Thursday, 31 March 2022

अभी हेमंत सोरेन का सियासी सरगर्मी से नहीं छूटने वाला है पाला

 देवानंद सिंह

भाजपा में रघुवर दास का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है, वहीं, बन्ना गुप्ता जननायक के तौर पर पूरे झारखंड में खुद का स्थापित कर चुके हैं

कई दिनों से सियासी सरगर्मी से जूझ रहे झारखंड का सियासी पारा नीचे उतरता नहीं दिख रहा है। झामुमो पार्टी विधायक सीता सोरेन और लोबिन हेंब्रम पर भाजपा के संपर्क में होने के आरोप लगने की बात सामने आने से एक तरह से राजनीति भूचाल आ गया है। इन दोनों ही विधायकों की शिकायत पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से की गई है। पार्टी अध्यक्ष शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को दोनों विधायकों की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी गई है। ऐसी बात सामने आई है कि दोनों ही विधायक पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं और लगातार संगठन विरोधी काम कर रहे हैं। पार्टी नेताओं को बताया गया है कि सरकार गिराने की मुहिम में ये दोनों विधायक पार्टी के निष्कासित पूर्व कोषाध्यक्ष रवि केजरीवाल के संपर्क में भी हैं, इनके साथ दोनों की विधायकों की सांठगांठ हैं। अब ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी हाईकमान दोनों विधायकों के खिलाफ एक्शन ले सकता है। वैसे, हेमंत सोरेन



 सरकार में चल रही यह उथल-पुथल नई नहीं है, पहले भी इस तरह की बातें सामने आती रही हैं। और इस तरह का सियासी समीकरण काफी दिनों से बन रहा था। अभी केवल इन दो विधायकों के नाम सामने आ रहे हैं, लेकिन सूत्रों के हवाले से यह बात भी सामने आ रही है कि झामुमो के आधा दर्जन से अधिक विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं। वहीं, कांग्रेस के कुछ विधायक भी इसी जुगत में लगे हैं। लिहाजा, हेमंत सोरेन सरकार पर खतरा बढ़ता ही जा रहा है। वैसे तो झामुमो कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रही है, लेकिन जिस तरह पार्टी के खुद के विधायक सरकार के कामकाज से नाखुश हैं और उन्होंने बगावती तेवर अपनाए हुए हैं, उससे सरकार कभी भी अल्पमत में आ सकती हैं, अब देखने वाली बात यह होगी कि किस तरह झामुमो इस सारी स्थिति को मैनेज करती है, क्योंकि यह पहला मौका नहीं है, जब सरकार के उपर खतरे के बादल मंडराए हुए हैं, बल्कि पहले भी हेमंत सोरेन सरकार को अस्थिर करने के प्रयास हो चुके हैं, जब राजधानी के एक होटल में पिछले साल जुलाई में छापेमारी हुई थी। पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया था। कांग्रेस के विधायक अनूप सिंह ने इस मामले में कोतवाली थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। जांच में सरकार गिराने की साजिश में शामिल लोगों के पास से कई जानकारियां सामने आईं थीं।

राज्य की सियासी पारे की गरमी के बीच कोल्हान की राजनीति भी भी चरम में दिख रही है।

दरअसल, पूर्वी सिंहभूम प्रभारी सिविल सर्जन डा. एके लाल की बर्खास्तगी के बहाने विधायक सरयू राय स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता पर हमलावर नजर आ रहे हैं। सरयू राय ने मांग की है कि या तो स्वास्थ्य मंत्री को बर्खास्त किया जाए या फिर उनका विभाग बदला जाए। सरयू राय के इस तरह के बयान सामने आने के बाद स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने भी अपना बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कहा कि झारखंड में कुछ ऐसे नेता है, जिन्हें यह पच नहीं रहा है कि एक गरीब का बेटा मंत्री बन गया है। यह सच भी है कि बन्ना गुप्ता की आम जनता के बीच संघर्ष किसी से छुपा नहीं है। जननायक के तौर पर उनका ग्रॉफ लगातार बढ़ता जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण हमने गत दिनों कांग्रेस के कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान भी देखा। वैसे तो, वह एक कार्यकर्ता सम्मेलन था, लेकिन सम्मेलन में भीड़ इतनी थी कि जैसे वह कोई बड़ी जनसभा हो। इस कमाल के पीछे बन्ना गुप्ता का ही व्यक्तित्व था, क्योंकि जो शख्स आम आदमी के बीच से उठकर जाता है, उसकी छवि जनता के बीच जननायक की ही होती है। आज बन्ना गुप्ता की छवि ऐसी बन गई है कि भीड़ उनके कार्यक्रमों में अपने-आप ही जुटने लगती है। इसीलिए सरयू राय के बयानों को कोई असर दिखेगा नहीं है, क्योंकि जब से बीजेपी से बगावत वह मोर्चे बनाकर सरकार और बीजेपी नेताओं को घेरने में लगे हैं, तब से वह अपने कार्यों के बल पर कम, अपनी बयानबाजी से ज्यादा चर्चित रहते हैं। उनकी राजनीति समाजहित के इर्द-गिर्द कम द्बेष की भावना से ज्यादा ओत-प्रोत दिखती है! राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ भी उनका यही रवैया रहा है, जिस तरह का रवैया अभी वह बन्ना गुप्ता के खिलाफ दिख रहा है, लेकिन इसका बहुत ज्यादा असर नहीं दिखने वाला है, जहां बीजेपी में रघुवर दास का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है, वहीं, बन्ना गुप्ता जननायक के तौर पर पूरे झारखंड में खुद का स्थापित कर चुके हैं।

