Friday 29 October 2021

झारखंड के मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री ने पेश किया राजनीतिक सुचिता का उदाहरण

देवानंद सिंह

 आज राजनीति के मायने भले ही बदल गए हों और पक्ष विपक्ष के नेता एक दूसरे को फूटी आंख न सुहाते हों, लेकिन हमारे देश में कुछ नेता ऐसे भी हैं, जो अपनी व्यवहार कुशलता और राजनीतिक नैतिकता को बनाए हुए हैं। ऐसा ही, वाक्या गत दिनों झारखंड की राजधानी में देखने को मिला। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जिस तरह पूर्व नगर विकास मंत्री और भाजपा विधायक सीपी सिंह को हरमू में बने नव निर्मित पार्क के उद्घाटन कार्यक्रम में खुद कार ड्राइव लेकर गए, वह अपने आप में राजनीतिक द्वेष रखने वालों के लिए बहुत बड़ी सीख है। सीपी सिंह इसीलिए नाराज थे, क्योंकि उन्हें पार्क के उद्घाटन कार्यक्रम का आमंत्रण नहीं मिला था, जिसकी पीड़ा उन्होंने नागाबाबा खटाल में बने वेजिटेबल मार्केट के उद्घाटन अवसर पर व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जब वह नगर विकास मंत्री थे, तो उन्होंने पटेल पार्क के लिए धनराशि मंजूर की थी। उस वक्त वहां निजी विद्यालय बनाने की तैयारी थी। आज पार्क भी बन गया है, लेकिन दुर्भाग्य देखो कि उन्हें उद्घाटन कार्यक्रम का आमंत्रण नहीं मिला। 



वेजिटेबल मार्केट के उद्घाटन के बाद जब वह मंच से नीचे उतर रहे थे तो स्वयं मुख्यमंत्री उनके पास गए और उन्होंने सीपी सिंह को कार्यक्रम में चलने को कहा। इतना ही नहीं, वह उन्हें अपनी कार में बैठाकर कार ड्राइव कर कार्यक्रम स्थल पर ले गए। शायद ही ऐसा कभी देखने को मिला हो कि किसी राज्य का मुख्यमंत्री स्वयं विरोधी दल के नेता को इतनी शालीनता से और आदर से अपने साथ कार्यक्रम स्थल पर ले गया हो। यह झारखंड के लिए भी बहुत बड़ी बात है और देश के उन सभी नेताओं के लिए भी एक सीख, जो राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में राजनीतिक सुचिता को भूल जाते हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ही नहीं स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता भी इसी सुचिता और आदर्श के साथ राजनीति करते हैं। पिछले दिनों दुर्गा पूजा के दौरान जब उपायुक्त पूर्वी सिंहभूम सूरज कुमार की कुछ बातों को लेकर भाजपा नेता अभय सिंह नाराज हुए तो स्वयं स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी थी। यह एक आदर्श नेता और आदर्श सरकार का परिचायक है। ऐसा आज के समय में कहां देखने के मिलता है। जब किसी नेता को कुर्सी मिल जाती है तो वह घमंड में चूर हो जाता है। इतना घमंड हो जाता है कि उसकी डायरी से माफी नाम का शब्द ही हट जाता है। पर झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री घमंड की राजनीति को छोड़कर जिस तरह विरोधियों को भी साथ लेकर चलने की सुचिता पेश कर रहे हैं, वह एक बहुत सुंदर उदाहरण है। वह राजनेताओं को इस बात के लिए भी प्रेरित करता है कि भले ही, हमारी वैचारिक लड़ाई हो, लेकिन हमें उसे द्वेष में नहीं बदलना चाहिए बल्कि सत्ता पक्ष विपक्ष से सीखे और विपक्ष सत्ता पक्ष से सीखे, तभी समाज के सामने आदर्श राजनीति का उदाहरण पेश किया जा सकता है, जिसे झारखंड सरकार पूरा कर रही है।

Monday 18 October 2021

स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता का मास्टर स्ट्रोक, बैकफुट पर आए अभय सिंह......

