Wednesday 23 January 2019

आंकड़ों का बजट

आकड़ों का बजट
देवानंद सिंह
वित्तीय वर्ष 2०19-2० के लिए मुख्यमंत्री ने 85,429 करोड़ रुपए का बजट पेश किया है। पहली बार सरकार ने 'बाल बजट’ भी पेश किया है। यानि इसके तहत बच्चों के कल्याण के लिए विश्ोष व्यवस्था की गई है। सरकार की तरफ से कोशिश की गई है कि बजट में हर वर्ग को शामिल किया जाए। सरकार इस बजट को जहां हर वर्ग के कल्याण का बजट मान रही है, वहीं विपक्ष का मानना है कि बजट में महज आंकड़ेबाजी की बाजीगिरी की गई है, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। लिहाजा, मुख्यमंत्री को यह भी साफ करना चाहिए था कि आखिर योजनाओं को धरातल पर कैसे सफल बनाया जाएगा?

सरकार के बजट की बात करें तो इसमें कोई शक नहीं है कि बजट में हर वर्ग को टच करने की कोशिश नहीं की गई है। किसानों, बुजुर्गों,बच्चों, महिलाओं, ग्रामीणों से लेकर युवाओं के कल्याण के लिए कुछ न कुछ किए जाने की व्यवस्था में बजट में की गई है। विकास के परिपेक्ष्य में देख्ों तो शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग व कृषि आदि क्ष्ोत्रों का भी पूरी तरह बजट में फोकस किया गया है। मेडिकल शिक्षा पर विश्ोष जोर दिया गया है। सरकार ने बजट में आकड़ेबाजी का गेम कर इसे चुनावी बजट बनाने में कोई भी कोर-कसर नहीं छोड़ी है, क्योंकि आगामी लोकसभा चुनावों की अग्निपरीक्षा से बीजेपी नीत सरकार को गुजरना है। 

इसमें शक नहीं है कि झारखंड आज तेज विकास दर के लिए देश के दूसरे राज्यों के लिए एक मिसाल है, लेकिन कई क्ष्ोत्रों की दयनीय जमीनी हकीकत से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। शिक्षा के प्राथमिक स्तर के हकीकत को समझना जरूरी-सा लगता है, क्योंकि किसी भी राज्य की असली पहचान उसकी शिक्षा व्यवस्था से होती है। अगर, शिक्षा व्यवस्था ही चरमराई हुई हो तो हम आकड़ों को पेश करते रहें, उससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। कुल मिलाकर कहने का सार यह है कि राज्य की प्राथमिक शिक्षा का हाल काफी बुरा है। भले ही, प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा में नामांकन अनुपात में वृद्धि हुई हो, लेकिन सच्चाई यह है कि प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता की स्थिति बेहद दयनीय है। कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि 5वीं कक्षा के 4० फीसदी बच्चे ठीक ढंग से दूसरी कक्षा की किताब तक नहीं पढ़ पा रहे हैं। वहीं, दूसरी और तीसरी कक्षा के 5० फीसदी बच्चों को अक्षर ज्ञान तक नहीं है। ऐसे में, सवाल उठता है कि क्या स्कूलों में महज बच्चों की संख्या बढ़ाकर विकास होगा या फिर उनको मिलने वाली शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाकर। सरकार योजनाओं का संचालन कर स्कूल, कॉलेजों में छात्रों की संख्या तो बढ़ा दे रही है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लिहाजा, बजट में इस तरफ फोकस किया जाना चाहिए था आखिर किस प्रकार शिक्षा की गुणवत्ता पर सुधार लाया जा सकेगा। वहीं, सरकार यह भी कहती है कि आने वाले दिनों में राज्य मेडिकल शिक्षा का हब बन जाएगा। राज्य में पांच नए हॉस्पीटल खोले जा रहे हैं, जिसमें तीन हॉस्पीटल तो बनकर तैयार हो गए हैं, लगभग डेढ़ हजार बच्चे आगामी दो वर्षों में डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर लेंगे। डेढ़ हजार महज आकड़ा है, लेकिन क्या सरकार इस तरफ भी कभी सोचती है कि ये छात्र अपने प्रोफेशन पर काम करने के लिए झारखंड को ही चुनेंगे या फिर दूसरे राज्यों का रुख करेंगे। ऐसा इसीलिए भी, क्योंकि जो पुराने मेडिकल कॉलेज हैं, उन पर तकनीकी कारणों से एमसीआइ की तलवार हर समय लटकी रहती है। सरकार को गिड़गिड़ाना पड़ रहा है कि गुणवत्ता सुधार लेंगे, पर बजट में इसका जिक्र न होना बेहद चिंताजनक है। युवाओं को कुशल बनाने की बात की गई है, लेकिन उनके शिक्षा के स्तर पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। स्किल मिशन फिलहाल निजी व सरकारी क्ष्ोत्रों के बीच लूट का स्रोत बनता जा रहा है, कहीं मॉनिटरिंग नहीं हो रही है। शिक्षा के साथ-साथ ग्रामीण स्वास्थ्य भी बहुत मायने रखता है। सरकार ग्रामीण स्वास्थ्य की बात तो करती है, लेकिन बगैर स्वास्थ्य कर्मियों का ध्यान दिए कैसे ग्रामीण स्वास्थ्य को सुधारा जा सकेगा, इस पर बात नहीं करती है। ऐसे में, इससे संबंधित योजनाएं कैसे सफल हो पाएंगी, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। मेडिकल कॉलेजों से डॉक्टर पढ़ाई कर निकल रहे हैं, लेकिन अपने ही राज्य में डॉक्टरों के पद खाली रह जा रहे हैं। विश्ोषज्ञ डॉक्टर दूसरे राज्यों के शहरों में जाने को लेकर लालायित नजर आते हैं। ऐसे में, सरकार कैसे ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की नैया पार लगाएगी, यह बड़ा सवाल है। बजट में स्वास्थ्य सुविधाओं को निचले स्तर तक पहुंचाने के लिए मोहल्ला क्लीनिक व मुख्यमंत्री बाइक योजना शुरू करने की घोषणा की गई है। लेकिन सवाल यह है कि पंचायत स्तर पर जो स्वास्थ्य केंद्र खोले गए हैं, उसकी स्थिति कब सुधरेगी, इसके लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। इस पूरी प्रक्रिया में यह बात सरकार को सोचनी पड़ेगी कि महज चुनावी बजट है, इसीलिए आकड़ों की बाजीगिरी कर जनता को उलझा देते हैं, इससे काम नहीं चलेगा, बल्कि योजनाओं को धरातल पर लाने के लिए सरकार को अपने अधीन मॉनिटरिंग सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए भी कड़े कदम उठाने होंगे।

