Saturday 8 June 2024

नई सरकार में देखने को मिलेगा बहुत कुछ नया

देवानंद सिंह 


लोकसभा 2024 आम चुनावों के बाद यह तय हो चुका है कि एनडीए सरकार बनाने जा रही है और रविवार को मोदी कैबिनेट का शपथ ग्रहण समारोह होना है। मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। गठबंधन सरकार होने की वजह से इस बार मंत्रालयों के बंटवारे में बहुत कुछ नया देखने को मिल सकता है और सरकार चलाने की परिस्थितियों में बदलाव देखने को मिलेगा, क्‍योंकि 10 साल से बहुमत वाली सरकार का नेतृत्‍व करने वाले नरेंद्र मोदी को पहली बार गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव होगा। इस बार बीजेपी बहुमत से दूर रह गई, लिहाजा, इस बार सही मायनों में एनडीए की सरकार नजर आएगी और राजनीतिक तौर पर इसका असर संसद में भी देखने को मिलेगा। 





ऐसे में, उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद भी सुचारू रूप से चले और जनता के मुद्दों का हल हो, क्‍योंकि जनता ही प्रतिनिधियों को एक उम्‍मीद के साथ चुनकर संसद में भेजती है, लेकिन इस बार का चुनाव निश्चित ही भारत के लोकतंत्र की बेहद खुबसूरत तस्‍वीर कही जा सकती है, क्‍योंकि जनादेश जैसा भी हो, वही लोकतंत्र की असली जीत है। इतना ही नहीं, यह सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए बहुत बड़ा और कड़ा संदेश भी है। बीजेपी के लिए तो खासकर यह कड़ा संदेश है कि जनता कभी भी किसी को भी चुन सकती है। कई बार पूर्ण बहुमत वाली सरकार अपनी मनमर्जी करने लगती हैं, ऐसे में जनता बदलाव को तरजीह देती है। ऐसा ही इस बार भी देखने को मिला।


जनता ने बीजेपी के लिए स्पष्ट मत जाहिर किया है कि उनसे जुड़े मुद्दों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। बीजेपी के हिसाब से बेशक मंदिर, आर्टिकल-370 जैसे मुद्दों ने बड़ा काम किया, लेकिन ये सब अपनी जगह हैं, पर सरकार को जनता के मुद्दों भी विचार करना होगा और काम भी करना पड़ेगा। लिहाजा, सरकार के कामकाज में जनता के महत्‍वपूर्ण मुद्दों को जगह मिलनी ही चाहिए। बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।


अगर, विपक्ष की बात करें तो विपक्ष के लिए भी संदेश है कि अगर, आप जनता के मुद्दों को उठाते रहेंगे तो जनता आपका साथ देगी, इस बार के चुनाव में यह स्‍पष्‍ट रूप से देखने को मिला। यह संसद में एक मजबूत विपक्ष के लिए भी महत्‍वपूर्ण था, इससे सत्‍ता पार्टी अपनी मनमर्जी से नहीं कर पाएगी। लिहाजा, यह जनादेश लोकतंत्र की बहुत बड़ी जीत है। इसका एक और पहलू यह है कि अब नई लोकसभा में भी एक बहुमत की सरकार होगी, बहुमत की सरकार मतलब कि एनडीए गठबंधन की सरकार होगी, लेकिन साथ ही एक मजबूत विपक्ष भी वहां खड़ा होगा। इससे देश की सत्ता को चलाने की जो व्यवस्था है, वो ज्यादा सुचारू रूप से चलती हुई दिखाई पड़ेगी। जिस तरह से हमने पहले देखा कि कानून बनाने, कई बिलों को पास करने में लंबी-चौड़ी चर्चा नहीं होती थी। कई बार एकतरफा फैसले लिए जाते थे, उससे हटकर अब संसद में एक स्वस्थ चर्चा होगी।