Friday, 11 March 2022

किसान आन्दोलन के जनक थे स्वामी सहजानन्द सरस्वती ,स्वामी जी ने नारा दिया कैसे लोगे मालगुजारी, लट्ठ हमारा ज़िन्दाबाद

देवानंद सिंह

जयंती विशेष…..

कई मायनों में विशेष होने जा रही है स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती

धूमधाम से मनाई जाएगी स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती तैयारी पूरी

किसान आन्दोलन के जनक थे स्वामी सहजानन्द सरस्वती…. हर साल की तरह इस बार भी स्वामी सहजानन्द सरस्वती की जयंती धूमधाम से मनाई जाएगी। स्वामी जी की 133वीं जयंती पर 12 मार्च शनिवार को विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा और स्वामी जी के कार्यों के बारे में लोगों को बताया जाएगा, क्योंकि समाज



 में उनके द्वारा किए कार्यों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। वह न केवल भारत में किसान आन्दोलन के जनक थे, बल्कि राष्ट्रवादी नेता एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। स्वामी जी आदि शंकराचार्य सम्प्रदाय के दसनामी संन्यासी अखाड़े के दण्डी संन्यासी थे। उनकी गिनती महान बुद्धजीवियों, लेखक, समाज-सुधारक, क्रान्तिकारी और इतिहासकार के रूप में भी होती है। उन्होंने ‘हुंकार’ नामक एक पत्र भी प्रकाशित किया। स्वामी सहजानन्द की पुण्य स्मृति में उनके गृह जनपद गाजीपुर में स्वामी सहजनन्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय भी स्थापित है।

कई मायनों में विशेष होने जा रही है स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती

स्वामी सहजानंद सरस्वती कल्याण संस्थान एवं ब्रह्मर्षि विकास मंच के संयुक्त तत्वावधान में कल यानि 12 मार्च को मनाई जाने वाली स्वामी सहजानंद सरस्वती की 133वी जयंती कई मायनों में विशेष होने जा रही है। यह न केवल ब्रह्मर्षि विकास मंच द्वारा 2023 में आयोजित किए जाने वाले राष्ट्रीय सम्मेलन का सेमीफाइनल माना जा रहा है, बल्कि उन सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए आइना दिखाने वाला होगा, जिन्होंने पिछले डेढ़ दो दशक के दौरान स्वामी जी के शुभचिंतकों और समाज को नजर अंदाज किया है स्वामी जी का समाज के उत्थान के लिए कार्य काफी महत्व रखते हैं, इसीलिए यह बहुत आश्चर्यजनक है कि यह सब जानते हुए भी राजनीतिक पार्टियों को स्वामी जी की याद नहीं आईं। अब जिस तरह ब्रह्मर्षि विकास मंच व स्वामी सहजानंद सरस्वती कल्याण संस्थान जमशेदपुर ने चुनौती के रूप में लिया है और स्वामी के कार्यों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के प्रयास कर रहा है, उससे मंच और संस्थान की भी सामाजिक पृष्ठभूमि को और भी महत्व मिलेगा। हालांकि संस्थान लगातार कई वर्षों से स्वामी जी की जयंती पर कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है, लेकिन बड़े स्तर के कार्यक्रमों की कमी देखी गई, लेकिन अब जिस तरह की योजना बनाकर चल रहा है, उससे निश्चित तौर पर समाज का हर व्यक्ति स्वामी जी के कार्यों से अवगत होगा, जो काफी प्रेरणादायक साबित होगा