Monday 21 January 2019

राष्ट्र संवाद के 19 वें स्थापना दिवस समारोह में राज्यपाल

राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि राष्ट्र संवाद की पूरी टीम को 19 वर्षों तक अथक संवाद स्थापित करने के लिए बधाई। राज्यपाल ने कहा कि लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करना मीडिया के ईमानदार कार्यों पर निर्भर है। भारतवर्ष की राष्ट्रीय चेतना को सजग बनाने में मीडिया ने आशातीत योगदान दिया है। मीडिया का दायित्व है कि जनमानस को सजग एवं जागरूक कर राष्ट्र के विकास में भूमिका निभाए। सत्य, सामाजिक दायित्व और विश्वसनीयता तीनों का समावेश होना अत्यंत ही जरूरी है। मीडिया आज सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक, खेलकूद जगत, व्यवसाय, विज्ञान, धर्म इत्यादि सभी क्षेत्रों में पूर्ण रूप से प्रवेश कर चुकी है जो समाज के लिए शुभ संकेत है।


राज्यपाल ने कहा कि निष्पक्ष एवं निर्भीक होकर विभिन्न विषयों में जनमानस को जाग्रत करने में मीडिया की भूमिका है। उन्होंने कहा कि प्रेस का लक्ष्य महान होना चाहिए उसे सच्चा समाजसेवक होना चाहिए। पत्रकार बंधु समाज की रीढ़ हैं, देश और समाज का नेतृत्व करते हैं। सर्वविदित है कि बुद्धिजीवियों का महत्व निर्विवाद है उन्हें समाज में दायित्वों के प्रति जागरूक होना चाहिए और लोगों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य में बुद्धिजीवियों और पत्रकारों में अपनी भूमिका को भलीभांति समझा है। उन्होंने कहा कि  समाचार पत्रों में आम आदमी की सुरक्षा उनके विकास एवं अधिकारों की बात को मुखर करना मीडिया का दायित्व है। बाजार संस्कृति में पत्रकारिता सामाजिक सद्भाव की भी प्रमुख प्रवक्ता है। देश की संस्कृति को अक्षुण्ण रखने में तथा एक राष्ट्र के रूप में देश को सहेज कर रखने में समाचार पत्रों की महती भूमिका है। शहर से लेकर गांव तक आज घने जंगलों में भी मीडिया का प्रभाव पहुंच गया है। आज के समय में मीडिया का प्रभाव लोगों के अंदर इतना अधिक है कि लोगों के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है।