देवानंद सिंह 

राजनीति में सियासी माइलेज का अपना खेल होता है, लेकिन यह सब की बस बात नहीं कि वह वेबजह माइलेज ले ले, इसके लिए या तो आपको राजनीति का चतुर खिलाड़ी होना चाहिए या फिर जनता में आपकी अच्छी खासी पैठ होनी चाहिए। ये दोनों ही चीज नहीं होने कि स्थिति में आपको बैकफुट पर आना पड़ेगा। ऐसी ही नूराकुश्ती स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता और झारखंड विकास मोर्चा के भाजपा में विलय के बाद घर वापसी कर चुके अभय सिंह के बीच चल रही है। गत दिनों, जिस तरह अभय सिंह ने जमशेदपुर पश्चिम में सियासी माइलेज उठाने के लिए किसी न किसी बहाने स्वास्थ्य मंत्री को घेरने की कोशिश की है, वह बन्ना गुप्ता की राजनीतिक चतुरता के आगे फेल हो गई है। इसीलिए अभय सिंह की जमशेदपुर पश्चिम में भी अपने पांव जमाने की कोशिश फीकी पड़ती नजर आ रही है क्योंकि वह सियासी चाल में यहां के विधायक और स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता से बार बार मात खा रहे हैं। अभय सिंह जमशेदपुर पश्चिम में इसीलिए अपने पैर जमाना चाहते हैं, क्योंकि उनके लिए पूर्वी की राह आसान नहीं थी, क्योंकि उनके सामने यहां के पुराने और स्थापित भाजपाई खासकर रघुवर दास गुट से मुकाबला करने की भी चुनौती है, क्योंकि ये भाजपाई उन्हें पूर्वी में बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। यह बात अभय सिंह भी भली भांति जानते हैं और उन्हें पता है कि रघुवर दास के रहते उन्हें पूर्वी से टिकट मिलना मुश्किल हो सकता है। अगर, मिल भी गया तो जीत मुश्किल हो सकती है, इसलिए उन्होंने जमशेदपुर पश्चिम की राह पकड़ी है, क्योंकि यहां भाजपा में टिकट के मजबूत दावेदार भी कम हैं और जीत के आसार भी ज्यादा हैं, लेकिन उनके सामने यहां स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के रूप में बड़ी चुनौती है, क्योंकि बन्ना गुप्ता की जनता के बीच अच्छी लोकप्रियता है। इसीलिए अभय सिंह को इतनी बड़ी चुनौती से पार पाना है तो कुछ तो करना ही पड़ेगा, इसलिए वह बन्ना गुप्ता को निशाने पर लेने के लिए



 नित नए बहाने ढूंढते रहते हैं, लेकिन बन्ना गुप्ता भी राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं। पिछले एक महीने में वह सियासी अखाड़े में अभय की सियासी चालों को ध्वस्त कर चुके हैं। हम सबने देखा कि किस तरह पार्क, पूजा और प्रोटोकॉल के बहाने जमशेदपुर पश्चिम के सियासी अखाड़े में अभय-बन्ना की नूराकुश्ती देखने को मिली। जब दुर्गा पूजा में कोविड-19 को लेकर जारी दिशा निर्देशों का पालन कराने को लेकर प्रशासन ने पूजा समितियों पर थोड़ा दबाव बनाया तो मामले ने एकदम तूल पकड़ लिया। गत 13 अक्टूबर को महाअष्टमी के दिन पहले सिदगोड़ा सिनेमा मैदान दुर्गा पूजा समिति के संरक्षक चंद्रगुप्त सिंह ने आरोप लगाया कि सिटी एसपी सुभाष चंद्र जाट के नेतृत्व में आए पुलिस बल ने उनके पंडाल में रखे गमले तोड़ दिए और और कोविड गाइडलाइन के नाम पर पंडाल के प्रारूप के साथ भी छेड़छाड़ की। इस पर अभय सिंह आक्रामक मुद्रा में आ गए और उन्होंने पुलिस पर निजी दुश्मनी साधने  का आरोप लगाते हुए कहा कि वह इस मामले को मुख्यमंत्री तक लेकर जाएंगे, हालांकि कुछ घंटों के बाद वह बैकफुट पर आ गये और उन्होंने कहा कि सब कुछ सुलझ गया है।

