Saturday 8 June 2024

नई सरकार में देखने को मिलेगा बहुत कुछ नया

देवानंद सिंह 


लोकसभा 2024 आम चुनावों के बाद यह तय हो चुका है कि एनडीए सरकार बनाने जा रही है और रविवार को मोदी कैबिनेट का शपथ ग्रहण समारोह होना है। मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। गठबंधन सरकार होने की वजह से इस बार मंत्रालयों के बंटवारे में बहुत कुछ नया देखने को मिल सकता है और सरकार चलाने की परिस्थितियों में बदलाव देखने को मिलेगा, क्‍योंकि 10 साल से बहुमत वाली सरकार का नेतृत्‍व करने वाले नरेंद्र मोदी को पहली बार गठबंधन सरकार चलाने का अनुभव होगा। इस बार बीजेपी बहुमत से दूर रह गई, लिहाजा, इस बार सही मायनों में एनडीए की सरकार नजर आएगी और राजनीतिक तौर पर इसका असर संसद में भी देखने को मिलेगा। 





ऐसे में, उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद भी सुचारू रूप से चले और जनता के मुद्दों का हल हो, क्‍योंकि जनता ही प्रतिनिधियों को एक उम्‍मीद के साथ चुनकर संसद में भेजती है, लेकिन इस बार का चुनाव निश्चित ही भारत के लोकतंत्र की बेहद खुबसूरत तस्‍वीर कही जा सकती है, क्‍योंकि जनादेश जैसा भी हो, वही लोकतंत्र की असली जीत है। इतना ही नहीं, यह सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए बहुत बड़ा और कड़ा संदेश भी है। बीजेपी के लिए तो खासकर यह कड़ा संदेश है कि जनता कभी भी किसी को भी चुन सकती है। कई बार पूर्ण बहुमत वाली सरकार अपनी मनमर्जी करने लगती हैं, ऐसे में जनता बदलाव को तरजीह देती है। ऐसा ही इस बार भी देखने को मिला।


जनता ने बीजेपी के लिए स्पष्ट मत जाहिर किया है कि उनसे जुड़े मुद्दों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। बीजेपी के हिसाब से बेशक मंदिर, आर्टिकल-370 जैसे मुद्दों ने बड़ा काम किया, लेकिन ये सब अपनी जगह हैं, पर सरकार को जनता के मुद्दों भी विचार करना होगा और काम भी करना पड़ेगा। लिहाजा, सरकार के कामकाज में जनता के महत्‍वपूर्ण मुद्दों को जगह मिलनी ही चाहिए। बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।


अगर, विपक्ष की बात करें तो विपक्ष के लिए भी संदेश है कि अगर, आप जनता के मुद्दों को उठाते रहेंगे तो जनता आपका साथ देगी, इस बार के चुनाव में यह स्‍पष्‍ट रूप से देखने को मिला। यह संसद में एक मजबूत विपक्ष के लिए भी महत्‍वपूर्ण था, इससे सत्‍ता पार्टी अपनी मनमर्जी से नहीं कर पाएगी। लिहाजा, यह जनादेश लोकतंत्र की बहुत बड़ी जीत है। इसका एक और पहलू यह है कि अब नई लोकसभा में भी एक बहुमत की सरकार होगी, बहुमत की सरकार मतलब कि एनडीए गठबंधन की सरकार होगी, लेकिन साथ ही एक मजबूत विपक्ष भी वहां खड़ा होगा। इससे देश की सत्ता को चलाने की जो व्यवस्था है, वो ज्यादा सुचारू रूप से चलती हुई दिखाई पड़ेगी। जिस तरह से हमने पहले देखा कि कानून बनाने, कई बिलों को पास करने में लंबी-चौड़ी चर्चा नहीं होती थी। कई बार एकतरफा फैसले लिए जाते थे, उससे हटकर अब संसद में एक स्वस्थ चर्चा होगी।


दस वर्षों के बाद पहली बार सही मायनों में बीजेपी एक तरह से गठबंधन सरकार चलाएगी, इससे पहले भी कहने को तो साझा सरकार थी, लेकिन बीजेपी का ही अपना बहुमत था। एक तरह से पहली बार पीएम मोदी को साझा सरकार चलाने का अनुभव होगा। सारे गठबंधन को साथ लेकर चलना होगा। विपक्ष के साथ- साथ अपने सहयोगियों को भी साथ लेकर चलना चाहिए। इसी कारण यह कहा जा सकता है कि इस बार बातचीत का दौर ज्यादा दिखाई देगा। साझा सरकार चलाने के लिए सहयोगियों पार्टियों के साथ नियमित रूप से परामर्श और संवाद करना होगा। विपक्ष की भूमिका भी अहम रहेगी, जो भारत जैसे लोकतंत्र में जरूरी है। सरकार भी कोशिश करेगी कि विपक्ष बात को ठीक से सुने और विपक्ष द्वारा जो जरूरी मुद्दे उठाए जा रहे हैं, उन पर गंभीरता से विचार किया जाए, जो एक स्‍वस्‍थ्‍य लोकतंत्र के लिए अत्‍यंत आवश्‍यक है।