राज्यपाल ने कहा कि देश को आगे लाने में युवा संपादकों की भूमिका सराहनीय होनी चाहिए। उन्होंने आह्वान किया कि आप जितने भी युवा संपादक आए हैं अपनी भूमिका को समझें। राज्यपाल ने कहा कि मीडिया संस्थान लोगों की समस्याओं को सरकार की नजरों में ला सकते हैं और सरकार की जो उपलब्धियां, कमियां और खामियां हैं उन्हें भी लोगों के सामने ला सकते हैं। यह एक सेतु का काम करते हैं यह सेतु सशक्त होना चाहिए इसलिए इसे लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ भी कहा गया है। चतुर्थ स्तंभ कमजोर नहीं होना चाहिए। इसे मजबूत होना चाहिए और किसी से प्रभावित नहीं होना चाहिए।

*सांसद श्री विद्युत वरण महतो का संबोधन*
सांसद श्री विद्युत वरण महतो ने कहा कि राष्ट्र संवाद शुरुआत के दिनों से ही लगातार प्रकाशन में है। लगातार संघर्ष करते हुए और कम समय में अनेक उपलब्धियां हासिल की। समाज के प्रति इनका समर्पण भाव देखने को मिलता है इतने कम संसाधनों में भी दूरदराज के क्षेत्रों की खबरों को भी बखूबी प्रस्तुत किया।

*मंत्री श्री सरयू राय का संबोधन*
खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग, झारखंड सरकार के मंत्री श्री सरयू राय ने कहा कि राष्ट्र संवाद से हम सभी अच्छी तरह परिचित हैं। इन्होंने सतत प्रकाशन का 19 वां वर्ष पूर्ण किया है। यह इनके सजग और सतत प्रयासों का प्रतिफल है। मंत्री सरयू राय ने राष्ट्र संवाद परिवार को बधाई देते हुए कहा कि मैं उम्मीद करता हूं कि आने वाले समय में इसी तरह से यह पत्रिका अपनी सभी विशेषताओं के साथ हम सभी के बीच आती रहेगी। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता जगत की कई कठिनाइयों से रूबरू होते हुए राष्ट्र संवाद आज हम सभी के पास पहुंची है। उन्होंने कहा कि लघु पत्रिकाओं से यह उम्मीद रहती है कि जिन महत्वपूर्ण खबरों को बड़े अखबारों में स्थान नहीं मिल पाता उन खबरों से भी हम वाकिफ होंगे। अखबार समाचारों का ही माध्यम नहीं होकर सीखने और समझने का भी जरिया हैं। हमेशा ही अखबार सत्ता और व्यवस्था के समक्ष मुखातिब रहते हैं। सजग पत्र पत्रिका का प्रथम दायित्व होता है कि वह यह देखें कि हमारी व्यवस्थाओं में सुधार की गुंजाइश है तो उसकी ओर संकेत करें और व्यवस्था के संचालकों का ध्यान इस ओर आकृष्ट करें।

Sunday 20 January 2019

काफ़ी टेबल बुक की एक झलक .....

कठिन राजनीतिक संघर्ष से निकली शख्सियत

देवानंद सिंह
21वीं सदी के इस दौर में भी जहां महिलाओं के अधिकारों का हनन जारी है, वहीं महिलाओं ने अपनी लगन, दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत की बदौलत वह मुकाम हासिल किया है, जो समाज के लिए प्रेरणादायी है। शिक्षा, साहित्य, खेलों से लेकर राजनीति में भी कई महिलाओं ने एक मुकाम स्थापित किया है। जब राजनीतिक पार्टियां संसद में महिलाओं की संख्या बढ़ाने को लेकर एकमत नहीं हो पा रही हैं, तब भी महिलाएं अपनी विलक्षण प्रतिभा की बदौलत इतिहास में जगह बना रहीं हैं।

 झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ऐसी ही शख्सियतों में एक हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी शिखर को छुआ है। उन्हें राज्य की पहली महिला राज्यपाल होने का गौरव हासिल है। जिस तरह उन्होंने एक पार्षद से लेकर झारखंड के राज्यपाल का सफर पूरा किया है, वह न केवल सभी महिलाओं के लिए, खासकर आदिवासी महिलाओं के लिए आदर्श और प्रेरणादायक है। वह ऐसे राज्य से ताल्लुक रखती हैं, जहां 2014 की मोदी लहर में भी भाजपा का महज एक सीट पर खाता खुल पाया था। राज्य में लोकसभा की 21 सीटें हैं। 20 सीटें बीजद के हक में गई थीं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनका राजनीतिक संघर्ष कितना कठिन होगा।
 वह वर्ष 2000 से 2004 तक ओडिशा विधानसभा में रायरंगपुर से विधायक तथा राज्य सरकार में मंत्री भी रहीं। वह पहली ओडिया नेता हैं, जिन्हें किसी भारतीय राज्य की राज्यपाल नियुक्त किया गया है।

वह भारतीय जनता पार्टी और बीजू जनता दल की गठबंधन सरकार में 6 मार्च 2000 से 6 अगस्त 2002 तक वाणिज्य और परिवहन के लिए स्वतंत्र प्रभार की राज्य मंत्री तथा 6 अगस्त 2002 से 16 मई 2004 तक मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री रहीं। बीजेपी के दिग्गज लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, सुमित्रा महाजन जैसे नेताओं के साथ-साथ राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवारों में भी द्रौपदी मुर्मू का नाम सामने आ चुका है, जो उनकी अभूतपूर्व राजनीतिक शख्सियत को प्रदर्शित करता है। झारखंड विधानसभा में झामुमो मुख्य विपक्षी पार्टी है, उसी जनाधार की आजसू पार्टी भाजपा गठबंधन की सरकार में पार्टनर है। संयोग से द्रोपदी मुर्मू झारखंड की भी पहली आदिवासी महिला राज्यपाल हैं।

 द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के एक आदिवासी परिवार में हुआ था। रामा देवी विमेंस कॉलेज से बीए की डिग्री लेने के बाद उन्होंने ओडिशा के राज्य सचिवालय में नौकरी से शुरूआत की। अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत उन्होंने 1997 में की थी, जब वह नगर पंचायत का चुनाव जीत कर पहली बार स्थानीय पार्षद (लोकल कौंसिलर) बनीं।

 साफ-सुथरी व अभूतपूर्व राजनीतिक छवि के कारण द्रौपदी मुर्मू को बीजेपी हाईकमान से हमेशा अच्छे और महत्त्वपूर्ण पदों के लिए वरीयता मिलती रही। वह बीजेपी के सामाजिक जनजाति (सोशल ट्राइब) मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य के तौर पर काम करती रहीं और 2015 में उनको झारखंड का राज्यपाल बना दिया गया। द्रौपदी मुर्मू का किसी राज्य का राज्यपाल बनना, उनके राजनीतिक करियर का सबसे बेहतरीन समय रहा होगा, परंतु बीजेपी के पास जैसे इस साफ-सुथरी छवि वाली आदिवासी नेता के लिए और भी बड़ी योजना थी। इसका उदाहरण था, देश के प्रथम नागरिक के लिए उनके नाम पर विचार किया जाना। राज्यपाल के रूप में भी उनकी विराट छवि व सोच हमेशा उजागर होती रही है। वह राज्य की संवैधानिक मुखिया के तौर पर अभूतपूर्व कार्य कर रही हैं।

   मंत्री परिषद् और राष्ट्रपति के मध्य संवाद, समन्वय का महत्वपूर्ण दायित्व राज्यपाल के पद को मजबूत और सशक्त बनाता है। यह सुखद है कि झारखंड राज्य के सबसे बड़े संवैधानिक पद को संभालने के बाद से ही द्रोपदी मुर्मू ने अपनी आत्मीय शैली और संवादधर्मी प्रकृति से राज्य को प्रगति के अनूकूल संदर्भों और प्रसंगों को सुदृढ़ बनाया है। उन्होंने अपने अभिभावकत्व से निरंतर प्रेरणा भरने का काम किया है। राज्यपाल राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी होता है, इसीलिए उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। कुलाधिपति के तौर पर उन्होंने अनवरत् अभिनय प्रयोग और शैली से झारखंड राज्य के विश्वविद्यालयों को एक नई ऊर्जा से भरने का काम किया है। राज्य के मजबूत और स्थायी विकास के लिए वह राज्य की आधारभूत संरचना को सुदृढ़ किए जाने पर हमेशा बल देती रही हैं। वह मानती रही हैं कि जब आधारभूत संरचना उन्नत होगी, तभी राज्य में निवेश का माहौल तैयार होगा तथा राज्य के विकास को गति मिलेगी। किसानों को लेकर भी उनकी चिंता समय-समय पर जगजाहिर होती रही है, क्योंकि वह जानती हैं कि खुशहाल किसान ही खुशहाल झारखंड कर निर्माण कर सकते हैं। लिहाजा, वह किसानों की बेहतरी तथा राज्य को खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने पर जोर देती हैं। वह इस मामले में राज्य सरकार के कार्यों की सरहना भी करती हैं, क्योंकि सरकार द्वारा लिए गए फैसलों से राज्य के किसानों में नई ऊर्जा का संचार हुआ है तथा वे अपने वर्तमान एवं भविष्य के प्रति आशान्वित नजर आ रहे हैं।