भक्ति मेरा धर्म हैं तो लोगों की जान की हिफाजत करना मेरा राजधर्म: बन्ना गुप्ता

जब जब इंसानियत और धर्म की रक्षा की बात आएगी बन्ना गुप्ता सबसे पहले खड़ा होगा: बन्ना गुप्ता

स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता जी पूरे नवरात्र में गौ माता की सेवा करते हुए उन्हें भोजन कराते थे, आज नवरात्रि के दिन भी उन्होंने गौमाता की सेवा की और उन्हें रोटी के साथ मिष्ठान भोजन कराया, गौ माता की सेवा के बाद उन्होंने कहा कि जमशेदपुर के कुछ पूजा पंडालों में प्रशासनिक हस्तक्षेप की सूचना मिलते ही जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया हूँ कि कोरोना प्रोटोकॉल के साथ लोगो की आस्था और धार्मिक अनुष्ठान विधि विधान के साथ संपन्न हो और श्रद्धालुओं की भावना आहत न हो इसका ख्याल भी रखा जाये।

उन्होंने याद करते हुए कहा कि कोरोना काल में जब सब अपने घरों में बंद थे तो यही प्रशासन और पुलिस अधिकारियों ने मोर्चा संभाला था और अपनी जान पर खेल कर जमशेदपुरवासियों की जान की रक्षा की थी, जिले के उपायुक्त और एसएसपी के नेतृत्व में कोविड काल में सराहनीय कार्य हुआ है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता हैं।उन्होंने बताया कि जब लोग मर रहे थे, बेड की कमी थी, ऑक्सीजन की कमी थी तो राज्य सरकार के प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों ने आगे बढ़कर मानवता की रक्षा की थी, कई मृतकों का अंतिम संस्कार राज्य सरकार के अधिकारियों ने पूरे धार्मिक अनुष्ठान के साथ संपन्न कराया हैं जिसे भुलाया नहीं जा सकता।मंत्री बन्ना गुप्ता ने बताया कि शहर के कुछ पंडालों में जो विवाद हुआ हैं उसके लिए मैं क्षमा मांगता हूँ, अधिकारियों को विशेष हिदायत दी है कि धार्मिक भावनाओं का खयाल रखें और पूजा समितियों से भी अनुरोध है कि इसे समाप्त कर माँ की श्रद्धा और भक्ति में लीन होकर दशमी को विसर्जन के लिए तैयार हो।उन्होंने जमशेदपुर समेत पूरे राज्य की जनता को आश्वस्त कराते हुए कहा कि मैं विश्वास दिलाता हूँ कि जब भी इंसानियत और धर्म की रक्षा की बात होगी बन्ना गुप्ता सबसे पहले खड़ा रहेगा, सभी को जय माता दी।


इसी बीच काशीडीह में भोग वितरण की सूचना पाकर उपायुक्त  सूरज कुमार खुद वहां पहुंच गए। दरअसल, प्रशासन और अभय सिंह के बीच नूरा कुश्ती की शुरुआत पूजा से पहले ही शुरू हो गयी थी, जब प्रोटोकॉल के नाम पर धार्मिक आस्था से खिलवाड़ का आरोप लगाते हुए अभय सिंह ने साफ कह दिया था कि पूजा समितियां भोग बनायेंगी भी और बाटेंगी भी,यह चीज प्रशासन को थोड़ी मुश्किल लग रही थी, इसीलिए प्रशासन ने बिना देर किए यहां पहुंचना शुरू किया। लिहाजा, जैसे ही, प्रशासन को सूचना मिली कि पूजा पंडाल के बगल स्थित मंदिर से भोग वितरण किया जा रहा है, तो उपायुक्त ने वहां पहुंचकर भोग वितरण रुकवा दिया। अभय सिंह ने वहां भी सियासी माइलेज देने के लिए उपायुक्त से बहस की। उन्होंने पंडाल जला देने और मस्जिद में अतिक्रमण होने जैसे भड़काऊ बातें कहकर मुद्दे उठाकर धार्मिक रंग देने की पूरी कोशिश की, लेकिन उपायुक्त ने बेहद गंभीर तरीके से वहां भोग वितरण भी रुकवा दिया और अभय सिंह को माइलेज लेने का कोई मौका भी नहीं मिला। दूसरी तरफ, कदमा रांकिनी मंदिर में भी बांटे जा रहे भोग को जब प्रशासन ने रुकवाया, तो अभय सिंह को फिर मौका मिल गया



