समाजसेवी स्वर्गीय कौशल किशोर सिंह जी को शब्द - श्रद्धांजलि
डॉक्टर कल्याणी कबीर
जो अगणित लघुदीप हमारे ,
तूफानों में एक किनारे ,
जल जलाकर बुझ गए किसी दिन ,
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल ,
कलम आज उनकी जय बोल ।
राष्ट्रकवि दिनकर की यह पंक्तियाँ अक्षरश : समाजसेवी आदरणीय कौशल किशोर सिंह जी के जीवन का सम्पूर्ण चेहरा प्रस्तुत करती हैं । सच है कि व्यक्ति जिसका जीवन स्वेच्छा से समाज को समर्पित हो वो कभी समाज से प्रतिउत्तर की उम्मीद नहीं रखता ।कहते हैं सज्जन की भूख तो किसी और की थाली में रोटी रखने से ही मिटती है, किसी के आँसू पोंछने से मिलने वाले सुकून को ओढ़कर सोने से ही उसे नींद आती है ।निस्संदेह ऐसे ही समाजसेवी थे आदरणीय कौशल किशोर सिंह जी जिन्हें शहर जमशेदपुर के समाज सेवा क्षेत्र का एक अमिट हस्ताक्षर कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
आज यदि आप अपने चारों ओर देखें तो भौतिक सुख - सुविधा के पंजे में कसमसाता छटपटाता इस दौर का कमोबेश हर इंसान खुद के अंदर सिमटा हुआ सा दिखता है । ऐसे वक्त में समाजसेवी के के सिंह जी इंसानियत के अथक दीपक की तरह थे । अन्नदान, वस्त्रदान और शिक्षादान उनके जीवन पुस्तक के महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम की तरह थे । राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से परे जाकर इन्होंने समाज के दबे कुचले शोषित वर्ग के काँधे पर हाथ रखा , उन्हें सहारा दिया ।सच पूछिए तो बिरले धनाढ्य लोग ही ऐसा कर पाते हैं ।शायद उनके जेब में रखे सिक्के की गूँज इतनी तेज होती है कि मजलूमों की दर्द से सनी हिचकियों की आवाज उन तक पहुँच ही नहीं पाती हैं । पर इसके विपरीत स्वर्गीय के के सिंह के पास जो कुछ भी था उसका 20 प्रतिशत वो जरूरतमंदों के बीच बाँट दिया करते थे वो भी बिना किसी शोर शराबे और हो हल्ला का आयोजन किए । उनका मानना था कि माइक लगाकर, माला पहनकर , गुणगान के गीत गाकर की गई समाजसेवा मिलावटी होती है और उसके पीछे एक स्वार्थ छुपा होता है । पर के के जी मौन साधु बनकर लोगों की मदद किया करते थे वो भी जातिवाद, सम्प्रदायवाद , प्रांतवाद के संकुचित गलियारों से ऊपर उठकर । उनके साथ काम करने वाले कर्मचारियों के लिए भी वे मालिक कम अभिभावक अधिक थे ।
एक सफल उद्यमी होने के कारण माँ लक्ष्मी की कृपा उनपर हमेशा रही पर धन का घमंड उन्हें लेशमात्र तक छू नहीं गया था ।स्वदेशी आंदोलन के पक्षधर और बाबा रामदेव के प्रशंसक आदरणीय के के सिंह बेशक एक ईमानदार देशभक्त थे ।वो कदाचित इस तथ्य से अवगत थे कि स्वदेशीकरण की नीति से गरीबों को भी रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे । दुष्यंत कुमार ने ऐसे ही महान लोगों के लिए लिखा है —
गीत गाकर चेतना को वर दिया मैंने ,
आँसुओं से दर्द को आदर दिया मैंने ,
प्रीत मेरी आत्मा की भूख थी, सहकर
जिंदगी का चित्र पूरा कर दिया मैंने ।
ऐसे लोग समाज के मन से कभी विस्मृत नहीं होते जो निजहित का त्याग कर परहित में तत्पर रहते हैं ।
वो एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने कार्यों से युवा वर्ग को प्रेरित किया । उनकी कथनी और करनी का चेहरा अलग - अलग नहीं था ।अब इस दौर में ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं जो पेशे से व्यवसायी हों पर भावनाओं से समाजसेवी । साहित्य और शिक्षा के आग्रही थे आदरणीय के के सिंह जी ।