दस वर्षों के बाद पहली बार सही मायनों में बीजेपी एक तरह से गठबंधन सरकार चलाएगी, इससे पहले भी कहने को तो साझा सरकार थी, लेकिन बीजेपी का ही अपना बहुमत था। एक तरह से पहली बार पीएम मोदी को साझा सरकार चलाने का अनुभव होगा। सारे गठबंधन को साथ लेकर चलना होगा। विपक्ष के साथ- साथ अपने सहयोगियों को भी साथ लेकर चलना चाहिए। इसी कारण यह कहा जा सकता है कि इस बार बातचीत का दौर ज्यादा दिखाई देगा। साझा सरकार चलाने के लिए सहयोगियों पार्टियों के साथ नियमित रूप से परामर्श और संवाद करना होगा। विपक्ष की भूमिका भी अहम रहेगी, जो भारत जैसे लोकतंत्र में जरूरी है। सरकार भी कोशिश करेगी कि विपक्ष बात को ठीक से सुने और विपक्ष द्वारा जो जरूरी मुद्दे उठाए जा रहे हैं, उन पर गंभीरता से विचार किया जाए, जो एक स्‍वस्‍थ्‍य लोकतंत्र के लिए अत्‍यंत आवश्‍यक है।

स्मृति ईरानी को ले डूबा अहंकार और बड़बोलापन

किशोरी मैजिक के आगे हो गईं धराशायी

धीरज कुमार सिंह 


चुनाव परिणामों के बाद एनडीए बहुमत में है और सरकार बनाने की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। भाजपा को अकेले दम पर बहुमत नहीं मिलने पर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं, कुछ मंत्रियों के हारने पर तो जैसे लोग जश्न मना रहे हैं, इनमें सबसे पहला नाम है केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का। उनका घमंड जिस आसमान पर था, वह उसी गति के साथ नीचे भी गिर गया। कांग्रेस के किशोरी मैजिक के आगे उनकी तिकड़में बिल्कुल भी काम नहीं आयी। कांग्रेस प्रत्याशी किशोरलाल ने अमेठी लोकसभा सीट से  भाजपा उम्मीदवार स्मृति से 1 लाख 18 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। 




इस तरह कांग्रेस ने अपने गढ़ अमेठी पर फिर से लगभग कब्जा कर लिया है। एक समय यही अमेठी कांग्रेस का औसत कहा जाता था, लेकिन 2019 में बदलाव आया। उस सीट से स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराकर जीत हासिल की, लेकिन पांच साल बाद किशोरी लाल शर्मा ने  स्मृति ईरानी को हराकर सियासी तस्वीर ही बदल दी है। 

चुनाव जीतने के एक साल बाद फिर से अमेठी में हवा बदलने लगी। इस बार दरअसल स्मृति ईरानी ने स्थानीय जनता को अपनी हरकतों से काफी नाराज कर लिया था। दूसरी तरफ किशोरी लाल लगातार जनता से जुड़कर काम करते रहे।


स्मृति के हारने पर सोशल मीडिया पर उन्हें काफी ट्रोल किया जा रहा है, लोग तरह-तरह के कमेंट कर रहे हैं। लोग कह रहे हैं आप एक्टर ही ठीक थी, आपको राजनीति में नहीं आना चाहिए था। 

एक यूजर ने लिखा, "आपके ईगो और घमंड के कारण आप चुनाव हारी हैं।" यूजर ने आगे लिखा, आप अपनी हार के लिए अमेठी के लोगों को दोष क्यों दे रही हैं। यह आपका सरासर घमंड था, जिसकी कीमत आपको अमेठी में चुकानी पड़ी। जीवन के लिए सबक - लोगों को कभी कम मत समझो और राहुल गांधी से कभी खिलवाड़ मत करो।" वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा, "आप तुलसी ही ठीक थी, क्या जरूरत थी नेता बनने की।" ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर मोहम्मद जुबैर ने भी स्मृति ईरानी को नहीं बख्शा है। जुबैर ने कमेंट में लिखा, "आपने अपना ज्यादातर समय लोकल रिपोर्टर और स्ट्रिंगर्स को धमकाने में बिताया है।"