 सियासी माइलेज लेने का। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और जिला प्रशासन पर सिदगोड़ा, काशीडीह और कदमा में सरकार के इशारे पर हिंदुओं की आस्था से खिलवाड़ करने का आरोप लगाया। लगे हाथों यह चेतावनी भी दे डाली कि जब तक जिला प्रशासन माफी नहीं मांगता, तब तक वह मूर्तियों का विसर्जन नहीं करेंगे, लेकिन जिस तरह बन्ना गुप्ता ने सूझबूझ का परिचय दिया, उसमें अभय सिंह का सियासी माइलेज लेने का सपना धराशाही हो गया। अभय सिंह ने कुछ दिन पहले जुबली पार्क खुलवाने के मामले पर नागरिक सुविधा मंच के जरिये भी बन्ना गुप्ता पर निशाना साधने की कोशिश की थी, लेकिन तब बन्ना गुप्ता ने नाटकीय अंदाज में जुबली पार्क का गेट खोल कर सिंह की चाल को विफल कर दिया था, ठीक उसी तरह से उन्होंने दुर्गा पूजा मामले पर भी किया। दरअसल, बन्ना गुप्ता ने 14 अक्टूबर को महानवमी की सुबह कन्या पूजन के बाद पत्रकारों के जरिये एक संदेश दिया कि समाज और आस्था से जुड़े विषयों पर जिला प्रशासन को थोड़ी समझदारी से काम लेना चाहिए। साथ ही, उन्होंने आपदा प्रबंधन मंत्री के नाते पूजा समितियों को हुई तकलीफ और परेशानी के लिए माफी भी मांगी। ऐसा करके बन्ना गुप्ता ने अभय सिंह के ऊपर ही दांव खेल दिया। अभय सिंह ने तो जिला प्रशासन से माफी मांगने की शर्त रखी थी, मगर बन्ना ने मंत्री के नाते माफी मांगकर एक तरह से सरकार ने ही माफी मांग ली, इसके बाद अभय सिंह के पास क्या बचता और किस बात पर बन्ना गुप्ता को घेरते। पर, आगे अभय सिंह और सियासी ड्रामा नहीं करेंगे, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। पर एक बार फिर उन्हें ध्यान रखना होगा कि वह ड्रामा ऐसा न हो कि फिर से उन्हें बैकफुट पर आना पड़े।






Monday 4 October 2021

लखीमपुर घटना : दोषी लोगों पर सख्त कार्रवाई करे योगी सरकार...

  देवानंद सिंह

   लखीमपुर की घटना ने एक बार फिर यूपी की सियासत को  गरमा दिया है। यह घटना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन यह घटना सियासतदानों के लिए फायदा का सौदा बनेगी। किसानों से लेकर पूरे विपक्ष को योगी सरकार के खिलाफ एक ऐसा हथकंडा मिल गया है, जिसके नाम पर चुनाव लड़ा जाएगा। हमारे देश के लिए यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण विषय है कि जब चुनाव का वक्त आता है तो ऐसी घटनाएं आम हो जाती हैं,



 क्योंकि ऐसी घटनाओं से सरकार की बदनामी होती है। सरकार का जहां, काम पर फोकस होता है, वह ऐसी घटनाओं के पीछे लग जाता है, जबकि विपक्ष के पास कोई काम नहीं होता है, इसीलिए वह हर संभव सरकार को कोसने का काम करता है। मजे की बात यह है कि जितना भी विपक्ष होता है, उसके नेता तब ही एक्टिव होते हैं, जब चुनाव नजदीक आते हैं। अगले साल यूपी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, इसीलिए सारे विपक्षी नेता हर घटना को लेकर इतने एक्टिव हो गए हैं कि जैसे उन्हें लग रहा है कि कहीं उनकी थाली का खाना न छिन जाए। यही कोरोना काल चल रहा था, ये सारे नेता जैसे बिलों में छुपे हुए थे। कोई भी नेता जनता का दुख दर्द बांटने बाहर नहीं आया और लेकिन अभी अपनी सियासत को साधने के लिए हर जगह पहुंच रहे हैं, 