स्मृति ईरानी को ले डूबा अहंकार और बड़बोलापन

किशोरी मैजिक के आगे हो गईं धराशायी

धीरज कुमार सिंह 


चुनाव परिणामों के बाद एनडीए बहुमत में है और सरकार बनाने की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। भाजपा को अकेले दम पर बहुमत नहीं मिलने पर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं, कुछ मंत्रियों के हारने पर तो जैसे लोग जश्न मना रहे हैं, इनमें सबसे पहला नाम है केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का। उनका घमंड जिस आसमान पर था, वह उसी गति के साथ नीचे भी गिर गया। कांग्रेस के किशोरी मैजिक के आगे उनकी तिकड़में बिल्कुल भी काम नहीं आयी। कांग्रेस प्रत्याशी किशोरलाल ने अमेठी लोकसभा सीट से  भाजपा उम्मीदवार स्मृति से 1 लाख 18 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। 




इस तरह कांग्रेस ने अपने गढ़ अमेठी पर फिर से लगभग कब्जा कर लिया है। एक समय यही अमेठी कांग्रेस का औसत कहा जाता था, लेकिन 2019 में बदलाव आया। उस सीट से स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराकर जीत हासिल की, लेकिन पांच साल बाद किशोरी लाल शर्मा ने  स्मृति ईरानी को हराकर सियासी तस्वीर ही बदल दी है। 

चुनाव जीतने के एक साल बाद फिर से अमेठी में हवा बदलने लगी। इस बार दरअसल स्मृति ईरानी ने स्थानीय जनता को अपनी हरकतों से काफी नाराज कर लिया था। दूसरी तरफ किशोरी लाल लगातार जनता से जुड़कर काम करते रहे।


स्मृति के हारने पर सोशल मीडिया पर उन्हें काफी ट्रोल किया जा रहा है, लोग तरह-तरह के कमेंट कर रहे हैं। लोग कह रहे हैं आप एक्टर ही ठीक थी, आपको राजनीति में नहीं आना चाहिए था। 

एक यूजर ने लिखा, "आपके ईगो और घमंड के कारण आप चुनाव हारी हैं।" यूजर ने आगे लिखा, आप अपनी हार के लिए अमेठी के लोगों को दोष क्यों दे रही हैं। यह आपका सरासर घमंड था, जिसकी कीमत आपको अमेठी में चुकानी पड़ी। जीवन के लिए सबक - लोगों को कभी कम मत समझो और राहुल गांधी से कभी खिलवाड़ मत करो।" वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा, "आप तुलसी ही ठीक थी, क्या जरूरत थी नेता बनने की।" ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर मोहम्मद जुबैर ने भी स्मृति ईरानी को नहीं बख्शा है। जुबैर ने कमेंट में लिखा, "आपने अपना ज्यादातर समय लोकल रिपोर्टर और स्ट्रिंगर्स को धमकाने में बिताया है।"

मोहम्मद जुबैर ने ट्विटर पर लिखा, "मोदी अब शिक्षा, विश्वविद्यालय, गरीबी, अर्थव्यवस्था, डिजिटल इंडिया, प्रौद्योगिकी आदि के बारे में बोल रहे हैं। चुनावी रैलियों के दौरान वह मुसलमान, मंगलसूत्र, मुजरा, मटन, मुगल, मछली, मुस्लिम लीग, घुसपेटिया, जियादा बच्चे, लव जिहाद, वोट जिहाद, जमात… में व्यस्त थे।" इसे शेयर करते हुए प्रकाश राज ने लिखा, "आदतें बड़ी मुश्किल से मरती हैं.. कट्टरवादी हमेशा कट्टर होता है।"

  उधर, यूजर्स के कमेंट पर स्मृति ईरानी ने इंस्टाग्राम और ट्विटर पर लिखा,"ऐसा ही जीवन है… मेरे जीवन का एक दशक एक गांव से दूसरे गांव तक जाने, जीवन बनाने, आशा और आकांक्षाओं का पोषण करने, बुनियादी ढांचे पर काम करने - सड़कें, नाली, खड़ंजा, बाईपास, मेडिकल कॉलेज और बहुत कुछ बनाने में गया। जो लोग मेरे साथ हार और जीत में खड़े रहे, मैं हमेशा उनकी शुक्रगुजार रहूंगी। जो आज जश्न मना रहे हैं उन्हें बधाई। और जो पूछ रहे हैं, "हाउज द जोश? मैं अब भी कहूंगी- अब भी हाई सर।"