मोहम्मद जुबैर ने ट्विटर पर लिखा, "मोदी अब शिक्षा, विश्वविद्यालय, गरीबी, अर्थव्यवस्था, डिजिटल इंडिया, प्रौद्योगिकी आदि के बारे में बोल रहे हैं। चुनावी रैलियों के दौरान वह मुसलमान, मंगलसूत्र, मुजरा, मटन, मुगल, मछली, मुस्लिम लीग, घुसपेटिया, जियादा बच्चे, लव जिहाद, वोट जिहाद, जमात… में व्यस्त थे।" इसे शेयर करते हुए प्रकाश राज ने लिखा, "आदतें बड़ी मुश्किल से मरती हैं.. कट्टरवादी हमेशा कट्टर होता है।"

  उधर, यूजर्स के कमेंट पर स्मृति ईरानी ने इंस्टाग्राम और ट्विटर पर लिखा,"ऐसा ही जीवन है… मेरे जीवन का एक दशक एक गांव से दूसरे गांव तक जाने, जीवन बनाने, आशा और आकांक्षाओं का पोषण करने, बुनियादी ढांचे पर काम करने - सड़कें, नाली, खड़ंजा, बाईपास, मेडिकल कॉलेज और बहुत कुछ बनाने में गया। जो लोग मेरे साथ हार और जीत में खड़े रहे, मैं हमेशा उनकी शुक्रगुजार रहूंगी। जो आज जश्न मना रहे हैं उन्हें बधाई। और जो पूछ रहे हैं, "हाउज द जोश? मैं अब भी कहूंगी- अब भी हाई सर।"


गांधी परिवार का अमेठी से बहुत पुराना रिश्ता


गांधी परिवार का अमेठी से रिश्ता बहुत पुराना है। 1977 में राजीव गांधी के भाई संजय पूर्वी उत्तर प्रदेश की इस सीट से उम्मीदवार बने। तब दिल्ली के मसनद में इंदिरा गांधी की सरकार थी। लेकिन उसका गद्दा डोल रहा था। देशभर में इंदिरा विरोधी हवा चलने लगी। संजय गांधी इसे झेल नहीं पाये, लेकिन तीन साल बाद 1980 के लोकसभा चुनाव में संजय अमेठी से सांसद बन गए। विमान दुर्घटना में संजय की असामयिक मृत्यु के बाद 1981 में अमेठी में उपचुनाव हुआ। राजीव वह चुनाव जीत गए। 1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान लिट्टे बम विस्फोट में राजीव की मृत्यु के बाद, कांग्रेस ने राजीव के करीबी सहयोगी सतीश शर्मा को अमेठी से मैदान में उतारा। वह भी जीते।

क्या भविष्य में पलटी मार लेंगे नीतीश..?

देवानंद सिंह 


सरकार के तीसरे कार्यकाल को लेकर कई बातें मीडिया में चल रहीं हैं। भले ही अभी मोदी सरकार बनाने में कामयाब हो जाएं, लेकिन क्या वह पांच साल तक सरकार चला पाएंगे, क्योंकि नीतीश कभी भी पलटी मार सकते हैं, इसीलिए तरह-तरह के सवाल सियासी गलियारों में चल रहे हैं। 


  नीतीश कभी भी पलटी मार सकते हैं, इस बात को लेकर इसीलिए भी चर्चा हो रही है, क्योंकि इसकी वजह यह भी है कि नीतीश कुमार एनडीए की बैठक में शामिल होने के लिए जिस फ्लाइट से दिल्ली गए, उसी प्लेन से तेजस्वी यादव इंडिया गठबंधन की बैठक में भाग लेने दिल्ली जा गए। अब इस संयोग को हवा इस रूप में लग गई कि क्या यात्रा के दौरान इंडिया गठबंधन में लौटने को लेकर बात तो नहीं हुई? इस शंका को बल इसलिए भी मिला कि खबर आ रही थी कि एनसीपी नेता शरद पवार ने नीतीश कुमार से बात की। मीसा भारती का बयान आया कि चाचा आ जाओ।





