को उजागर करने के लिए बहुत सारे मुद्दे नहीं रहेंगे, बल्कि हां इतना जरूर है कि सरकार के कुछ अधूरे प्रोजेक्टों के बदौलत वह बीजेपी को घ्ोरने की निश्चित ही कोशिश करेगा। वहीं, इससे अधिक वह जातीय समीकरणों को भी भुनाने का पूरा प्रयास करेगा।
 इस विधानसभा चुनाव में राज्य के 2.26 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। मंत्रिमंडल निर्वाचन विभाग ने लगभग एक महीने पूर्व ही विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण के आधार पर मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन कर दिया था। पुनरीक्षण में 86,864 पुरुष तथा 1,०6,872 महिला नए मतदाता के रूप में शामिल किए गए हैं। इस तरह 1,93,736 मतदाता सूची में शामिल किए गए हैं। इस तरह राज्य में अब कुल मतदाताओं की संख्या 2,26,17,372 हो गई है। इसमें 1,18,16,०98 पुरुष और 1,०8,०1,274 महिला मतदाता शामिल हैं। इसी सूची के आधार पर झारखंड में विधानसभा का चुनाव संपन्न कराया जाएगा।


वैसे तो वोट बैंक अलग-अलग जातीय समीकरणों में बंटा हुआ है, जिसमें राज्य में आदिवासी वोट बैंक भी अच्छा खासा है। बीजेपी और महागठबंधन के पास दो तरह से जातीय समीकरणों को भुनाने की चुनौती रहेगी। बीजेपी का फंडा साफ होगा, वह विकास के नाम पर जातीय वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने का प्रयास करेगी, जबकि महागठबंधन पार्टी चेहरों के आधार पर यह कोशिश करेगी कि जातीय वोट बैंक उनकी झोली में आ जाए। राज्य विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरणों के अलावा महिला वोटर्स भी खास भूमिका निभाएंगी। इसीलिए पार्टियों की कोशिश भी महिला वोटर्स को भुनाने की रहेगी। इसी को ध्यान में रखते हुए सत्तारूढ़ बीजेपी ने इस बार पहली सूची में पांच महिलाओं को मौका दिया है। जातीय समीकरणों को ध्यान रखते हुए 12 नए चेहरों पर भरोसा जताया है। इस सूची में 17 एसटी, 6 एससी, 21 ओबीसी और 8 जनरल कैटेगरी के उम्मीदवार हैं। इन 52 उम्मीदवारों की सूची में से 4० सीटों पर अभी भाजपा के विधायक हैं, लेकिन, भाजपा ने इनमें से 1० मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए हैं, सिर्फ 3० विधायकों को टिकट मिला है। भाजपा ने अभी सरकार के तीन दिग्गज मंत्रियों की सीटों के उम्मीदवारों के नाम का खुलासा नहीं किया है। इनमें सरयू राय, नीलकंठ सिह मुंडा और अमर बाउरी शामिल हैं। सिर्फ यही नहीं, राज्य की 29 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा करना बाकी है। भाजपा ने पूरे राज्य की जातिगत गणित को साधते हुए टिकट बांटने का प्रयास किया है। वहीं, विपक्षी महागठबंधन ने भी इन्हीं समीकरणों के आधार पर टिकटों का बंटवारा किया है। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी 65 से अधिक सीटें निकालने में सफल होती है या फिर महागठबंधन अपना जादू चला पाता है।
                                                 डार्क हॉर्स साबित होंगे मंत्री सरयु राय ।

Wednesday, 13 November 2019

जीत का सिक्सर लगाने को तैयार रघुवर दास

राज्य की सबसे प्रतिष्ठित पूर्वी जमश्ोदपुर विधानसभा सीट का चुनाव इस बार भी महत्वपूर्ण होगा। इस सीट का चुनाव हर बार इसीलिए महत्वपूर्ण बन जाता है, क्योंकि इस सीट से सूबे के मुख्यमंत्री रघुवर दास चुनाव लड़ते हैं। वह लगातार पांच बार से यानि 1995 से इस सीट से चुनाव जीतते आ रहे हैं। इस हिसाब से मुख्यमंत्री रघुवर दास अपने विधायक काल की सिल्वर जुबली भी मना रहे हैं। लिहाजा, मुख्यमंत्री के लिए यह चुनाव और भी अहम हो जाता है। इसके इतर विपक्षी गठबंधन उनके इस चुनाव को खास बनाने से रोकने की हरसंभव कोशिश करने में जुट गया है। ऐसे में, उम्मीद इस बात की बन गई है कि इस सीट को लेकर बीजेपी से लेकर विपक्षी गठबंधन काफी गंभीर है।