  सदन की गरिमा को ठेस न पहुंचे, इसीलिए वह समय-समय पर विधानसभा सदस्यों से अपील भी करती रहती हैं। वह हमेशा विधायकों से कहती हैं कि किसी भी विधेयक पर गंभीरतापूर्वक बहस हो, प्रतिपक्ष को विरोध करने का अधिकार है, लेकिन सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, सभी अनुशासित होकर चर्चा करें, सदन की गरिमा को कदापि ठेस न पहुंचे, क्योंकि अनुशासित रहकर की बेहतर सुझाव दिया जा सकता है। अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने में वह हमेशा तत्पर रहती हैं। वह संविधान में वर्णित राज्य की कार्यपालिका एवं विधायिका की प्रमुख तथा संविधान की राज्य में संरक्षक के रूप में अपनी महती भूमिका का निर्वहन करती हैं। वह हमेशा जोर देती हैं कि झारखंड में विकास की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। झारखंड में उपलब्ध संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग एवं मानव संपदा की क्षमताओं के सदुपयोग के बलबूते झारखंड देश के विकसित राज्यों की श्रेणी में अपना स्थान बना सकता है।

 वह सरकार द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करने में पीछे नहीं रहती हैं। वह स्वीकार करती हैं कि हमारी सरकार ने राज्य में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिक नीतियों में आवश्यक बदलाव किए हैं। इसी क्रम में औद्योगिक क्षेत्र में सिंगल विंडो सिस्टम को लागू किया गया तथा निवेश के अनुकूल माहौल तैयार करने हेतु श्रम कानूनों का सरलीकरण किया गया है। सरकार के अच्छे प्रयासों का ही प्रतिफल है कि श्रम सुधारों के मामले में झारखंड लगातार दूसरी बार देश में प्रथम स्थान पर रहा। राज्य में निवेश को आकर्षित करने हेतु मोमेंटम झारखंड के तहत देश-विदेश में रोड-शो का आयोजन कर झारखंड की ब्रांडिग की। वह मानती हैं कि अपनी नई नीतियों एवं फैसलों के आधार पर झारखंड औद्योगिक विकास के नए युग में प्रवेश कर चुका है। आज देश-विदेश की कई बड़ी औद्योगिक कंपनियां झारखंड में निवेश करने हेतु रुचि एवं तत्परता दिखा रही हैं। राज्य सरकार को हजारों करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं तथा इससे संबंधित एमओयू भी किया गया है। यह झारखंड के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
 वह राज्यों के विभिन्न जिलों का भ्रमण करने में भी पीछे नहीं रहती हैं, क्योंकि उनकी हमेशा आकांक्षा रहती है कि वह अधिक-से-अधिक लोगों से संवाद स्थापित करें। वह जिला मुख्यालय ही नहीं, बल्कि सुदूरवर्ती ग्रामों, जिन्हें पिछड़े ग्रामों अथवा क्षेत्रों की संज्ञा दी जाती है, का भ्रमण भी करती हैं। वहां वे उपलब्ध आधारभूत सेवाओं, जन-सुविधाओं, शिक्षा, स्वास्थ्य के संदर्भ में जानकारी लेती हैं, साथ ही क्षेत्रीय पदाधिकारियों से विकास की गतिविधियों की जानकारी लेती हैं। ब्रिटिश शासन का विरोध करने वाले बिरसा मुंडा के वंशजों से भी वह मिलती रहती हैं और राज्य के लोगों को बिरसा मुंडा का राष्ट्र एवं राज्य के प्रति त्याग और बलिदान से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करती रहती हैं। वह कहती हैं कि बिरसा मुंडा से इस राज्य का घनिष्ठ संबंध है, राज्य की प्रतिष्ठा इससे जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी दासता एवं शोषण के विरुद्ध धरती आबा ने कड़ा संघर्ष किया तथा ब्रिटिश शासन का विरोध किया। राष्ट्र एवं राज्य के प्रति उनका त्याग और बलिदान अविस्मरणीय है। उनका आदर्श चरित्र और विचार सदैव पथ प्रदर्शन का कार्य करता रहेगा। राजभवन को आमजनों से जोड़ने हेतु भी उन्होंने व्यापक प्रयास किए हैं। गांवों को सशक्त बनाने, सबके शिक्षित होने पर जोर, विश्वविद्यालयों की दशा में सुधार के लिए व्यापक पहल, कौशल विकास की दिशा में प्रयास, रचनात्मक कार्यों की दिशा में पहल, युवाओं से संवाद को बढ़ावा देने के साथ-साथ कल्याणकारी योजनाओं के विस्तार भी उनकी भूमिका सराहनीय रही है।