क्योंकि चुनाव नजदीक हैं, इसीलिए लखीमपुर की घटना पर कैसे सियासत कम हो सकती है। चाहे कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी हों, सपा नेता अखिलेश यादव हों, बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्रा हूं या फिर सो कॉल्ड किसान नेता, जो पूरी विपक्ष की  राजनीति को साधने में लगे हुए हैं, सारे के सारे मौके पर पहुंचने में लगे हुए हैं। प्रियंका गांधी, सतीश चंद्र मिश्रा जैसे नेताओं को फिलहाल हिरासत में रखा गया है, जिसको लेकर भी इन पार्टियों के कार्यकर्ता सरकार का विरोध कर रहे हैं। लखीमपुर की इस घटना में 8 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि कई लोग घायल भी हैं। ऐसी घटनाएं किसी भी देश और राज्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होती हैं। पर ऐसी घटनाएं अचानक नहीं होती हैं, बल्कि इसके पीछे कई राजनीतिक साजिशें भी काम करतीं हैं। लखीमपुर की घटना के पीछे भी ऐसे ही तत्वों का हाथ दिखता है। सरकार इस मामले में सख्ती से कदम उठाए। कौन ऐसे तत्त्व हैं, उनका तत्काल पता लगाया जाए, जिससे वो तत्व सलाखों के पीछे पहुंच जाए, जो किसानों और आम लोगों के कंधों पर बंदूक रखकर अपना हित साधने में लगे हुए हैं और राज्य का सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

यह कैसा विकास और कैसी सियासत ?

देवानंद सिंह

बिहार से अलग हुए झारखंड को बने 21 साल बीत गए हैं। इस अंतराल में कई सरकारें आईं और गईं। इन 21 सालों में झारखंड में बहुत कुछ बदलते देखा। सियासत के गलियारों से लेकर लाल आतंक का तांडव तक झारखंडियों ने देखा है। हर सियासत के केंद्र बिंदु यहां के आदिवासी और मूलवासी रहे हैं। आदिवासियों और मूल वासियों के नाम पर सियासतदान न जाने कितनी बार झारखंड को लूट चुके हैं। जिन आदिवासियों और मूल वासियों के दम पर राज्य की सत्ता की बिसात बिछी, आज उन आदिवासियों और मूल वासियों की जमीनी सच्चाई जान आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे, जिसकी बानगी आप तस्वीरों से भी समझ सकते हैं और ये तस्वीरें हैं, झारखंड की आर्थिक राजधानी जमशेदपुर के ग्रामीण इलाके की। ये तस्वीर घाटशिला विधानसभा क्षेत्र के गुड़ाबांधा प्रखंड क्षेत्र के सबसे बीहड़ और दुर्गम गांव मटियालडीह की है। कभी नक्सलवाद के गढ़ के रूप में जाने जाने वाले गुड़ाबांधा क्षेत्र से आज नक्सलवाद समाप्त हो चुका है, मगर विकास कहां है, इन तस्वीरों को देखकर आसानी से समझ सकते हैं। आलम यह है कि महज एक किलोमीटर की सड़क बनाने के लिए भी सरकार, प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के पास फंड नहीं है। यह बहुत ही शर्मिंदिगी की बात है कि महज डेढ़ सौ की आबादी वाले इस गांव के लोग नारकीय जिंदगी जीने को विवश हैं। ये आदिवासी- मूलवासी ही तो हैं… फिर किसके लिए झारखंड और कैसी सियासत ! यह आज का सबसे बड़ा सवाल है।




ग्रामीणों के अनुसार अविभाजित बिहार के समय से ही गांव के लोग कच्ची सड़क से ही आना-जाना करते हैं। सबसे अधिक परेशानी बरसात के दिनों में होती है। सड़क पर फिसलन और दलदली मिट्टी होने के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सबसे अधिक परेशानी तब होती है, जब गांव में कोई बीमार पड़ जाता है। उसे खाट पर टांगकर मुख्य सड़क तक लाना होता है। दो दिन पूर्व एक गर्भवती महिला को खाट पर ढोकर मुख्य सड़क तक पहुंचाया गया था। गांव में एक बीमार महिला है, जिसे हर हफ्ते इलाज के लिए अस्पताल ले जाना पड़ता है, इसके लिए खाट के सहारे ही मुख्य सड़क तक पहुंचाना होता है। कई बार जनप्रतिनिधियों के पास फरियाद भी लगाई, लेकिन सभी चुनावी वायदे बनकर रह गए। चुनाव जीतने के बाद दोबारा गांव की तरफ झांकने भी नहीं आए। गांव के भीतर पीसी सड़क जरूर है, लेकिन गांव से मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए कच्चे और दलदली सड़क से ही होकर गुजारना पड़ता है। कई बार फिसल कर ग्रामीण घायल भी हो चुके हैं।