स्वामी जी का जन्म उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले के देवा गांव में सन् 1889 में महाशिवरात्रि के दिन हुआ था। बचपन में ही उनकी माताजी का स्वर्गवास हो गया था। कहते हैं पुत के पांव पालने में हीं दिखने लगते हैं। पढ़ाई के दौरान ही उनका मन आध्यात्म में रमने लगा था। दीक्षा को लेकर उनके बालमन में धर्म की इस विकृति के खिलाफ विद्रोह पनपा। धर्म के अंधानुकरण के खिलाफ उनके मन में जो भावना पली थी, कालांतर में उसने सनातनी मूल्यों के प्रति उनकी आस्था को और गहरा किया। वैराग्य भावना को देखकर बाल्यावस्था में ही इनकी शादी कर दी गई। संयोग ऐसा रहा कि गृहस्थ जीवन शुरू होने के पहले ही इनकी पत्नी का देहांत हो गया।




इसके बाद उन्होंने विधिवत संन्यास ग्रहण की और दशनामी दीक्षा लेकर स्वामी सहजानंद सरस्वती हो गए। इसी दौरान उन्हें काशी में समाज की एक और कड़वी सच्चाई से सामना हुआ। दरअसल, काशी के कुछ पंड़ितों ने उनके संन्यास का ये कहकर विरोध किया कि ब्राह्मणेतर जातियों को दण्ड धारण करने का अधिकार नहीं है। स्वामी सहजानंद ने इसे चुनौती के तौर पर लिया और विभिन्न मंचों पर शास्त्रार्थ कर ये साबित किया कि भूमिहार भी ब्राह्मण हीं हैं और हर योग्य व्यक्ति संन्यास धारण करने की पात्रता रखता है। बाद के दिनों में स्वामीजी ने बिहार में किसान आंदोलन शुरू किया। उन्होंने कांग्रेस में रहते हुए किसानों को हक दिलाने के लिए संघर्ष को हीं जीवन का लक्ष्य घोषित किया। उन्होंने नारा दिया- कैसे लोगे मालगुजारी, लट्ठ हमारा ज़िन्दाबाद। बाद में यही नारा किसान आंदोलन का सबसे प्रिय नारा बन गया। वे कहते थे- अधिकार हम लड़ कर लेंगे और जमींदारी का खात्मा करके रहेंगे। उनका ओजस्वी भाषण किसानों पर गहरा असर डालता था। काफ़ी कम समय में किसान आंदोलन पूरे बिहार में फैल गया।

स्वामी जी का प्रांतीय किसान सभा संगठन के तौर पर खड़ा होने के बजाए आंदोलन बन गया। हर ज़िले और प्रखण्डों में किसानों की बड़ी-बड़ी रैलियां और सभाएँ हुईं। बाद के दिनों में उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी नेताओं से हाथ मिलाया। सर्वश्री एम जी रंगा, ई एम एस नंबूदरीपाद, पंड़ित कार्यानंद शर्मा, पंडित यमुना कार्यजी जैसे वामपंथी और समाजवादी नेता किसान आंदोलन के अग्रिम पंक्ति में। आचार्य नरेन्द्र देव, राहुल सांकृत्यायन, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, पंडित यदुनंदन शर्मा, पी. सुन्दरैया और बंकिम मुखर्जी जैसे तब के कई नामी चेहरे भी किसान सभा से जुड़े थे। वामपंथी रुझान के चलते सीपीआई उन्हें अपना समझती रही और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ भी वे अनेक रैलियों में शामिल हुए। आज़ादी की लड़ाई के दौरान जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तो नेताजी ने पूरे देश में ‘फ़ारवर्ड ब्लॉक’ के ज़रिये हड़ताल कराई। किसानों के बच्चों को शिक्षार्जन हेतु आर्थिक सहायता देने, उच्च न्यायालय में लड़ाई लड़कर 16 सरकारी गन्ना मिलों में किसानों के गन्ना मूल्य की लंबित राशि ब्याज सहित दिलवाने, किसान रथ के माध्यम से राज्य के 162 प्रखंडों में भ्रमण कर ‘कृषक-जागृति अभियान’ चलाने, राज्य मुख्यालय में स्वामीजी की आदमकद प्रतिमा स्थापित कराने, स्वामीजी की जयंती को राजकीय समारोह के रूप में मनाने की सरकारी घोषणा  कराने आदि कार्य अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय हैं। स्वामी जी कई पुस्तकों की रचना भी कर चुके हैं, जिनमें ब्रह्मर्षि वंश विस्तार, ब्राह्मण समाज की स्थिति, झूठा भय मिथ्या-अभिमान, कर्म-कलाप, गीता-हृदय (धार्मिक) क्रान्ति और संयुक्त मोर्चा, किसान सभा के संस्मरण, किसान कैसे लड़ते हैं, झारखण्ड के किसान, किसान क्या करें, मेरा जीवन संघर्ष (आत्मकथा) जैसी पुस्तकें मुख्य रूप से शामिल हैं। इसके अलावा कई पत्रों का संपादन भी स्वामी जी ने किया।