गांधी परिवार का अमेठी से बहुत पुराना रिश्ता


गांधी परिवार का अमेठी से रिश्ता बहुत पुराना है। 1977 में राजीव गांधी के भाई संजय पूर्वी उत्तर प्रदेश की इस सीट से उम्मीदवार बने। तब दिल्ली के मसनद में इंदिरा गांधी की सरकार थी। लेकिन उसका गद्दा डोल रहा था। देशभर में इंदिरा विरोधी हवा चलने लगी। संजय गांधी इसे झेल नहीं पाये, लेकिन तीन साल बाद 1980 के लोकसभा चुनाव में संजय अमेठी से सांसद बन गए। विमान दुर्घटना में संजय की असामयिक मृत्यु के बाद 1981 में अमेठी में उपचुनाव हुआ। राजीव वह चुनाव जीत गए। 1991 के लोकसभा चुनाव के दौरान लिट्टे बम विस्फोट में राजीव की मृत्यु के बाद, कांग्रेस ने राजीव के करीबी सहयोगी सतीश शर्मा को अमेठी से मैदान में उतारा। वह भी जीते।

क्या भविष्य में पलटी मार लेंगे नीतीश..?

देवानंद सिंह 


सरकार के तीसरे कार्यकाल को लेकर कई बातें मीडिया में चल रहीं हैं। भले ही अभी मोदी सरकार बनाने में कामयाब हो जाएं, लेकिन क्या वह पांच साल तक सरकार चला पाएंगे, क्योंकि नीतीश कभी भी पलटी मार सकते हैं, इसीलिए तरह-तरह के सवाल सियासी गलियारों में चल रहे हैं। 


  नीतीश कभी भी पलटी मार सकते हैं, इस बात को लेकर इसीलिए भी चर्चा हो रही है, क्योंकि इसकी वजह यह भी है कि नीतीश कुमार एनडीए की बैठक में शामिल होने के लिए जिस फ्लाइट से दिल्ली गए, उसी प्लेन से तेजस्वी यादव इंडिया गठबंधन की बैठक में भाग लेने दिल्ली जा गए। अब इस संयोग को हवा इस रूप में लग गई कि क्या यात्रा के दौरान इंडिया गठबंधन में लौटने को लेकर बात तो नहीं हुई? इस शंका को बल इसलिए भी मिला कि खबर आ रही थी कि एनसीपी नेता शरद पवार ने नीतीश कुमार से बात की। मीसा भारती का बयान आया कि चाचा आ जाओ।





नीतीश कुमार की राजनीतिक जीवन मे हार-जीत का दौर चलता रहा है। कई बार जब लोग उन्हें चुका हुआ मान लेते हैं तो वो फिर से उठकर खड़े हो जाते हैं, जितना वह उठकर खड़े होते हैं, ठीक उसी तरह पलटी भी मार लेते हैं। भारतीय राजनीति में नीतीश कुमार ऐसे अकेले नेता हैं, जो पलटी मारने के लिए मशहूर हैं। भले ही, इसे संयोग कह लें या हकीकत, कभी-कभी स्थितियां ऐसी बन जाती है। जहां पलटी मारने पर एक बड़ा स्पेस दिखाई पड़ता है।  लोकसभा चुनाव के परिणाम को ही देख लें तो नीतीश कुमार के पास पलटी मारने का स्पेस खुद-ब-खुद चला आया है। लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार की 40 सीटों में से एनडीए को 30 सीटों पर जीत मिली है। जदयू को 12 सीटों पर सफलता मिली। ये संख्या बल इसलिए महत्वपूर्ण हो गया कि भाजपा को लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिली। एनडीए के अन्य दलों की सीटों को जोड़ दें तो वो संख्या 292 यानी बहुमत से 20 ज्यादा।


खतरा इसीलिए भी है, क्योंकि नीतीश कुमार ने दो-दो बार एनडीए और महागठबंधन का साथ छोड़ा है। साथ छोड़ने का कारण वो अपने आसपास के लोगों को बताते हैं। महागठबंधन का साथ छोड़ा तो बताया कि संजय झा ने कहा इसलिए एनडीए में चले आए। जब महागठबंधन के साथ गए तो ठिकरा ललन सिंह और विजेंद्र यादव पर फोड़ा था। ये राजनीतिक परिवर्तन के फैक्टर बनते हैं, आज भी नीतीश कुमार के पास ही हैं।


1974 में छात्र आंदोलन के साथ राजनीतिक जीवन का सफर शुरु करने वाले नेता नीतीश कुमार ने 1994 में जार्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था, जिसके बाद वे 1995 में लेफ्ट पार्टी के साथ गठबंधन में आकर चुनाव लड़ें, हालांकि नतीजा पक्ष में नहीं आने पर उन्होंने पलटी मारते हुए 1996 में एनडीए गठबंधन का दामन थाम लिया। इस गठबंधन के साथ उन्होंने काफी लंबी दूरी तय की और 2013 तक बिहार में सरकार बनाते रहें, जिसके बाद 2014 में जोरदार पलटी मारते हुए एनडीए को चुनौती डे डाली। उन्होंने 17 सालों तक एनडीए में काम करने के बाद 2014 लोकसभा चुनाव में खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। इस चुनाव में अकेली लड़ाई लडी और सफलता ना मिलने पर कांग्रेस का दामन थाम लिया। जिसके बाद 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने बीजेपी का बिहार से सफाया कर दिया, हालांकि दो साल सरकार चलाने के बाद नीतीश कुमार ने फिर पलटी मारी को आरजेडी-कांग्रेस से अलग हो गए। जिसके बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी से पुराना रिश्ता जोड़ते हुए बिहार के मुख्यमंत्री पद का शपथ लिया। साथ ही बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी को उप मुख्यमंत्री बनाया। 