निश्चित तौर पर बदलते झारखंड की यह तस्वीर आपको विचलित कर सकती है, लेकिन सत्ता के शीर्ष पर बैठे सियासत दान, प्रशासनिक महकमा और जनप्रतिनिधियों के पास इतना वक्त भी नहीं कि कभी इन आदिवासियों और मूलवासियों की सुध ली जाए, ग्रामीणों के दर्द को इस तरह भी समझा जा सकता है कि आजादी के 70 दशक बीत जाने के बाद भी अंत्योदय का सपना अधूरा है। दावे लाख हो रहे हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई यही है। गुड़ाबांधा का मटियालडीह गांव तो एक नमूना है। ऐसे सैकड़ों गांव झारखंड के कई हिस्सों में मिल जाएंगे, जहां जरूरी बुनियादी सुविधाएं आज भी कोसों दूर है। यह कैसा विकास… कैसी सियासत ? इस पर चिंतन करने की जरूरत है। चाहे आदिवासी हों, मूलवासी हों या विस्थापित, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक या फिर कोई और।


पूरा वीडियो राष्ट्र संवाद के पास है

Friday 1 October 2021

पत्रकारिता के मूल भाव को समझे पत्रकार

देवानंद सिंह

  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौरा कई मायनों की वजह से चर्चा में रहा। इसके अलावा जो एक और घटना की चर्चा हुई, उसमें न्यूज एंकर अंजना ओम कश्यप का संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान को खरी-खोटी सुनाने वाली भारतीय विदेश सेवा की युवा अधिकारी स्नेहा दूबे के ऑफिस में बिना अनुमति के घुसना रहा। इस मामले में स्नेहा दूबे द्वारा अंजना ओम कश्यप को नम्रता के साथ जाने के लिए कहने की खूब तारीफ हो रही है, जबकि अंजना ओम कश्यप का बिना अनुमति के एक विदेश सेवा के अधिकारी के ऑफिस में घुसने वाली बात पर खूब आलोचना हो रही है। लोगों का ऐसा सोचना बिलकुल सही है, क्योंकि इस वक्त मीडिया जिस तरह का रोल प्ले कर रहा है,



 वास्तव में वह बहुत ही शर्मनाक है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान को खरी-खोटी सुनाने पर भारतीय विदेश सेवा की युवा अधिकारी स्नेहा दूबे की खूब तारीफ  हो रही है। हर तरह की मीडिया में उनके द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए गए बयान की खूब तारीफ हो रही है। वास्तव में, यह हमारे लिए गर्व की बात है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत पाकिस्तान को हर बार ही नंगा करता रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्नेहा दूबे द्वारा दिए गए बयान को ही लेकर प्रतिक्रिया लेने अंजना ओम कश्यप उनके ऑफिस में बिना अनुमति के ही घुस गईं। क्या इतनी बड़ी सीनियर पत्रकार के लिए यह उचित था कि वह बिना अनुमति के ही एक महत्वपूर्ण ऑफिस में घुस जाए ?  क्या उनके पास इतनी भी समझ नहीं थी कि यहां तैनात अधिकारियों की जिम्मेदारियां भी बेहद महत्वपूर्ण होती हैं, ऐसा नहीं कि वह जब चाहे, तब मीडिया के सवाल पर प्रतिक्रिया देने लग जाए, जिसका विदेश सेवा की अधिकारी को पूरा भान था, जबकि न्यूज एंकर का तरीका बेहद ही हल्का और नासमझ वाला था। वास्तव में, यह उनकी एक्सक्लूसिव के चक्कर में जबरदस्ती गले पड़ने वाली हरकत थी। टीवी डिबेट में गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाने वाली इस महिला एंकर को एक पल में बड़ी नम्रता के साथ उस महिला अधिकारी ने जाने को कहकर यह समझा दिया कि हर जगह का एक सिस्टम होता है, आपको यह भान होना चाहिए था कि वह कोई आपका टीवी स्टूडियो नहीं था, बल्कि संयुक्त राष्ट्र महासभा का ऑफिस था और महिला अधिकारी एक जिम्मेदार पद पर तैनात है, ऐसा तो नहीं कि वह भी नेताओं की तरह आपके माइक पर धड़ाधड़ बोलना शुरू कर देती। एक्सक्लूसिव के