धूमधाम से मनाई जाएगी स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती तैयारी पूरी

धूमधाम से मनाई जाएगी स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती स्वामी सहजानंद सरस्वती कल्याण संस्थान एवं ब्रह्मर्षि विकास मंच के संयुक्त तत्वावधान में कल यानि 12 मार्च को स्वामी जी की 133वी जयंती पर पारिवारिक मिलन समारोह एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कदमा स्थित संस्थान के भवन में होने जा रहा है। बता दें, यह आयोजन पिछले 7 साल से लगातार किया जा रहा है। समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बिहार के राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद, स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता एवं जमशेदपुर सांसद विद्युत वरण महतो मौजूद रहेंगे। ब्रह्मर्षि विकास मंच के अध्यक्ष विकास सिंह, महासचिव अनिल ठाकुर एवं संस्थान के अध्यक्ष दीपू सिंह ने आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में संयुक्त रूप से कहा कि स्वामी सहजानंद सरस्वती कल्याण संस्था स्वामी जी के वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को हमेशा से चरितार्थ कर रही है। इस संस्थान के द्वारा बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा, गरीब कन्याओं की शादी में मदद एवं विभिन्न तरह के जरूरतमंद परिवार को हर तरह की मदद की जाती रही है। विकास सिंह ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस 28 अप्रैल को ऑल इंडिया स्वामी सहजानंद दिवस मनाने का निर्णय लिया था। यह निर्णय स्वामी जी का राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना को देखते हुए लिए थे। स्वामी जी देश के पहले ऐसे किसान आंदोलन के जनक हैं, जिन्होंने कहा था कि मेरा खून खौल उठता है, जब मैं किसी किसान दलित या आदिवासी को प्रताड़ित होते देखता हूं। स्वामी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी महान मानव थे। उनके बताए मार्ग एवं आदर्शों का पालन कर ही हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं। प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ब्रह्मर्षि विकास मंच के अध्यक्ष विकास सिंह, महासचिव अनिल ठाकुर, संस्थापक महासचिव राज किशोर सिंह, स्वामी सहजानंद कल्याण संस्थान के अध्यक्ष दीपू सिंह, महासचिव जयकुमार, देवानंद सिंह, राकेश कुमार, सुधांशु कुमार, शुभाशीष उपाध्याय, अशोक कुमार, रवि भूषण शर्मा, राजेश आदि भी मौजूद थे। स्वामी सहजानंद सरस्वती कल्याण संस्थान के अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह ने बताया कि स्वामी सहजानंद सरस्वती किसानों के सबसे बड़े हिमायती थे और जमीदारी प्रथा के घोर विरोधी थे। उन्होंने सर्वहारा अभियान की नींव डाली थी। वे किसी खास जाति की बात नहीं करते थे। उन्होंने बताया कि हर साल स्वामी जी की जयंती को धूमधाम से मनाई जाती है। इस साल भी स्वामी जी की जयंती को धूमधाम से मनाई जा रही है, जिसमें समाज के ही कलाकार रंगारंग प्रस्तुति देंगे।

पंजाब में आम आदमी पार्टी ने ली अंगड़ाई

देवानंद सिंह

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों में सबसे अधिक चौंकाने वाला परिणाम पंजाब का रहा। यहां आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान सिंह को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया था। उन्होंने राज्य में पूरी तरह से झाडू लगा दी। आम आदमी पार्टी के आगे बड़े-बड़े दिग्गज धूल चाटते हुए नजर आए। चाहे प्रकाश सिंह बादल हों, चरणजीत सिंह चन्नी हों या फिर नवजोत सिंह सिद्धू हों, इन सभी को हार का सामना करना पड़ा। कुल मिलाकर पंजाब की जीत आम आदमी पार्टी के लिए बहुत बड़ी अंगड़ाई साबित होने वाली है। क्योंकि आम आदमी पार्टी एक ऐसी क्षेत्रीय पार्टी बन गई है,


