देवानंद सिंह
लोकसभा 2024 आम चुनावों के बाद यह तय हो चुका है कि एनडीए सरकार बनाने जा रही है और रविवार को मोदी कैबिनेट का शपथ ग्रहण समारोह होना है। मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। गठबंधन सरकार होने की वजह से इस बार मंत्रालयों के बंटवारे में बहुत कुछ नया देखने को मिल सकता है और सरकार चलाने की परिस्थितियों में बदलाव देखने को मिलेगा, क्योंकि 10 साल से बहुमत वाली सरकार का नेतृत्व करने वाले नरेंद्र मोदी को पहली बार गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव होगा। इस बार बीजेपी बहुमत से दूर रह गई, लिहाजा, इस बार सही मायनों में एनडीए की सरकार नजर आएगी और राजनीतिक तौर पर इसका असर संसद में भी देखने को मिलेगा।
ऐसे में, उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद भी सुचारू रूप से चले और जनता के मुद्दों का हल हो, क्योंकि जनता ही प्रतिनिधियों को एक उम्मीद के साथ चुनकर संसद में भेजती है, लेकिन इस बार का चुनाव निश्चित ही भारत के लोकतंत्र की बेहद खुबसूरत तस्वीर कही जा सकती है, क्योंकि जनादेश जैसा भी हो, वही लोकतंत्र की असली जीत है। इतना ही नहीं, यह सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए बहुत बड़ा और कड़ा संदेश भी है। बीजेपी के लिए तो खासकर यह कड़ा संदेश है कि जनता कभी भी किसी को भी चुन सकती है। कई बार पूर्ण बहुमत वाली सरकार अपनी मनमर्जी करने लगती हैं, ऐसे में जनता बदलाव को तरजीह देती है। ऐसा ही इस बार भी देखने को मिला।
जनता ने बीजेपी के लिए स्पष्ट मत जाहिर किया है कि उनसे जुड़े मुद्दों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। बीजेपी के हिसाब से बेशक मंदिर, आर्टिकल-370 जैसे मुद्दों ने बड़ा काम किया, लेकिन ये सब अपनी जगह हैं, पर सरकार को जनता के मुद्दों भी विचार करना होगा और काम भी करना पड़ेगा। लिहाजा, सरकार के कामकाज में जनता के महत्वपूर्ण मुद्दों को जगह मिलनी ही चाहिए। बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
अगर, विपक्ष की बात करें तो विपक्ष के लिए भी संदेश है कि अगर, आप जनता के मुद्दों को उठाते रहेंगे तो जनता आपका साथ देगी, इस बार के चुनाव में यह स्पष्ट रूप से देखने को मिला। यह संसद में एक मजबूत विपक्ष के लिए भी महत्वपूर्ण था, इससे सत्ता पार्टी अपनी मनमर्जी से नहीं कर पाएगी। लिहाजा, यह जनादेश लोकतंत्र की बहुत बड़ी जीत है। इसका एक और पहलू यह है कि अब नई लोकसभा में भी एक बहुमत की सरकार होगी, बहुमत की सरकार मतलब कि एनडीए गठबंधन की सरकार होगी, लेकिन साथ ही एक मजबूत विपक्ष भी वहां खड़ा होगा। इससे देश की सत्ता को चलाने की जो व्यवस्था है, वो ज्यादा सुचारू रूप से चलती हुई दिखाई पड़ेगी। जिस तरह से हमने पहले देखा कि कानून बनाने, कई बिलों को पास करने में लंबी-चौड़ी चर्चा नहीं होती थी। कई बार एकतरफा फैसले लिए जाते थे, उससे हटकर अब संसद में एक स्वस्थ चर्चा होगी।
दस वर्षों के बाद पहली बार सही मायनों में बीजेपी एक तरह से गठबंधन सरकार चलाएगी, इससे पहले भी कहने को तो साझा सरकार थी, लेकिन बीजेपी का ही अपना बहुमत था। एक तरह से पहली बार पीएम मोदी को साझा सरकार चलाने का अनुभव होगा। सारे गठबंधन को साथ लेकर चलना होगा। विपक्ष के साथ- साथ अपने सहयोगियों को भी साथ लेकर चलना चाहिए। इसी कारण यह कहा जा सकता है कि इस बार बातचीत का दौर ज्यादा दिखाई देगा। साझा सरकार चलाने के लिए सहयोगियों पार्टियों के साथ नियमित रूप से परामर्श और संवाद करना होगा। विपक्ष की भूमिका भी अहम रहेगी, जो भारत जैसे लोकतंत्र में जरूरी है। सरकार भी कोशिश करेगी कि विपक्ष बात को ठीक से सुने और विपक्ष द्वारा जो जरूरी मुद्दे उठाए जा रहे हैं, उन पर गंभीरता से विचार किया जाए, जो एक स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है।