साल 2017 से लेकर 2022 के शुरुआती महीने तक बीजेपी और जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने मिलकर बिहार में शासन किया, जिसके बाद नीतीश एक बार फिर नीतीश कुमार ने बीजेपी से पलड़ा झारते हुए आरजेडी का दामन थामा। डेढ़ साल तक सत्ता संभालने के बाद उन्होंने 28 जनवरी 2024 बीजेपी के साथ मिलकर नई सरकार बनाई और शपथ ग्रहण किया। आपको बता दें कि नीतीश कुमार अबतक 9 बार शपथ ग्रहण कर चुके हैं। वहीं, देश भर में राज करने वाली बीजेपी बिहार में अबतक एक बार भी मुख्यमंत्री पद नहीं ले सकी है। अब देखना होगा कि नीतीश पांच साल तक एनडीए गठबंधन में ही रहेंगे या फिर पलटी मारकर खेमा बदल लेंगे।

Monday 4 March 2024

भाजपा के लिए खतरे की घंटी है कल्‍पना सोरेन की सियासी मैदान में धमाकेदार एंट्री

देवानंद सिंह


आखिरकार पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्‍नी कल्‍पना सोरेन की पत्‍नी कल्‍पना सोरेन की सियासी मैदान में एंट्री हो गई है, बकायदा, उन्‍हें दुमका से लोकसभा चुनाव 2024 के लिए प्रत्‍याशी बना दिया गया है, जिस तरह उन्‍होंने भावुक होकर लोगों के बीच अपना संदेश पहुंचाया, वह आने वाले चुनावों में गठबंधन के लिए बहुत बड़ी संजीवनी का काम कर सकता है। गिरिडीह की धरती पर झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के 51वें स्थापना दिवस समारोह में जिस अंदाज में उन्होंने पार्टी का झंडा लहराया, वह पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ ही प्रदेश की जनता को भावुक करने वाला क्षण था, क्‍योंकि कल्‍पना सोरेने ने खुद ही बहुत ही भावुक अंदाज में अपना संबोधन दिया। उनकी इस अंदाज में की गई एंट्री को किसी धमाकेदार एंट्री से कम नहीं माना जा सकता है, जो निश्चित ही लोकसभा चुनावों में भाजपा को लिए परेशानी का सबब बनेगा।


कल्‍पना सोरेन ने केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोलकर भाजपा को सीधे चुनौती देते हुए, उसके वोट बैंक में सेंध लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। उन्‍होंने स्‍पष्‍ट शब्‍दों में कहा कि सूबे में जब से हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनी, तभी से दिल्ली में बैठी केंद्र की सरकार ने साजिश रचना शुरू कर दिया था। उन्‍होंने कहा कि जैसे-तैसे जन-जन के नेता हेमंत सोरेन को फंसाने की साजिश रची जाने लगी, केंद्र की मोदी सरकार झारखंडियों की अस्मिता के रक्षक हेमंत को झुकाने पर अड़ी रही। हेमंत ने झारखंड की अस्मिता बचाने के लिए झुकना वाजिब नहीं समझा तो उन्हें जेल में डाल दिया गया।


उन्‍होंने आगे भावुक अंदाज में कहा, रविवार को वह अपने जन्मदिन पर जेल गई और हेमंत से मिलीं। हेमंत ने उनके कांधे पर हाथ रखा और कहा कि हिम्मत नहीं हारना है। हेमंत ने कहा कि उन्हें जेल भेजा गया है, वे अभी जीवित हैं, हमें केंद्र की दमनकारी नीतियों से हर हाल में लड़ना होगा। निश्चित तौर पर कल्‍पना सोरेन की एंट्री सियासी तौर पर इसीलिए भी महत्‍वपूर्ण है, क्‍योंकि आने वाले दिनों में लोकसभा का महत्‍वपूर्ण चुनाव होना है और भाजपा के किले की ध्‍वस्‍त करने का गठबंधन हर संभव प्रयास कर रही है, लेकिन भाजपा ने कई ऐसे मुद्दों के माध्‍यम से गठबंधन की राजनीति का ध्‍वस्‍त करने का हर संभव प्रयास किया है, ऐसे में झारखंड जैसे आदिवासी बाहुल्‍य राज्‍य में सियासी हवा कल्‍पना सोरेन के चुनाव मैदान में उतरने से न बदले, इससे बिल्‍कुल भी इंकार नहीं किया जा सकता है।