जो एक से दूसरे राज्य में सरकार बनाने में सफल हो हुई है। एक तरह से अब अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय नेता बन गए हैं। अब वह उन विपक्षी नेताओं के बीच सम्पूर्ण सम्मान हासिल कर पाएंगे, जो महागठबंधन में शामिल हैं। क्योंकि अक्सर यह देखने को मिलता था कि जब विपक्षी नेताओं की बैठक होती थी, उसमें अरविंद केजरीवाल को पीछे बैठा दिया जाता था, क्योंकि ऐसा कहा जाता था कि आम आदमी पार्टी अभी छोटे से राज्य की पार्टी है, लेकिन पंजाब में आम आदमी पार्टी ने जिस तरह जीत हासिल की है, उसने इस मिथक को पूरी तरह तोड़ दिया है। अब अरविंद केजरीवाल का रूतवा भी बढ़ गया है। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने रिकार्ड जीत हासिल करते हुए 92 सीटें हासिल की हैं। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कितनी बड़ी जीत है, क्योंकि 117 विधानसभा सीटों में से आम आदमी पार्टी ने 92 सीटें हासिल की हैं। आम आदमी पार्टी के आगे न कांग्रेस टिक पाई, न बीजेपी टिक पाई और न ही बीएसपी का कोई जलवा चल पाया। आम आदमी पार्टी ने ऐसी अंगड़ाई मारी, जिसमें सभी बह गए। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में भी इसी तरह जीत हासिल की थी। अब धीरे-धीरे अरविंद केजरीवाल अन्य राज्यों का रुख करेंगे, जिससे वहां भी वह सरकार बनाने में कामयाब साबित हो सकते हैं। पंजाब में जीत हासिल करने के साथ ही अरविंद केजरीवाल के लिए अब प्रधानमंत्री बनने का सपना देखना अब और आसान हो गया है। वह अब इस परिदृश्य में सीधे तौर पर ममता बनर्जी को टक्कर दे पाएंगे। क्योंकि आम आदमी पार्टी ने गोवा में भी कुछ सीटें जीती हैं। जबकि ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी यहां कोई भी सीट नहीं जीत पाई। ममता ने भी गोवा के बहाने पश्चिम बंगाल से बाहर निकलकर अपनी छवि बनाने की कोशिश की थी, लेकिन वह उसमें सफल होती नहीं दिखीं और इसमें बाजी मार गए अरविंद केजरीवाल। कुल मिलाकर यह चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए बहुत अच्छा रहा। भले ही, आम आदमी पार्टी को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड एक भी सीट नहीं मिली हो, लेकिन पंजाब ने तो आम आदमी पार्टी की बल्ले-बल्ले कर दी, जबकि गोवा ने भी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को निराश नहीं किया। यह अपने आप में देश में एक बड़े राजनीतिक बदलाव का संकेत है। इसमें कांग्रेस और बसपा जैसी पार्टियों को बहुत अधिक मंथन करने की जरूरत है।

आप ने ली तीसरी अंगड़ाई ,जनता का विश्वास जीतने में एक बार फिर नाकाम हुई कांग्रेस

देवानंद सिंह

आप’ प्रमुख केजरीवाल ने कहा कि हम मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज स्‍थापित करेंगे. ऐसे में हम स्‍टूडेंट को यूक्रेन नहीं जाना पड़ेगा पिछले कई चुनावों में हार झेलती आती रही कांग्रेस के लिए पांच राज्यों में हुए चुनाव काफी उम्मीदों से भरे थे, लेकिन परिणाम ठीक पार्टी की उम्मीद के विपरीत आए हैं। पार्टी न तो उत्तराखंड में आ पाई है, बल्कि पंजाब में भी कई प्रयोग करने के बाद भी आम आदमी पार्टी से बहुत बड़े अंतर से हार रही है। आम आदमी पार्टी ने जिस तरह पंजाब में प्रदर्शन किया है, वह अपने आप में रिकॉर्ड है। आम आदमी पार्टी के लिए यह इसीलिए महत्वपूर्ण है,