जब 1967 में सीटों का परिसीमन हुआ था तो जमशेदपुर पूर्वी सीट से कांग्रेस पार्टी की पहली विधायक सिने स्टार प्रियंका चोपड़ा की नानी मधु ज्योत्सना अखौरी बनीं थीं। 1967 से अब तक 12 चुनाव हो चुके हैं, जिसमें से आठ चुनाव बीजेपी जीत चुकी है, जिसमें से पिछले लगातार छह चुनावों की जीत बीजेपी की झोली में जा रही है, जबकि कांग्रेस-सीपीआई 2-2 बार जीत हासिल कर चुकी हैं। 1969 और 1972 में सीपीआइ की तरफ से केदारदास, 1977 में जनता पार्टी के दीनानाथ पांडेय जीते थे , वहीं, 1980 में भी भाजपा से दीनानाथ पांडेय ही जीते थे । वहीं, 1985 में कांग्रेस के केडी नरीमन व 1990 में दीनानाथ पांडेय फिर से जीते। उसके बाद 1995 से 2014 तक लगातार इस सीट से जीत का सेहरा रघुवर दास के सिर पर बंधता आया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह सीट बीजेपी के साथ-साथ रघुवर दास के लिए कितनी महत्वपूर्ण है और विपक्षियों के लिए इस सीट पर बीजेपी की जीत की पुर्नावृत्ति को रोकने की चुनौती है। लिहाजा, चुनाव की महत्वपूर्ण तैयारी दोनों ख्ोमों के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है। मतदाताओं की संख्या के हिसाब से भी पूर्वी जमश्ोदपुर विधानसभा सीट बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां 3 लाख 450 मतदाता हैं, जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 56 हजार 469 है, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1 लाख 43 हजार 981 है। पिछले लगातार तीन चुनावों में इस सीट पर पार्टियों को मिलने वाले वोट प्रतिशत की बात करें तो 2०14 में बीजेपी को 61.48 फीसदी मत मिले थ्ो, जबकि कांग्रेस को 19.78 फीसदी मतों से संतोष करना पड़ा था। वहीं, झाविमो को 12.37 फीसदी मत मिले थ्ो।


अन्य पार्टियों की झोली में महज 6.37 फीसदी मत गए थ्ो। वोट संख्या की बात करें तो बीजेपी की तरफ से रघुवर दास प्रत्याशी थे, जिन्होंने 1 लाख ०3 हजार 427 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी, जबकि दूसरा नंबर कांग्रेस प्रत्याशी आनंद बिहारी दुबे का रहा था, जिन्हें कुल 33 हजार 270 मत पड़े थे । झाविमो से प्रत्याशी रहे अभय सिंह को कुल 20 हजार 815 मत पड़े थे । वहीं, 2009 की बात करें तो यहां वोट प्रतिशत के हिसाब से बीजेपी की स्थिति 2014 व 2005 के मुकाबले थोड़ी खराब रही थी, भले ही जीत पार्टी के खाते में ही गई थी। बीजेपी को 5०.29 फीसदी वोट मिले थे , जबकि झाविमों को 29.73 फीसदी मत मिले थ्ो। निर्दलीय उम्मीदवार को 9.8० फीसदी व अन्यों के खाते में 1०.18 फीसदी वोट पड़े थे । संख्या के हिसाब से बात करें तो बीजेपी की तरफ से विजयी हुए प्रत्याशी रघुवर दास को 56 हजार 165 वोट पड़े थ्ो, जबकि झाविमो से प्रत्याशी रहे अभय सिंह को 33202 वोट मिले थ्ो, वहीं तीसरे स्थान पर रहे निर्दलीय उम्मीदवार आनंद बिहारी दुबे को 10 हजार 944 वोट पड़े थे । 2005 के चुनावों में बीजेपी को 52.97 फीसदी वोट मिले थ्ो, जबकि कांग्रेस को 37.9० फीसदी, राजद को 2.०8 फीसदी व अन्य को 6.96 फीसदी वोट मिले। यह चुनाव भी बीजेपी के प्रत्याशी रघुवर दास ने ही जीता था, जिन्हें 65 हजार 136 वोट मिले थ्ो, जबकि कांग्रेस से हारे प्रत्याशी रामाश्रय प्रसाद को 46 हजार 716 मत मिले थे । वहीं, तीसरे स्थान पर रहे राजद के प्रत्याशी इंद्रजीत सिंह कालरा को 2567 मत मिले थे ।