 वह हाईकोर्ट परिसर में विश्वविद्यालय मामलों के लिए आयोजित होने वाली लोक अदालतों को धारदार बनाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहती हैं। वह न्यायिक प्रणाली को सफल और सस्ता माध्यम भी मानती हैं और इसके प्रसार पर भी बल देती हैं। लोक अदालतों को जन आंदोलन का रूप मिले, इसके लिए वह हमेशा मुखर रहती हैं। आज प्रकृति तमाम संकट झेल रही है। ऐसे में, वह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी बहुत काम करती रहती हैं। वह इसके लिए लोगों की सहभागिता पर भी विशेष जोर देती हैं। वह कहती हैं कि पेड़ लगाना सिर्फ सरकार का काम नहीं है, बल्कि इसमें जन सहभागिता भी बहुत आवश्यक है। वह लोगों को हमेशा बड़े पैमाने पर फलदार पौद्ये लगाने के लिए प्रोत्साहित करती   रहती हैं।
 वह कहती हैं कि हमें अपने राज्य की हरियाली को बचाकर रखना है और अपने जीवन में अधिक-से-अधिक पेड़ लगाकर उनकी नियमित देखभाल करनी चाहिए। वह घेरलु उत्सवों जैसे विवाह, जन्मदिन, सालगिरह, अपने पूर्वजों की स्मृति में एवं अन्य शुभ अवसरों पर लोगों को विभिन्न प्रजाति के पौद्ये लगाए जाने के लिए भी प्रोत्साहित करती रहती हैं। वह इस बात को भली-भांति जानती हैं कि बढ़ती आबादी के दबाव से पर्यावरण पर असर हुआ है। पेड़ केवल हरियाली के लिए ही नहीं, बल्कि मानव समाज के लिए भी आवश्यक हैं। हमारे राज्य झारखंड का अर्थ ही है कि जहां पेड़-पौधों की बहुतायत हो।
  राज्य की शिक्षा की दशा को सुधारने में उनका कोई सानी नहीं है। इस क्षेत्र में उनके द्वारा किए जाने वाले व्यापक प्रयास उजागर होते रहे हैं। वह इस कार्य में न केवल अभिभावकों को आगे आने के लिए प्रेरित करती रहती हैं, बल्कि समाज को भी सक्रियता से अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए भी प्रेरित करती हैं। उनकी सोच है कि झारखंड का प्रत्येक बच्चा शिक्षित हो। साथ ही, वह कहती हैं कि शिक्षा का अभिप्राय केवल डिग्री या उपाधि हासिल करना नहीं है। डिग्री प्राप्त करना तो खानापूर्ति करना हो गया। इसके लिए वह व्यवसायिकता भी विशेष जोर देती हैं। इसके इतर वह शिक्षा के क्षेत्र में अब सिर्फ साक्षरता पर न जोर देते हुए गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुलभ कराने की सोच भी रखती हैं। वह मानती हैं कि हमारे सरकारी विद्यालयों में भी बच्चों को ऐसी गुणवत्तायुक्त शिक्षा मिले कि इन विद्यालयों में न केवल नामांकन के प्रति आकर्षण बढ़े, बल्कि ये अन्य विद्यालयों के लिए भी प्रेरक बनें। वह बच्चों के चारित्रिक विकास पर भी बल देती हैं। वह कहती हैं कि धन जाने पर फिर से प्राप्त हो सकता है, लेकिन एक बार चरित्र पर दाग लगने के बाद वह पुन: लौट कर नहीं आता है।
  राज्य का प्रथम नागरिक होने के नाते उन्हें स्पष्ट और समावेशी नागरिकता का बोध है, तो सह्दयता और भावुकता के सहज स्त्री सुलभ गुणों के कारण वह सामाजिक सदाशयता और सोद्धेश्यता को मानवीय तरीकों से देखने की अभ्यस्त भी हैं। विद्यालयों, अस्पतालों, सामाजिक संस्थानों के भ्रमण के दौरान शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक विषयों के लोक कल्याणकारी भावनाओं पर वह बल देती रहती हैं। इसी क्रम में स्त्री, दलित, दिव्यांग आदि के सामाजिक सशक्तिकरण के लिए वह अपनी पूरी प्रतिबद्धता उन पर न्यौछावर कर देती हैं। समाज के सभी वर्गों की सुध लेकर वह अपनी ममतामयी छवि का भी परिचय देती हैं। भारत की समासिकता उसकी सामाजिक समरसता में है। इसका आत्मसात करते हुए वह संवाद कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं, जिसमें सर्वधर्म सम्भाव और वसुधैव कुटुम्बकम के प्रत्यय पर बल देकर वह समाज के सभी वर्गों से मिलती हैं और उन्हें संरक्षण की छांव भी प्रदान करती हैं। झारखंड के प्रमुख पर्वों का आयोजन वह सामाजिक सद्भाव के विस्तार के लिए करती हैं, साथ ही जन सहभागिता को जोड़कर, उससे जुड़कर मानवता का संदेश देती भी नजर आती हैं। लोगों के प्रमाण के लिए राजभवन का प्रागंण खोलकर वह अपनी लोकतांत्रिक छवि को भी सशक्त रूप भी प्रदान करती हैं।