 चक्कर में भले ही एंकर यह भूल गई थीं, लेकिन महिला अधिकारी ने जिस तरह उन्हें जाने को कहा, शायद इससे एंकर को भविष्य के लिए कुछ तो सीख मिलेगी। इस घटनाक्रम के बाद जहां मीडिया के हल्केपन को लेकर सवाल उठ रहे हैं, वहीं विदेश सेवा की अधिकारी स्नेहा दूबे की खूब तारीफ हो रही है, क्योंकि जिस शालीनता का परिचय उन्होंने दिया, वह न केवल तारीफ के काबिल है, बल्कि गोदी मीडिया के लिए एक सबक भी। क्योंकि एंकर को यह समझने कि जरूरत थी कि संयुक्त राष्ट्र जैसे बड़े मंच पर स्नेहा दूबे की वह टिप्पणी उनकी निजी नहीं, बल्कि भारत की टिप्पणी थी। फिर उस पर प्रतिकिया मांगने का क्या मतलब था ? शायद, मीडिया के सामने उन्हें बोलने की अनुमति भी नहीं होती हो, लिहाजा अधिकारी ने सवाल पर कोई प्रतिक्रिया देने के बजाय एंकर को नम्रता के साथ जाने को कह दिया। यह कोई पहली घटना नहीं है, जब टीवी एंकर ने इस तरह का गैर जिम्मेदाराना पूर्ण रवैया अपनाया, बल्कि टीवी रिपोर्टरों के लिए यह बेहद ही आम हो गया है, उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं, बस उन्हें अपनी टीआरपी बढ़ाने से मतलब होता है। अपने हिसाब से हर विषय को बना देते हैं। यही वजह है कि मीडिया की लगातार साख गिर रही है। मीडिया की सूरत तब अच्छी लगती है, जब वह स्वतंत्रता और निष्पक्षता के पंख लगाकर उड़ रहा हो, लेकिन आज जिस तरह मीडिया ने अपने ये पंख खुद ही काट लिए हैं और उसके पीछे एक ऐसा तंत्र काम कर रहा हो, जो उससे केवल अपनी ही वाहवाही कराने में जुटा हो, वह मीडिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए बड़ा ही शर्मनाक है। इसका जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि खुद को बड़ा बड़ा मीडिया संस्थान और पत्रकार मानने वाले लोग ही हैं। ये लोग स्वतंत्रता और निष्पक्षता का चोला त्यागकर दलाली का चोला पहने हुए हैं। यही वजह है कि मीडिया को गोदी मीडिया की उपाधि से नवाजा जा चुका है। सरकारी प्रवक्ता की तरह जिस तरह मीडिया काम कर रही है, उसने मीडिया से लोगों के विश्वास को कम कर दिया है। तमाम आलोचना के बाद भी न्यूज चैनलों में सरकार का बखान करना बंद नहीं हो रहा है। इससे लगता है कि ऐसे संस्थानों को आमजन के मुद्दों से कुछ लेना देना ही नहीं है। लिहाजा, जब तक मीडिया स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करेगा और पत्रकारिता के मूल भाव को नहीं समझेगा, तब तक लोग लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर विश्वास नहीं करेंगे।

खाद्य सुरक्षा और उपभोक्ता जागरूकता जरूरी

देवानंद सिंह  खाद्य पदार्थों में हो रही मिलावट के बढ़ते मामले काफी चिंताजनक हैं। खासकर उत्तर प्रदेश में, जहां खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और ...