क्योंकि वह दिल्ली से निकलकर किसी अन्य राज्य में सरकार बनाने में सफल रही है। आम आदमी पार्टी ने 117 विधानसभा सीटों वाली पंजाब विधानसभा में 80 से अधिक सीटें लाने का दम भरा था, जो एकदम सही साबित होते हुए दिखा है। फिलहाल, 92 सीटों पर आम आदमी पार्टी जीत दर्ज की है। जहां तक कांग्रेस की बात है, उसके लिए पंजाब जैसे राज्य को खोना बहुत बड़ा सेटबैक है। इसका सबसे बड़ा कारण हाल के महीनों में प्रदेश कांग्रेस में घटा घटनाक्रम पूरी तरह से जिम्मेदार रहा।चाहे कैप्टन अमरिंदर सिंह का पार्टी छोड़ना हो, नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी अध्यक्ष बनाना हो या फिर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाना हो। पार्टी का कोई भी प्रयोग पंजाब में कमाल नहीं कर पाया। पहाड़ी राज्य में भी उत्तराखंड में भी कांग्रेस सत्ता में आने की उम्मीद जता रही थी, लेकिन वह यहां सत्तारूढ़ बीजेपी को मात देने में सफल नहीं रही। यहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच बड़ी टक्कर की उम्मीद तो जताई जा रही थी, लेकिन ऐसा नहीं दिखा। बीजेपी बहुमत से अधिक सीटें जीतने में सफल रही है। उत्तराखंड में भी यह रिकॉर्ड बन गया है कि सत्तारूढ़ पार्टी रिपीट होने में सफल रही है और कांग्रेस को फिर से विपक्ष में बैठकर संतोष करना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन जारी रहा, जबकि यहां स्वयं प्रियंका गांधी वाड्रा खुद चुनाव मैदान में थीं, उन्हीं के नेतृत्व में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव लड़ा, पर 403 विधानसभा सीट वाले राज्य में कांग्रेस दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंची है। मणिपुर और गोवा में भी कांग्रेस बीजेपी से पीछे है। गोवा में कांग्रेस के जीतने की उम्मीद जताई जा रही थी, लेकिन गोवा में भी बीजेपी सत्ता तक पहुंच चुकी है।



इसीलिए कांग्रेस का हर जगह सुपड़ा साफ हो चुका है। लिहाजा,अब कांग्रेस को बहुत सोचने की जरूरत है। क्योंकि कांग्रेस हाईकमान का हर फैसला पार्टी के लिए बेहद ही नुकसानदायक साबित हो रहा है। इन सब परिस्थितियों में एक सवाल खड़ा होता है



 कि क्या कांग्रेस आने वाले चुनावों में भी इसी तरह निराशाजनक प्रदर्शन करती रहेगी या फिर पार्टी संगठन में बदलाव कर कुछ बेहतर परिणाम हासिल कर पाएगी। अब देखने वाली बात यह होगी कि कांग्रेस इस बड़े गैप को जब पूरा कर पाएगी।

यूपी में योगी आदित्यनाथ ने रचा इतिहास, प्रचंड बहुमत के साथ हासिल की जीत

 देवानंद सिंह

देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में बीजेपी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में एक बार फिर सरकार बनाने जा रही है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह एक ऐतिहासिक क्षण है। क्योंकि कोई सरकार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करने जा रही है। फिलहाल, बीजेपी राज्य में 276 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि सपा बीजेपी से बहुत पीछे महज 1120 सीटों पर ही आगे चल रही है। जबकि कांग्रेस, बीएसपी जैसी पार्टियां दहाई तक के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई हैं। जिस तरह के आंकड़े सामने आए हैं

जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ने 2024 की तस्वीर साफ कर दी है उन्होंने कहा की परिवारवाद राजनीति का सूर्यास्त होगा यूपी की जनता ने 2014 17 19 22 के चुनाव में विकासवाद की राजनीति पर विश्वास जताया है यूपी की जनता ने दूसरे दलों को सबक सिखाया है

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि 37 साल बाद यूपी की धरती पर कोई मुख्यमंत्री दोबारा मुख्यमंत्री की शपथ लेगा

जीत के बाद कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई नेतृत्व गृहमंत्री अमित शाह की सोच और राष्ट्रीय अध्यक्ष की मेहनत के साथ-साथ हर एक कार्यकर्ता को यह जीत समर्पित है