  राज्यपाल का पद संभालने से लेकर अब तक वह निरंतर अपनी सोदेश्यपूर्ण सक्रियता से राजभवन का अर्थ विस्तार करती आयी हैं। स्त्री होने के नाते ममता उनका धर्म है, भावना उनकी थाती, संवैधानिक प्रधान होने के नाते संवाद उनके अस्त्र हैं तो सौम्यता उनकी पहचान, कुलाधिपति होने के कारण तत्परता उनकी शैली है, तो सजगता एवं आवश्यक दिशा-निर्देश उनका प्रशासकीय व्यक्तित्व। इन सबसे ऊपर अभिभावकत्व का स्नेह और आत्मीयता उनकी यात्रा है, जिसमें वह हमेशा तत्पर रहती हैं।अपने अधीनस्थ अधिकारियों, प्रधान सचिव, शैक्षणिक सलाहकार, संबद्ध पदाधिकारियों और कर्मियों को निर्देश देकर वह एक नए कल की ओर बढ़ रही हैं, जहां भोर की किरणें अपनी सिंदूरी थाली में राज्य के विकास की आरती के लिए खड़ी हैं।  

Thursday 3 January 2019

कलम आज उनकी जय बोल .......

समाजसेवी स्वर्गीय कौशल किशोर सिंह जी को शब्द - श्रद्धांजलि
डॉक्टर कल्याणी कबीर 
जो अगणित लघुदीप हमारे ,
तूफानों में एक किनारे ,
जल जलाकर बुझ गए किसी दिन ,
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल ,
कलम आज उनकी जय बोल ।