इस बार भी स्थिति देखने वाली होगी कि कौन-सी पार्टी अपने प्रदर्शन में सुधार कर सकती है। मुख्यमंत्री रघुवर दास के पास जिन कार्यों को अंजाम दिया गया है, उन कार्यों की सूची होगी, जबकि विपक्षियों के पास सरकार के अधूरे कार्यों की सूची होगी। ऐसे में, इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि मुद्दों की लड़ाई नहीं होगी। वैसे, सरकार ने इस सीट के अंतर्गत जो महत्वपूर्ण कार्य कराए हैं, उनमें तीन कार्य महत्वपूर्ण हैं, जिनमें पाइप लाइन से जलापूर्ति की आपूर्ति का शुभारंभ, सिदगोड़ा में सब-स्टेशन का शुभारंभ व क्ष्ोत्र के सभी स्कूलों में भवनों का निर्माण आदि। लेकिन कुछ ऐसे कार्य भी हैं, जो अधूरे हैं, जिन्हें विपक्षी पार्टियां मुद्दा बना सकती हैं, जिनमें कई जलापूर्ति की अधूरी योजनाएं, सुवर्णरेखा नदी पर सिग्नेचर ब्रिज का अधूरा काम व महिला कौशल विकास केंद्र का न बन पाना आदि शामिल हैं। बहरहाल नामांकन बाकी है , अभी से जो तस्वीर उभर कर सामने आ रही है उससे यह पता चलता है कि यहां त्रिकोणीय मुकाबला होने के आसार दिख रहे हैं । भाजपा जिलाध्यक्ष कांग्रेस जिलाध्यक्ष  और जेवीएम के जिला अध्यक्ष की अग्नि परीक्षा भी विधानसभा चुनाव में होगी।

Tuesday, 12 November 2019

दांव पर कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा



बिशन पपोला
झारखंड में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। पांच चरणों में सूबे में चुनाव होने हैं। 81 विधानसभा सीटों के लिए मतदान की शुरूआत इसी माह 3० नवंबर से हो जाएगी, जबकि 23 दिसंबर को मतगणना हो जाएगी। अगर, मतदान की अन्य तिथियों की बात करें तो इनमें दूसरे चरण का चुनाव 7 दिसंबर, तीसरे चरण का चुनाव 12 दिसंबर, चौथ्ो चरण का चुनाव 16 दिसंबर व पांचवे चरण का चुनाव 2० दिसंबर को संपन्न होगा।

जैसी ही चुनाव आयोग की तरफ से सूबे में चुनावी जंग का ऐलान हुआ,वैसे ही राजनीतिक पार्टियों के बीच भी सरगर्मी तेज हो गई। सूबे में मौजूदा समीकरण की बात करें तो बीजेपी के पास 37, कांगेेस के पास 6, जेएमएम के पास 19, एजेएसयू के पास 5 व अन्य के पास 14 विधानसभा सीटें हैं।सत्तारूढ़ बीजेपी ने इस बार राज्य में 65 से अधिक सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य रखा है। वहीं, अन्य पार्टियां भी अपने-अपने समीकरणों की समीक्षा करने में जुटी हुई हैं और उनका भी टारगेट पिछले प्रदर्शन से अच्छा प्रदर्शन करने की है, हालांकि 23 दिसंबर को वास्तविक आकड़े इसको स्पष्ट कर देंगे।

वैसे तो राज्य में पांच चरणों में होने वाला चुनाव कई मायनों में बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। खासकर, सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी, क्योंकि राज्य का लगभग 67 फीसदी क्ष्ोत्र नक्सलवाद से प्रभावित है। राज्य में 13 जिले तो ऐसे हैं, जो नक्सलवाद के संबंध में अतिसंवेदनशील हैं, लेकिन दूसरे चरण का चुनाव एक अलग ही परिपेक्ष्य में महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि इस चरण में कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है, जिसमें राज्य में पहली बार पांच साल तक मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले रघुवर दास से लेकर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा तक शामिल हैं। इस चरण में 2० विधानसभा सीटों में 13 सीटें कोल्हान की होने की वजह से हार जीत का फैसला सीध्ो तौर पर इन दोनों दिग्गजों की प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है।