कल्‍पना सोरेन ने भी इसे खुलेतौर पर जाहिर करने का प्रयास किया कि हेमंत की गिरफ्तारी से झारखंड की एक-एक जनता गुस्से में है। इस गुस्से को दबाना है और एक-एक वोट से केंद्र की सरकार को जवाब देना है। कल्‍पना सोरेने ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार ने हेमन्त जी को जेल में नहीं डाला है,  बल्कि झारखण्ड के स्वाभिमान और आत्म-सम्मान को जेल में डाला है, इसका करारा जवाब मिलेगा। आने वाले वक्त में इसका करारा जवाब दिया जायेगा। आगे उन्‍होंने और भावुक अंदाज में कहा- मैं सोच कर आयी थी कि जैसा हेमन्त जी ने माननीय विधानसभा में कहा था कि "मैं आंसू नहीं बहाऊंगा, आंसू वक्त के लिए रखूंगा। केंद्र की भाजपा सरकार के लिए आंसू का कोई मतलब नहीं है।



 आदिवासी, दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यक के आंसुओं का इनके सामने कोई मोल नहीं है।", मैं भी आंसू नहीं बहाऊंगी। मगर, आप सभी के अथाह स्नेह और आशीर्वाद के सामने मैं अपने-आप को रोक न सकी। उन्‍होंने आगे कहा, जब तक झारखण्डी योद्धा हेमन्त सोरेन जी केंद्र सरकार और बीजेपी के षड्यंत्र को परास्त कर हम सब के बीच नहीं आ जाते, तब तक उनका यह एकाउंट, मेरे, यानी उनकी जीवन साथी कल्पना मुर्मू सोरेन द्वारा चलाया जाएगा। हमारे वीर पुरुखों ने अन्याय और दमन के खिलाफ हूल और उलगुलान किया था, अब फिर वह वक्त आ गया है।



झारखण्डवासियों और झामुमो परिवार के असंख्य कर्मठ कार्यकर्ताओं की मांग पर मैं सार्वजनिक जीवन की शुरुआत कर रही हूं। जब तक हेमन्त जी हम सभी के बीच नहीं आ जाते तब तक मैं उनकी आवाज बनकर आप सभी के बीच उनके विचारों को आपसे साझा करती रहूंगी, आपकी सेवा करती रहूंगी। आप सभी का स्नेह और आशीर्वाद पूर्व की भांति बना रहे। इस बीच उन्‍होंने लड़े हैं, लड़ेंगे! जीते हैं, जीतेंगे! का संदेश देकर चुनावी बिगुल भी फूंक दिया। कल्‍पना सोरेन की भावुकता में सभा में उपस्थित जनता भी भावुक हो गई और जिस तरह जनता ने उन्‍हें समर्थन किया, वह भी अपने-आप में अद्भुत था। मौजूद भीड़ ने भी उन्‍हें समर्थन देते हुए कहा, जेल का ताला टूटेगा, हेमंत सोरेन छूटेगा, जो इस बात का साफतौर पर दर्शा रहा था कि आगामी चुनावों को लेकर राज्‍य की जनता का क्‍या मूड है, निश्चिततौर पर कल्‍पना सोरेन की सियासी मैदान में एंट्री से झारखंड की सियासी तस्‍वीर बदलती हुई नजरर आने लगी है। हेमंत सोरेन के जेल चले जाने के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि झारखंड में बीजेपी विपक्ष का सूपड़ा साफ कर सकती है, लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिखाई दे रहा है, बल्कि अब परेशानी भाजपा के लिए खड़ी होने वाली है, क्‍योंकि कल्‍पना सोरेन ने जिस अंदाज में जनता से आशीर्वाद मांगा, उसे प्रदेश की जनता स्‍वीकार न करे, ऐसा संभव नहीं दिखता है। 

Sunday 3 March 2024

बीजेपी की पहली सूची में संतुलन बनाने की भरपूर कोशिश

बीजेपी की पहली सूची में संतुलन बनाने की भरपूर कोशिश 

 

देवानंद सिंह 



लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जिस तरह से बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति ने 16 राज्यों में 195 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, उससे राजनीतिक तौर पर कई संकेत मिलते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इस बार बहुत चेहरे बदलने का प्रयोग नहीं किया गया है। सामान्य रूप से देखा जाए तो बीजेपी अपने उम्मीदवारों की सूची मे बड़ी संख्या में चेहरे का बदलाव करती है, लेकिन इस बार अब तक जारी सूची में बदलाव केवल उन राज्यों में ही दिख रहा है, जहां विपक्षी गठबंधन का नया समीकरण उभरा है या फिर उम्मीदवार के खिलाफ भारी सत्ताविरोधी लहर चल रही हो।

 

 