वह सपा के लिए किसी सदमे से कम नहीं है, क्योंकि जिस अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को सूबे में मजबूत माना जा रहा था, वह योगी आदित्यनाथ के आगे कहीं टिकती हुई नजर नहीं आई। अखिलेश का सपना चकनाचूर हो गया तो विरासत बचाने आई प्रियंका गांधी जनता की दिलजीत पाने में असफल रही मायावती जिस वोट बैंक को अपना मानती रही वोटरों ने सिरे से उसे नकार दिया इन परिणामों से साफ तौर पर पता चलता है कि प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ किसी भी प्रकार की लहर नहीं थी और न ही किसान आंदोलन का कोई असर देखने को मिला। योगी आदित्यनाथ बहुमत से भी कहीं बड़े आंकड़े के साथ जीतते हुए नजर आ रहे हैं। योगी जी खुद गोरखपुर शहर की सीट एक लाख से अधिक सीटों से जीतने में सफल हुए हैं। हालांकि अखिलेश यादव भी करहल की सीट के 60 हजार वोटों से जीतने में सफल रहे हैं। लेकिन अखिलेश का सत्ता में आने का अपना चकनाचूर हो गया। समाजवादी पार्टी के लोग कोरोना, बेरोजगारी, किसान आंदोलन के नाम पर योगी आदित्यनाथ की सरकार को घेरने की कोशिश करते रहे हों, लेकिन परिणामों से लगता है कि कोरोना काल के दौरान योगी आदित्यनाथ द्वारा की गई मेहनत को लोग भूले नहीं, क्योंकि कोरोनाकाल में योगी आदित्यनाथ का कार्य पूरे देश के लिए नजीर बना था। चाहे गरीब परिवार तक राशन पहुंचाने की बात हो या फिर अन्य तरह के कार्य, उन सभी से पूरे देश के काफी प्रभावित किया और प्रदेश की जनता भी, उनके कार्यों से खुश रही, उनकी यह खुशी परिणामों में साफतौर पर देखने को मिल रही है। दूसरा अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की बात करें तो वह केवल हवाबाजी ही करती नजर आई। पिछले पांच सालों में सभी ने देखा कि समाजवादी पार्टी के नेता जनता के बीच से गायब रहे, कोरोनाकाल में अखिलेश भी नदारद रहे। वैक्सीन को उन्होंने भाजपा की वैक्सीन बता दी, जिसका लोगों के बीच गलत संदेश गया। चुनाव के दौरान भी उन्होंने केवल सोशल इंजीनियरिंग के भरोसे जीतने की कोशिश की, लेकिन जमीनी तौर पर इसका कोई भी प्रभाव देखने को नहीं मिला। पश्चिमी यूपी में जिस तरह से आरएलडी से गठबंधन कर उन्होंने अच्छी सीटें जीतने की उम्मीद उन्होंने की थी, वह भी धरी की धरी नजर आईं। इसीलिए अखिलेश को एक बार फिर विपक्ष में ही बैठकर संतोष करना पड़ेगा। बात कांग्रेस और बसपा की करें तो ये दोनों ही पार्टियां दूर-दूर तक भी नजर नहीं आ रहीं है। न तो बसपा का राज्य में दलित कार्ड चला और न ही कांग्रेस की तरफ से प्रियंका द्वारा दिया गया लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा चला। यानि कुल मिलाकर देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस उत्तर प्रदेश में एक बार फिर जनता का विश्वास जीतने में सफल नहीं हो पाई। यह पार्टी के लिए बहुत ही निराशाजनक साबित हुआ। शायद ही पार्टी हाल-फिलहाल में इस शॉक से निपट पाए।

Thursday, 3 March 2022

सभी वर्गों का ध्यान रखने वाला बजट

देवानंद सिंह

झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली सरकार ने गुरुवार को वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए 1.01 लाख करोड़ का बजट पेश किया। बजट गठबंधन सरकार के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने पेश किया। सरकार ने बजट में सभी क्षेत्रों का विशेष ध्यान रखा है। इस बजट में पूंजीगत व्यय में 59 प्रतिशत की वृद्धि करने का प्रस्ताव है। 



इससे पहले हेमंत सोरेन सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 91 हजार 277 करोड़ रुपये का बजट पेश किया था। गुरुवार को बजट पेश होने से पहले झारखंड विधानसभा में हंगामा भी देखने को मिला। दोपहर 12 बजे तक के लिए विधानसभा को स्थगित करना पड़ा। इस दौरान आगामी पंचायत चुनावों में 27 प्रतिशत ओबीसी कोटा की मांग की जा रही थी। 12 बजे तक हंगामा चलता रहा, इसके बाद बजट पेश किया गया। इस दौरान सरकार की तरफ से काफी एलान किए गए। उच्च शिक्षा की बात करें तो झारखंड के छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए गुरुजी क्रेडिट कार्ड स्कीम शुरू की जाने की घोषणा की गई, जिसे काफी महत्वपूर्ण माना जा  रहा है। वहीं, गरीब और किसानों पर बिजली का बोझ कम करने के लिए सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए प्रत्येक ऐसे परिवारों को मासिक 100 यूनिट बिजली मुफ्त दिए जाने का प्रस्ताव किया है। सरकार ने यह कदम उठाकर एक तरह से गरीब और किसान वर्ग में अपनी पैठ मजबूत करने की कोशिश की है। दूसरा, बजट में स्टेट फंड से एक अतिरिक्त कमरे के निर्माण के लिए 50,000 रुपये प्रति आवास उपलब्ध कराने का भी ऐलान किया गया है। उधर, शिक्षकों के बारे में भी महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सरकार ने कहा है कि