नीतीश कुमार की राजनीतिक जीवन मे हार-जीत का दौर चलता रहा है। कई बार जब लोग उन्हें चुका हुआ मान लेते हैं तो वो फिर से उठकर खड़े हो जाते हैं, जितना वह उठकर खड़े होते हैं, ठीक उसी तरह पलटी भी मार लेते हैं। भारतीय राजनीति में नीतीश कुमार ऐसे अकेले नेता हैं, जो पलटी मारने के लिए मशहूर हैं। भले ही, इसे संयोग कह लें या हकीकत, कभी-कभी स्थितियां ऐसी बन जाती है। जहां पलटी मारने पर एक बड़ा स्पेस दिखाई पड़ता है।  लोकसभा चुनाव के परिणाम को ही देख लें तो नीतीश कुमार के पास पलटी मारने का स्पेस खुद-ब-खुद चला आया है। लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार की 40 सीटों में से एनडीए को 30 सीटों पर जीत मिली है। जदयू को 12 सीटों पर सफलता मिली। ये संख्या बल इसलिए महत्वपूर्ण हो गया कि भाजपा को लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिली। एनडीए के अन्य दलों की सीटों को जोड़ दें तो वो संख्या 292 यानी बहुमत से 20 ज्यादा।


खतरा इसीलिए भी है, क्योंकि नीतीश कुमार ने दो-दो बार एनडीए और महागठबंधन का साथ छोड़ा है। साथ छोड़ने का कारण वो अपने आसपास के लोगों को बताते हैं। महागठबंधन का साथ छोड़ा तो बताया कि संजय झा ने कहा इसलिए एनडीए में चले आए। जब महागठबंधन के साथ गए तो ठिकरा ललन सिंह और विजेंद्र यादव पर फोड़ा था। ये राजनीतिक परिवर्तन के फैक्टर बनते हैं, आज भी नीतीश कुमार के पास ही हैं।


1974 में छात्र आंदोलन के साथ राजनीतिक जीवन का सफर शुरु करने वाले नेता नीतीश कुमार ने 1994 में जार्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था, जिसके बाद वे 1995 में लेफ्ट पार्टी के साथ गठबंधन में आकर चुनाव लड़ें, हालांकि नतीजा पक्ष में नहीं आने पर उन्होंने पलटी मारते हुए 1996 में एनडीए गठबंधन का दामन थाम लिया। इस गठबंधन के साथ उन्होंने काफी लंबी दूरी तय की और 2013 तक बिहार में सरकार बनाते रहें, जिसके बाद 2014 में जोरदार पलटी मारते हुए एनडीए को चुनौती डे डाली। उन्होंने 17 सालों तक एनडीए में काम करने के बाद 2014 लोकसभा चुनाव में खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। इस चुनाव में अकेली लड़ाई लडी और सफलता ना मिलने पर कांग्रेस का दामन थाम लिया। जिसके बाद 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने बीजेपी का बिहार से सफाया कर दिया, हालांकि दो साल सरकार चलाने के बाद नीतीश कुमार ने फिर पलटी मारी को आरजेडी-कांग्रेस से अलग हो गए। जिसके बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी से पुराना रिश्ता जोड़ते हुए बिहार के मुख्यमंत्री पद का शपथ लिया। साथ ही बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी को उप मुख्यमंत्री बनाया। 


साल 2017 से लेकर 2022 के शुरुआती महीने तक बीजेपी और जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने मिलकर बिहार में शासन किया, जिसके बाद नीतीश एक बार फिर नीतीश कुमार ने बीजेपी से पलड़ा झारते हुए आरजेडी का दामन थामा। डेढ़ साल तक सत्ता संभालने के बाद उन्होंने 28 जनवरी 2024 बीजेपी के साथ मिलकर नई सरकार बनाई और शपथ ग्रहण किया। आपको बता दें कि नीतीश कुमार अबतक 9 बार शपथ ग्रहण कर चुके हैं। वहीं, देश भर में राज करने वाली बीजेपी बिहार में अबतक एक बार भी मुख्यमंत्री पद नहीं ले सकी है। अब देखना होगा कि नीतीश पांच साल तक एनडीए गठबंधन में ही रहेंगे या फिर पलटी मारकर खेमा बदल लेंगे।

खाद्य सुरक्षा और उपभोक्ता जागरूकता जरूरी

देवानंद सिंह  खाद्य पदार्थों में हो रही मिलावट के बढ़ते मामले काफी चिंताजनक हैं। खासकर उत्तर प्रदेश में, जहां खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और ...