बीजेपी की पहली सूची में 34 केंद्रीय मंत्रियों को भी स्थान मिला है। ऐसा माना जा रहा है कि उम्मीदवारों का चयन बीजेपी को 370 और राजग को 400 से अधिक सीटों के लक्ष्य को ध्यान में रखकर किया गया है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर सर्वे कराने के बाद प्रदेश की चुनाव समितियों में उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा हुई। प्रदेश चुनाव समितियों की रिपोर्ट के आधार पर प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में हुई केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में उम्मीदवारों के चयन पर मुहर लगाई गई। 195 उम्मीदवारों वाली पहली सूची में पहला नाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का है, जो अपने पुराने क्षेत्र वाराणसी से तीसरी बार मैदान में होंगे। उनके साथ ही राजनाथ सिंह लखनऊ और अमित शाह गांधीनगर अर्जुन मुंडा खूंटी से फिर मैदान में होंगे।

 

राज्यसभा आए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को राजस्थान के अलवर, मनसुख मांडविया को गुजरात के पोरबंदर और राजीव चंद्रशेखर को केरल के तिरूअनंतपुरम से टिकट दिया गया है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लव देब को भी टिकट मिला है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को कोटा से फिर से टिकट मिल गया है।

 

दिल्ली में मनोज तिवारी के छोड़कर अन्य चेहरे नए हैं। जहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन हुआ है, वहां बदलाव देखने को मिला है। पार्टी ने अब तक जारी पांच उम्मीदवारों की सूची में से चार नए नाम दिए हैं। नई दिल्ली से मंत्री मीनाक्षी लेखी का टिकट काटकर यहां नई कार्यकर्ता और सुषमा स्वराज की पुत्री बांसुरी स्वराज को उम्मीदवार बनाया है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कुछ नामों के बदलाव का बड़ा कारण यह भी है कि वहां कई सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाया गया था। उधर, केरल में कांग्रेस के दिग्गज नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी और अभिनेता सुरेश गोपी के साथ तिरुवनंतपुरम से शशि थरूर के खिलाफ केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को चुनाव मैदान में उतार कर भाजपा ने केरल के तिलिस्म तोड़ने की भी रणनीति बनाई है। वहीं, पिछले दिनों भाजपा में शामिल हुई कांग्रेस की सांसद गीता कोडा को सिंहभूम से टिकट दिया गया है।

 

 

इसी तरह से बसपा को छोड़कर भाजपा में आने वाले रितेश पांडेय को भी अंबेडकरनगर से उम्मीदवार बनाया गया है। कुल मिलाकर, बीजेपी ने अपनी पहली सूची में सभी वर्गों, समाज और जातियों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है, इनमें 34 महिलाएं, 27 अनुसूचित जाति, 18 अनुसूचित जनजाति और 57 ओबीसी से आते हैं।

 

वहीं, युवा शक्ति को अहमियत देते हुए 50 साल से कम उम्र के 47 युवाओं को भी मैदान में उतारा गया है, लेकिन आने वाली सूचियों में क्या बदलाव होंगे यह देखना महत्वपूर्ण होगा।

Friday 1 March 2024

हिमाचल संकट व चिराग कोल्हान तो बस झांकी है, कांग्रेस को अपने परंपरागत गढ़ों में झुलसाएगी राम मंदिर बायकॉट की तपिश

हिमाचल संकट व चिराग कोल्हान तो बस झांकी है, कांग्रेस को अपने परंपरागत गढ़ों में झुलसाएगी राम मंदिर बायकॉट की तपिश



देवानंद सिंह

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जिस कांग्रेस के अंदर सब ठीक नहीं चल रहा है, जो अच्छा संकेत नहीं है, क्योंकि हर तरफ कांग्रेस को झटके पर झटके लग रहे हैं। हिमाचल में आए सियासी को ले लें या फिर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा का पार्टी दामन छोड़कर बीजेपी का दामन थामने का प्रकरण हो। यहां तक कि अयोध्या में बने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से दूरी बनाकर भी कांग्रेस ने बड़ी गलती कर दी, निश्चित ही इससे लगता है कि कांग्रेस को राम मंदिर बायकॉट की तपिश परंपरागत गढ़ों में भी झुलसाएगी। कांग्रेस इस सियासी नुकसान को पचा पाएगी, यह बहुत बड़ा सवाल है।



हिमाचल में भले ही सुक्खू सरकार पर मंडरा रहे संकट के बादल फ़िलहाल तो टलते दिख रहे हैं, लेकिन ये हालात कब तक ठीक रहेंगे, इसका भरोसा नहीं है, क्‍योंकि अभी हालात सामान्‍य नहीं हैं, हालांकि बाहरी तौर यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि सरकार में सबकुछ ठीक है और सुक्‍खू सरकार चलती रहेगी। पर्यवेक्षक सरकार के संकट को बागी नेताओं से बात करके दूर करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं, लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि आखिर पार्टी अदरूनी गुटबाजी को खत्म करने में कब कामयाब हो पाती है। जिस गुटबाजी की वजह से छह विधायकों को अयोग्य घोषित किया गया है, उसने राजनीतिक हालात और पेचीदा बना दिया है। विधानसभा के स्पीकर कुलदीप पठानिया ने कांग्रेस के इन छह विधायकों के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया। हिमाचल के राजनीतिक इतिहास में यह इस तरह का पहला मामला है।