 अब पारा शिक्षक, सहायक शिक्षक के नाम से जाने जायेंगे। वहीं, सरकार ने आगामी वर्ष 2022-23 हेतु इन शिक्षकों के मानदेय मद में राज्य योजना के अंतर्गत 600 करोड़ रुपये का अतिरिक्त प्रावधान का ऐलान भी किया। वित्त मंत्री ने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार ने 27 प्रतिशत, पेयजल में 20 प्रतिशत, शिक्षा में 6.5 प्रतिशत और कृषि क्षेत्र में 21 प्रतिशत राशि में बढ़ोत्तरी की गई है। सरकार के इस कदम से निश्चित तौर पर इन सभी क्षेत्रों में काफी हद तक और सुधार होंगे। बजट में कृषि क्षेत्र का भी विशेष ध्यान रखा गया है, जिसके अंतर्गत सरकार ने कृषि और उससे जुड़े क्षेत्र में 4,091.37 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया है, जो अपने आप में कृषि क्षेत्र के लिए संजीवनी साबित हो सकता है। वित्त मंत्री ने कहा कि कृषि ऋण माफी योजना के तहत अब तक 2 लाख 11 हजार 530 किसानों के खाते में 836 करोड़ ट्रांसफर किए गए। सरकार द्वारा उठाए गए इन कदमों से साबित होता है कि वह कृषि और किसानों के उत्थान के लिए काफी गंभीर है। उधर, गो-धन न्याय योजना के अन्तर्गत पशुपालकों एवं किसानों की आय में बढ़ोत्तरी करने के उद्देश्य से उचित मूल्य पर गोबर की खरीदारी पर भी बजट में विशेष ध्यान दिया गया है। सरकार का मत है कि इससे बायोगैस बनाने के साथ-साथ जैविक खाद तैयार करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही 40 हजार लाभार्थियों को वित्तीय वर्ष 2022-23 में अनुदान पर पशुधन वितरण का लक्ष्य वर्ष 2022-23 में कुल 85 लाख लीटर दूध प्रतिदिन उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। सरकार ने ऐलान किया है कि इस वित्तीय वर्ष में शीत गृह बनाने के लिए 30 करोड़ का बजटीय उपबंध प्रस्तावित है। 



वहीं, कृषि उत्पाद में आर्थिक नुकसान से भरपाई के लिए 25 करोड़ का कॉर्प्स फंड में प्रस्तावित किया गया है। उच्च एवं तकनीकी शिक्षा में शिक्षकों के रिक्त 1,363 पदों पर नियुक्ति की कार्रवाई भी पूरी कराए जाने का ऐलान किया गया है, जो फिलहाल प्रक्रियाधीन है। राज्य सरकार द्वारा कुल 33 नये डिग्री / महिला कॉलेजों के लिए सभी प्रकार के पदों के सृजन की कार्रवाई भी जारी है, जो राज्य के शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल विकास में महत्वपूर्ण योगदान निभाएगा। सरकार ने रामगढ़ जिला अन्तर्गत गोला में डिग्री कॉलेज के निर्माण का प्रस्ताव भी किया है, जिससे उच्च शिक्षा तक छात्रों की पहुंच आसान होगी। इस बजट को इसीलिए भी अच्छा और महत्वपूर्ण कहा जायेगा, क्योंकि सरकार की तरफ से शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि जैसे क्षेत्रों पर विशेष बल दिया गया है। किसी भी राज्य के विकास में इन क्षेत्रों का ही विशेष योगदान होता है। हाल में हमने देखा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में पूरी दुनिया ने काफी संकट झेला, इसीलिए बजट में  स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए सरकार ने 27 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर अच्छा कदम उठाया है। जो आने वाले दिनों में किसी स्वास्थ्य चुनौती से निपटने में काफी मददगार साबित होगा।

कोल्हान की सियासी चुनौती

  देवानंद सिंह झारखंड की राजनीति हमेशा से ही अपने उतार-चढ़ाव के लिए जानी जाती रही है। इस बार भी यही देखने को मिलेगा। पूरे झारखंड की बात छोड़...