देवानंद सिंह
Monday, 4 March 2024
भाजपा के लिए खतरे की घंटी है कल्पना सोरेन की सियासी मैदान में धमाकेदार एंट्री
Sunday, 3 March 2024
बीजेपी की पहली सूची में संतुलन बनाने की भरपूर कोशिश
बीजेपी की पहली सूची में संतुलन बनाने की भरपूर कोशिश
देवानंद सिंह
लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जिस तरह से बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति ने 16 राज्यों में 195 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, उससे राजनीतिक तौर पर कई संकेत मिलते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इस बार बहुत चेहरे बदलने का प्रयोग नहीं किया गया है। सामान्य रूप से देखा जाए तो बीजेपी अपने उम्मीदवारों की सूची मे बड़ी संख्या में चेहरे का बदलाव करती है, लेकिन इस बार अब तक जारी सूची में बदलाव केवल उन राज्यों में ही दिख रहा है, जहां विपक्षी गठबंधन का नया समीकरण उभरा है या फिर उम्मीदवार के खिलाफ भारी सत्ताविरोधी लहर चल रही हो।
बीजेपी की पहली सूची में 34 केंद्रीय मंत्रियों को भी स्थान मिला है। ऐसा माना जा रहा है कि उम्मीदवारों का चयन बीजेपी को 370 और राजग को 400 से अधिक सीटों के लक्ष्य को ध्यान में रखकर किया गया है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर सर्वे कराने के बाद प्रदेश की चुनाव समितियों में उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा हुई। प्रदेश चुनाव समितियों की रिपोर्ट के आधार पर प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में हुई केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में उम्मीदवारों के चयन पर मुहर लगाई गई। 195 उम्मीदवारों वाली पहली सूची में पहला नाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का है, जो अपने पुराने क्षेत्र वाराणसी से तीसरी बार मैदान में होंगे। उनके साथ ही राजनाथ सिंह लखनऊ और अमित शाह गांधीनगर अर्जुन मुंडा खूंटी से फिर मैदान में होंगे।
राज्यसभा आए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को राजस्थान के अलवर, मनसुख मांडविया को गुजरात के पोरबंदर और राजीव चंद्रशेखर को केरल के तिरूअनंतपुरम से टिकट दिया गया है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लव देब को भी टिकट मिला है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को कोटा से फिर से टिकट मिल गया है।
दिल्ली में मनोज तिवारी के छोड़कर अन्य चेहरे नए हैं। जहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन हुआ है, वहां बदलाव देखने को मिला है। पार्टी ने अब तक जारी पांच उम्मीदवारों की सूची में से चार नए नाम दिए हैं। नई दिल्ली से मंत्री मीनाक्षी लेखी का टिकट काटकर यहां नई कार्यकर्ता और सुषमा स्वराज की पुत्री बांसुरी स्वराज को उम्मीदवार बनाया है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कुछ नामों के बदलाव का बड़ा कारण यह भी है कि वहां कई सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाया गया था। उधर, केरल में कांग्रेस के दिग्गज नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी और अभिनेता सुरेश गोपी के साथ तिरुवनंतपुरम से शशि थरूर के खिलाफ केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को चुनाव मैदान में उतार कर भाजपा ने केरल के तिलिस्म तोड़ने की भी रणनीति बनाई है। वहीं, पिछले दिनों भाजपा में शामिल हुई कांग्रेस की सांसद गीता कोडा को सिंहभूम से टिकट दिया गया है।
इसी तरह से बसपा को छोड़कर भाजपा में आने वाले रितेश पांडेय को भी अंबेडकरनगर से उम्मीदवार बनाया गया है। कुल मिलाकर, बीजेपी ने अपनी पहली सूची में सभी वर्गों, समाज और जातियों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है, इनमें 34 महिलाएं, 27 अनुसूचित जाति, 18 अनुसूचित जनजाति और 57 ओबीसी से आते हैं।
वहीं, युवा शक्ति को अहमियत देते हुए 50 साल से कम उम्र के 47 युवाओं को भी मैदान में उतारा गया है, लेकिन आने वाली सूचियों में क्या बदलाव होंगे यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
Friday, 1 March 2024
हिमाचल संकट व चिराग कोल्हान तो बस झांकी है, कांग्रेस को अपने परंपरागत गढ़ों में झुलसाएगी राम मंदिर बायकॉट की तपिश
हिमाचल संकट व चिराग कोल्हान तो बस झांकी है, कांग्रेस को अपने परंपरागत गढ़ों में झुलसाएगी राम मंदिर बायकॉट की तपिश
देवानंद सिंह
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जिस कांग्रेस के अंदर सब ठीक नहीं चल रहा है, जो अच्छा संकेत नहीं है, क्योंकि हर तरफ कांग्रेस को झटके पर झटके लग रहे हैं। हिमाचल में आए सियासी को ले लें या फिर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा का पार्टी दामन छोड़कर बीजेपी का दामन थामने का प्रकरण हो। यहां तक कि अयोध्या में बने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से दूरी बनाकर भी कांग्रेस ने बड़ी गलती कर दी, निश्चित ही इससे लगता है कि कांग्रेस को राम मंदिर बायकॉट की तपिश परंपरागत गढ़ों में भी झुलसाएगी। कांग्रेस इस सियासी नुकसान को पचा पाएगी, यह बहुत बड़ा सवाल है।