 

 

 

वैसे इस मामले से पार्टी के अंदर स्थिति सामान्‍य होने के बजाय और जटिल होगी। यह कहा जा रहा है कि ये विधायक बीजेपी की ओर जा सकते हैं, उससे प्रदेश में बीजेपी को मजबूती मिलेगी, इससे न केवल सुक्‍खू सरकार पर संकट बढ़ेगा, बल्कि आगामी लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस को नुकसान झेलना पड़ेगा। राज्‍य के इन हालातों के बाद निश्चित ही बीजेपी के अंदर उत्‍साह का माहौल है। बीजेपी के पास 25 विधायक हैं, लेकिन राज्यसभा चुनाव में अपने कैंडिडेट हर्ष महाजन को जिताने के बाद वह और भी ताक़तवर दिख रही है। कांग्रेस के छह विधायकों के अयोग्य घोषित होने के बाद हिमाचल विधानसभा में विधायकों की संख्या 68 से 62 हो गई है। फ़िलहाल, कांग्रेस के 34 और बीजेपी के 25 सदस्य हैं, यानी 62 सदस्यों की स्थिति में कांग्रेस के पास सामान्य बहुमत है। पर देखना होगा कि सुक्‍खू सरकार कब तक बरकरार रह पाती है।

 

 

 

झारखंड में भी जिस तरह कांग्रेस को उसके गढ़ में झटका लगा है, उसका असर लोकसभा चुनावों में अवश्य दिखेगा। कांग्रेस के इकलौते सांसद गीता कोड़ा को पार्टी में इंट्री करवाने के बाद अब भाजपा की नजर पच्छिमी सिंहभूम से कांग्रेस के इकलौते विधायक सोना राम सिंकु को अपने पाले में लाने की है। बताया जा रहा है कि भाजपा की कोशिश सोना राम सिंकू की नाराजगी को हवा देकर कांग्रेस से दूरी बनाने की है। दरअसल, झारखंड की कमान सौंपने वक्त ही बाबूलाल को झामुमो का सबसे मजबूत किला संताल कोल्हान को ध्वस्त करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी, और इस टास्क को पूरा करने के लिए बाबूलाल कोल्हान के किसी बड़े सियासी चेहरे को भाजपा में शामिल करने को प्रयासरत थे, उनकी नजर गीता कोड़ा पर थी, आखिरकार वह गीता कोड़ा को बीजेपी में शामिल कराने में सफल हुए।

 

 

 

जहां तक राम मंदिर का सवाल है, राम मंदिर कार्यक्रम से दूरी बनाने का असर कांग्रेस पर दिख रहा है। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा इस बात का है कि इस बार उसके परंपरागत गढ़ उसके हाथ से छिटक सकते हैं, खासकर यूपी में। कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली अमेठी-रायबरेली सीट पर सबकी निगाहें होंगी। दोनों ही सीटों के चुनाव गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी के लिए महत्वपूर्ण होंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि अभी पार्टी एक चुनौतीपूर्ण फेज से गुजर रही है। हिमाचल प्रदेश में देखे गए राजनीतिक उथल-पुथल का असर कांग्रेस पार्टी के गढ़ अमेठी और रायबरेली में भी देखने को मिल सकता है। शिमला से अमेठी और रायबरेली की दूरी करीब 1000 किलोमीटर से ज्यादा है, लेकिन वहां उठा तूफान जल्द ही उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के गढ़ को प्रभावित कर सकता है।

 

 

 

अमेठी सीट पर राहुल गांधी 2019 का लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। उन्हें बीजेपी की दिग्गज नेता स्मृति ईरानी ने शिकस्त दी थी। वहीं, रायबरेली की बात करें तो अब तक यहां से सोनिया गांधी सांसद रही हैं। हालांकि, इस बार वो राज्यसभा चली गई हैं। ऐसे में, चर्चा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा इस सीट से दावेदारी कर सकती हैं।

 

 

 

हालांकि, सूबे में जिस तरह का माहौल देखने को मिल रहा उसमें राम मंदिर मुद्दे पर कांग्रेस नेतृत्व के स्टैंड का असर इन सीटों पर आगामी लोकसभा चुनाव में नजर आ सकता है। इन हालातों में कांग्रेस अपने गढ़ को कैसे बचा पाएगी, यह देखना काफी दिलचस्प होगा।

गीता कोड़ा को साथ लेकर अपने प्रयोग में सफल हुई बीजेपी....!

गीता कोड़ा को साथ लेकर अपने प्रयोग में सफल हुई बीजेपी....!