राष्ट्रकवि दिनकर की यह पंक्तियाँ  अक्षरश : समाजसेवी आदरणीय कौशल किशोर सिंह जी के जीवन का सम्पूर्ण  चेहरा प्रस्तुत करती हैं । सच है कि व्यक्ति जिसका जीवन स्वेच्छा से समाज को समर्पित हो वो कभी समाज से प्रतिउत्तर की उम्मीद नहीं रखता ।कहते हैं  सज्जन की भूख तो किसी और की थाली में रोटी रखने से ही मिटती है, किसी के आँसू पोंछने से मिलने वाले सुकून को ओढ़कर सोने से ही उसे  नींद आती है ।निस्संदेह   ऐसे ही समाजसेवी थे आदरणीय कौशल किशोर सिंह जी जिन्हें शहर जमशेदपुर के समाज सेवा क्षेत्र का एक अमिट हस्ताक्षर कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
   आज यदि आप  अपने चारों ओर  देखें तो भौतिक सुख - सुविधा के पंजे में कसमसाता छटपटाता इस दौर का कमोबेश हर इंसान खुद के अंदर सिमटा हुआ  सा दिखता है । ऐसे वक्त में समाजसेवी के के सिंह जी इंसानियत के अथक दीपक की तरह थे । अन्नदान, वस्त्रदान और शिक्षादान उनके जीवन पुस्तक  के  महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम की तरह थे । राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से परे जाकर इन्होंने समाज के दबे कुचले शोषित वर्ग के काँधे पर हाथ रखा , उन्हें सहारा दिया ।सच पूछिए तो  बिरले धनाढ्य लोग ही  ऐसा कर पाते हैं ।शायद उनके जेब में रखे   सिक्के की गूँज इतनी तेज होती है कि मजलूमों की दर्द से सनी हिचकियों की आवाज उन तक पहुँच ही नहीं पाती हैं । पर इसके विपरीत स्वर्गीय के के सिंह के पास जो कुछ भी था उसका  20 प्रतिशत वो जरूरतमंदों के बीच बाँट दिया करते थे वो भी बिना किसी शोर शराबे और हो हल्ला का आयोजन किए । उनका मानना था कि माइक लगाकर, माला पहनकर , गुणगान के गीत गाकर की गई समाजसेवा मिलावटी होती है और उसके पीछे एक स्वार्थ छुपा होता है । पर के के जी मौन साधु बनकर  लोगों की मदद किया करते थे वो भी जातिवाद, सम्प्रदायवाद , प्रांतवाद  के संकुचित गलियारों से ऊपर उठकर । उनके साथ काम करने वाले कर्मचारियों के लिए भी  वे मालिक कम अभिभावक अधिक थे ।
    एक सफल उद्यमी होने के कारण माँ लक्ष्मी की कृपा उनपर हमेशा रही पर धन का घमंड उन्हें लेशमात्र तक छू नहीं गया था ।स्वदेशी आंदोलन के पक्षधर और बाबा रामदेव के प्रशंसक आदरणीय के के सिंह बेशक  एक ईमानदार देशभक्त थे ।वो कदाचित इस तथ्य से अवगत थे कि स्वदेशीकरण की नीति से गरीबों को भी रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे । दुष्यंत कुमार ने ऐसे ही महान लोगों के लिए  लिखा है —
गीत गाकर चेतना को वर दिया मैंने ,
आँसुओं से दर्द को आदर दिया मैंने ,
प्रीत मेरी आत्मा की भूख थी, सहकर
जिंदगी का चित्र पूरा कर दिया मैंने ।
ऐसे लोग समाज के मन से कभी विस्मृत नहीं होते जो  निजहित का त्याग कर परहित में तत्पर रहते हैं ।
    वो एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने कार्यों से युवा वर्ग को प्रेरित किया । उनकी कथनी और करनी का चेहरा अलग - अलग नहीं था ।अब इस दौर में ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं जो पेशे से व्यवसायी हों पर भावनाओं से समाजसेवी । साहित्य और शिक्षा के आग्रही थे आदरणीय के के सिंह जी ।
    जमशेदपुर से प्रकाशित होने वाली कई साहित्यिक पत्रिकाओं के साथ साथ राष्ट्र संवाद पञिका को उनका संरक्षण और मार्गदर्शन प्राप्त था ।उन्हें इस बात का भान था कि सद्साहित्य की खाद से ही समाज की मिट्टी में नैतिकता की पौध तैयार हो सकती है ।कदाचित इसलिए वे अच्छी पुस्तकों के प्रकाशन को प्रेरित करते थे । कह सकते हैं कि एक बिजनेसमैन होने के बावजूद वे  शिक्षा और साहित्य के प्रति एक  जागरूक सोच रखते थे । समाज और राष्ट्रहित का कोई भी मौका हो, ये जरूर आगे आते थे । ये अपने सहयोगियों से आग्रह करते थे कि ऐसे गरीब परिवार की जानकारी इकट्ठा करें जो अपने बच्चों को पढ़ाने - लिखाने में असमर्थ हैं ताकि उनकी मदद की जा सके । ऐसी सह्रदयता तो उसी मनुष्य का आभूषण हो सकती है जिसका जीवन समाज को समर्पित हो । उनके व्यक्तित्व को नमन करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर की ये पंक्तियाँ भी उन्हें समर्पित :—-
उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है
सुख नहीं धर्म भी नहीं , न तो दर्शन है
विज्ञान ज्ञान बल नहीं, न तो चिंतन है
जीवन का अंतिम ध्येय स्वयं जीवन है ।

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