मुख्यमंत्री रघुवर दास स्वयं जमश्ोदपुर पूर्व से उम्मीदवार हैं। वहीं, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा खूंटी से सांसद हैं। इसीलिए इस क्ष्ोत्र से अपने पार्टी के प्रत्याशियों को जिताने का दारोमदार तो उनके ऊपर है ही, इसके अलावा खरसावां में भी उनके पास यही जिम्मेदारी होगी, क्योंकि वह यहां से कई बार पार्टी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। एक और अतिमहत्वपूर्ण सीट की बात करें तो उसमें चक्रधरपुर भी शामिल होगा। इस सीट पर मुकाबला इसीलिए भी रोमांचक होगा, क्योंकि इस सीट पर स्वयं बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा चुनावी मैदान में होंगे।

तीन मंत्रियों सरयू राय, नीलकंठ सिंह मुंडा, रामचंद्र साहिस, स्पीकर दिनेश उरांव की अगली पारी का फैसला भी दूसरे चरण में ही होना है। सरयू राय, नीलकंठ सिंह मुंडा और दिनेश उरांव की सीटों क्रमश: जमश्ोदपुर, पश्चिम, खूंटी और सिसई से भाजपा ने अभी तक अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है। इस वजह इन तीनों दिग्गजों की भी सांस अटकी पड़ी है।

वहीं, जनसंसाधन मंत्री रामचंद्र सहिस का जुगसलाई से आजसू से प्रत्याशी होना तय माना जा रहा है। इसके अतिरिक्त पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की भी प्रतिष्ठा दांव पर है। यहां बता दें कि जगन्नाथपुर और मझगांव कोड़ा के प्रभाव वाली सीट मानी जाती हैं। उनकी पत्नी गीता कोड़ा अभी सिंहभूम से कांग्रेस सांसद हैं, इसीलिए जगन्नाथपुर और मझगांव सीटों से विपक्षी उम्मीदवारों को जीत दिलाना कोड़ा दंपति के वजूद का सवाल निश्चित ही बन गया है।

उधर, कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचू की घाटशिला सीट गठबंधन के तहत झामुमो के खाते में चली गई है। इससे नाराज बलमुचू ने बगावत का ऐलान कर दिया है। बलमुचू झाविमो या आजसू से टिकट की आस में हैं। किसी भी पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिनेशचंद गोस्वामी की बहरागोड़ा सीट से टिकट कट गया है। यहां भाजपा ने झामुमो से आए विधायक कुणाल षाडंगी को उतारा है। कुणाल षाडंगी के पिता दिनेश षाडंगी भी यहां से भाजपा विधायक थ्ो। इसके अलावा इसी दूसरे चरण में झारखंड में मंत्री रहे सात नेताओं की किस्मत का भी फैसला होना है। पूर्व मंत्री चंपई सोरेन सरायकेला से झामुमो विधायक हैं।

वहीं, जेल में बंद पूर्व मंत्री राजा पीटर तमाड़ से विधायक रहे हैं। उनके जेल से ही चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे हैं। शिक्षा मंत्री रहीं गीताश्री उरांव ने सिखई से, कृषि मंत्री रहे बन्ना गुप्ता जमश्ोदपुर पश्चिम से, पूर्व शिक्षा मंत्री बंघु तिर्की मांडर से, विधि मंत्री रहे देवकुमार घान मांडर से और पूर्व मंत्री दुलाल भुईया के भी जलसलाई से चुनाव लड़ने की पूरी संभावना है।

जुगसलाई, मांडर, जमश्ोदपुर-ईस्ट, जमश्ोदपुर पश्चिम, तमाड़ व कोलेबिरा ऐसी सीटें हैं, जहां के परिणाम ऑल ओवर रिजल्ट को बहुत हद तक प्रभावित करेंगी, इसीलिए सतारूढ़ बीजेपी समेत अन्य पार्टियों के लिए ये सीटें खास मायने रखती हैं। लिहाजा, प्रदेश के प्रभावशाली राजनेताओं के लिए यहां से सीट निकालना नाक का सवाल भी होगा।

कोल्हान की सियासी चुनौती

  देवानंद सिंह झारखंड की राजनीति हमेशा से ही अपने उतार-चढ़ाव के लिए जानी जाती रही है। इस बार भी यही देखने को मिलेगा। पूरे झारखंड की बात छोड़...