हिमाचल में भले ही सुक्खू सरकार पर मंडरा रहे संकट के बादल फ़िलहाल तो टलते दिख रहे हैं, लेकिन ये हालात कब तक ठीक रहेंगे, इसका भरोसा नहीं है, क्योंकि अभी हालात सामान्य नहीं हैं, हालांकि बाहरी तौर यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि सरकार में सबकुछ ठीक है और सुक्खू सरकार चलती रहेगी। पर्यवेक्षक सरकार के संकट को बागी नेताओं से बात करके दूर करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं, लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि आखिर पार्टी अदरूनी गुटबाजी को खत्म करने में कब कामयाब हो पाती है। जिस गुटबाजी की वजह से छह विधायकों को अयोग्य घोषित किया गया है, उसने राजनीतिक हालात और पेचीदा बना दिया है। विधानसभा के स्पीकर कुलदीप पठानिया ने कांग्रेस के इन छह विधायकों के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया। हिमाचल के राजनीतिक इतिहास में यह इस तरह का पहला मामला है।
वैसे इस मामले से पार्टी के अंदर स्थिति सामान्य होने के बजाय और जटिल होगी। यह कहा जा रहा है कि ये विधायक बीजेपी की ओर जा सकते हैं, उससे प्रदेश में बीजेपी को मजबूती मिलेगी, इससे न केवल सुक्खू सरकार पर संकट बढ़ेगा, बल्कि आगामी लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस को नुकसान झेलना पड़ेगा। राज्य के इन हालातों के बाद निश्चित ही बीजेपी के अंदर उत्साह का माहौल है। बीजेपी के पास 25 विधायक हैं, लेकिन राज्यसभा चुनाव में अपने कैंडिडेट हर्ष महाजन को जिताने के बाद वह और भी ताक़तवर दिख रही है। कांग्रेस के छह विधायकों के अयोग्य घोषित होने के बाद हिमाचल विधानसभा में विधायकों की संख्या 68 से 62 हो गई है। फ़िलहाल, कांग्रेस के 34 और बीजेपी के 25 सदस्य हैं, यानी 62 सदस्यों की स्थिति में कांग्रेस के पास सामान्य बहुमत है। पर देखना होगा कि सुक्खू सरकार कब तक बरकरार रह पाती है।
झारखंड में भी जिस तरह कांग्रेस को उसके गढ़ में झटका लगा है, उसका असर लोकसभा चुनावों में अवश्य दिखेगा। कांग्रेस के इकलौते सांसद गीता कोड़ा को पार्टी में इंट्री करवाने के बाद अब भाजपा की नजर पच्छिमी सिंहभूम से कांग्रेस के इकलौते विधायक सोना राम सिंकु को अपने पाले में लाने की है। बताया जा रहा है कि भाजपा की कोशिश सोना राम सिंकू की नाराजगी को हवा देकर कांग्रेस से दूरी बनाने की है। दरअसल, झारखंड की कमान सौंपने वक्त ही बाबूलाल को झामुमो का सबसे मजबूत किला संताल कोल्हान को ध्वस्त करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी, और इस टास्क को पूरा करने के लिए बाबूलाल कोल्हान के किसी बड़े सियासी चेहरे को भाजपा में शामिल करने को प्रयासरत थे, उनकी नजर गीता कोड़ा पर थी, आखिरकार वह गीता कोड़ा को बीजेपी में शामिल कराने में सफल हुए।
जहां तक राम मंदिर का सवाल है, राम मंदिर कार्यक्रम से दूरी बनाने का असर कांग्रेस पर दिख रहा है। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा इस बात का है कि इस बार उसके परंपरागत गढ़ उसके हाथ से छिटक सकते हैं, खासकर यूपी में। कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली अमेठी-रायबरेली सीट पर सबकी निगाहें होंगी। दोनों ही सीटों के चुनाव गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी के लिए महत्वपूर्ण होंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि अभी पार्टी एक चुनौतीपूर्ण फेज से गुजर रही है। हिमाचल प्रदेश में देखे गए राजनीतिक उथल-पुथल का असर कांग्रेस पार्टी के गढ़ अमेठी और रायबरेली में भी देखने को मिल सकता है। शिमला से अमेठी और रायबरेली की दूरी करीब 1000 किलोमीटर से ज्यादा है, लेकिन वहां उठा तूफान जल्द ही उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के गढ़ को प्रभावित कर सकता है।
अमेठी सीट पर राहुल गांधी 2019 का लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। उन्हें बीजेपी की दिग्गज नेता स्मृति ईरानी ने शिकस्त दी थी। वहीं, रायबरेली की बात करें तो अब तक यहां से सोनिया गांधी सांसद रही हैं। हालांकि, इस बार वो राज्यसभा चली गई हैं। ऐसे में, चर्चा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा इस सीट से दावेदारी कर सकती हैं।
हालांकि, सूबे में जिस तरह का माहौल देखने को मिल रहा उसमें राम मंदिर मुद्दे पर कांग्रेस नेतृत्व के स्टैंड का असर इन सीटों पर आगामी लोकसभा चुनाव में नजर आ सकता है। इन हालातों में कांग्रेस अपने गढ़ को कैसे बचा पाएगी, यह देखना काफी दिलचस्प होगा।
गीता कोड़ा को साथ लेकर अपने प्रयोग में सफल हुई बीजेपी....!
क्या संदेशखाली मुद्दे को सियासी तूल देकर टीएमसी के लिए समस्या खड़ी कर पाएगी बीजेपी...?
कोल्हान की सियासी चुनौती
देवानंद सिंह झारखंड की राजनीति हमेशा से ही अपने उतार-चढ़ाव के लिए जानी जाती रही है। इस बार भी यही देखने को मिलेगा। पूरे झारखंड की बात छोड़...
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