देवानंद सिंह 

सिंहभूम से सांसद और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा ने कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी का दामन थामकर झारखंड में सियासी हलचल बढ़ा दी है। गीता कोड़ा का बीजेपी का दामन थामने के पीछे इसे बीजेपी का सियासी दांव कहा जाए या फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली सरकार में उनकी खराब होती जा रही स्थिति रही, हालांकि लोकसभा चुनावों के मद्देनजर ये दोनों ही परिस्थितियां जिम्मेदार इसीलिए मानी जा सकती हैं, क्योंकि कांग्रेस में रहते जहां गीता कोड़ा को आगामी लोकसभा चुनावों में सिंहभूम से टिकट नहीं मिलने की अटकलें थीं, वहीं बीजेपी के पास सिंहभूम से चुनाव लड़ने के लिए कोई दमदार चेहरा नहीं था, 



इसीलिए गीता कोड़ा का कांग्रेस का दामन छोड़ना बीजेपी के लिए अच्छा संकेत माना जा सकता है। एक तरह से  सिंहभूम के लिए दमदार चेहरा खोजने का बीजेपी का प्रयोग सफल हुआ। द्दरासल, गठबंधन में ज्यादा भाव नहीं मिलने की वजह से गीता कोड़ा झारखंड में कांग्रेस, जेएमएम और आरजेडी गठबंधन पिछले काफी समय से नाखुश थीं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की मौजूदगी में गीता कोड़ा ने पार्टी की सदस्यता लीं।


बता दें कि गीता गोड़ा 2009 से 2019 तक दो बार विधायक रह चुकी हैं। 2019 में पहली बार सिंहभूम लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं थी। गीता कोड़ा 2019 में कांग्रेस के लिए झारखंड से एकमात्र सांसद थीं। गृहमंत्री अमित शाह के झारखंड दौरे के बाद से ही उनके बीजेपी में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं, हालांकि उन्होंने इन अटकलों पर अक्सर विराम लगाया, लेकिन 26 फरवरी 2024 को आखिरकार उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया। अब यह तय माना जा रहा है कि 2024 के आम चुनाव में बीजेपी उन्हें टिकट देकर चुनाव में उतारेगी। अगर, वह कांग्रेस में ही रहती तो उन्हें 2024 में कांग्रेस द्वारा संसदीय सीट का टिकट नहीं दिया जाना तय था। 




दरअसल, झारखंड मुक्ति मोर्चा के जिला अध्यक्ष सुखराम उरांव ने झारखंड के मुख्यमंत्री के पास अपना अल्टीमेटम भेज दिया था, जिसमें सिंहभूम संसदीय सीट कांग्रेस को नहीं देकर झारखंड मुक्ति मोर्चा को देने की बात कही गई थी। इस संबंध में जिला अध्यक्ष सुखराम उरांव ने महत्वपूर्ण तर्क देते हुए लिखा कि सिंहभूम संसदीय क्षेत्र के अंदर रहने वाली 6 विधानसभा सीटों में से पांच विधानसभा सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है तो वे किस आधार पर कांग्रेस के लिए संसदीय सीट छोड़ दें। मालूम हो सुखराम उरांव खुद सिंहभूम संसदीय सीट पर 2024 का संसदीय चुनाव लड़ना



 चाहते हैं। इस तरह गीता कोड़ा की स्थिति बेसहारा के समान हो गई थी, इसीलिए 2024 का चुनाव कांग्रेस से लड़ने की उनकी उम्मीद पर लगभग पानी फिर गया था, इसलिए सही समय देखकर वह बीजेपी में चली गईं। ऐसा नहीं कि बीजेपी ने गीता कोड़ा को अपने दल में लेकर उन पर कोई एहसान किया है। सिंहभूम संसदीय सीट पर चुनाव लड़ने लायक भारतीय जनता पार्टी के पास कोई नेता नहीं था, दूसरा, गीता कोड़ा के जाने के बाद सुखराम उरांव का झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से संसदीय चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। अगर, ऐसी स्थिति आती है तो जमशेदपुर संसदीय सीट कांग्रेस के हिस्से में जाएगी, जिससे डॉक्टर अजय कुमार को चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा, लेकिन इस सियासी बदलाव का असर लोकसभा चुनावों में देखने को जरूर मिलेगा। 





दीगर बात है कि गीता कोड़ा के पति मधुकोड़ा ने झारखंड के मुख्यमंत्री रहने के दौरान इतना बड़ा घोटाला किया कि पूरे देश में झारखंड की छवि धूल में मिल गई थी। इस बात को लेकर बीजेपी की इज्जत उछालने का मौका दूसरे दलों को मिल गया है। 2009 में जब मधु कोड़ा को भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाना पड़ा, तब गीता कोड़ा ने राजनीति में कदम रखा था। अब देखने वाली बात होगी कि क्या बीजेपी का दामन थामकर गीता कोड़ा गठबंधन सरकार के लिए सियासी चुनौती पेश कर पाएंगी या नहीं।

नई सरकार में देखने को मिलेगा बहुत कुछ नया

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