जमशेदपुर से प्रकाशित होने वाली कई साहित्यिक पत्रिकाओं के साथ साथ राष्ट्र संवाद पञिका को उनका संरक्षण और मार्गदर्शन प्राप्त था ।उन्हें इस बात का भान था कि सद्साहित्य की खाद से ही समाज की मिट्टी में नैतिकता की पौध तैयार हो सकती है ।कदाचित इसलिए वे अच्छी पुस्तकों के प्रकाशन को प्रेरित करते थे । कह सकते हैं कि एक बिजनेसमैन होने के बावजूद वे शिक्षा और साहित्य के प्रति एक जागरूक सोच रखते थे । समाज और राष्ट्रहित का कोई भी मौका हो, ये जरूर आगे आते थे । ये अपने सहयोगियों से आग्रह करते थे कि ऐसे गरीब परिवार की जानकारी इकट्ठा करें जो अपने बच्चों को पढ़ाने - लिखाने में असमर्थ हैं ताकि उनकी मदद की जा सके । ऐसी सह्रदयता तो उसी मनुष्य का आभूषण हो सकती है जिसका जीवन समाज को समर्पित हो । उनके व्यक्तित्व को नमन करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर की ये पंक्तियाँ भी उन्हें समर्पित :—-
उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है
सुख नहीं धर्म भी नहीं , न तो दर्शन है
विज्ञान ज्ञान बल नहीं, न तो चिंतन है
जीवन का अंतिम ध्येय स्वयं जीवन है ।
डॉक्टर कल्याणी कबीर
जो अगणित लघुदीप हमारे ,
तूफानों में एक किनारे ,
जल जलाकर बुझ गए किसी दिन ,
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल ,
कलम आज उनकी जय बोल ।
राष्ट्रकवि दिनकर की यह पंक्तियाँ अक्षरश : समाजसेवी आदरणीय कौशल किशोर सिंह जी के जीवन का सम्पूर्ण चेहरा प्रस्तुत करती हैं । सच है कि व्यक्ति जिसका जीवन स्वेच्छा से समाज को समर्पित हो वो कभी समाज से प्रतिउत्तर की उम्मीद नहीं रखता ।कहते हैं सज्जन की भूख तो किसी और की थाली में रोटी रखने से ही मिटती है, किसी के आँसू पोंछने से मिलने वाले सुकून को ओढ़कर सोने से ही उसे नींद आती है ।निस्संदेह ऐसे ही समाजसेवी थे आदरणीय कौशल किशोर सिंह जी जिन्हें शहर जमशेदपुर के समाज सेवा क्षेत्र का एक अमिट हस्ताक्षर कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
आज यदि आप अपने चारों ओर देखें तो भौतिक सुख - सुविधा के पंजे में कसमसाता छटपटाता इस दौर का कमोबेश हर इंसान खुद के अंदर सिमटा हुआ सा दिखता है । ऐसे वक्त में समाजसेवी के के सिंह जी इंसानियत के अथक दीपक की तरह थे । अन्नदान, वस्त्रदान और शिक्षादान उनके जीवन पुस्तक के महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम की तरह थे । राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से परे जाकर इन्होंने समाज के दबे कुचले शोषित वर्ग के काँधे पर हाथ रखा , उन्हें सहारा दिया ।सच पूछिए तो बिरले धनाढ्य लोग ही ऐसा कर पाते हैं ।शायद उनके जेब में रखे सिक्के की गूँज इतनी तेज होती है कि मजलूमों की दर्द से सनी हिचकियों की आवाज उन तक पहुँच ही नहीं पाती हैं । पर इसके विपरीत स्वर्गीय के के सिंह के पास जो कुछ भी था उसका 20 प्रतिशत वो जरूरतमंदों के बीच बाँट दिया करते थे वो भी बिना किसी शोर शराबे और हो हल्ला का आयोजन किए । उनका मानना था कि माइक लगाकर, माला पहनकर , गुणगान के गीत गाकर की गई समाजसेवा मिलावटी होती है और उसके पीछे एक स्वार्थ छुपा होता है । पर के के जी मौन साधु बनकर लोगों की मदद किया करते थे वो भी जातिवाद, सम्प्रदायवाद , प्रांतवाद के संकुचित गलियारों से ऊपर उठकर । उनके साथ काम करने वाले कर्मचारियों के लिए भी वे मालिक कम अभिभावक अधिक थे ।
एक सफल उद्यमी होने के कारण माँ लक्ष्मी की कृपा उनपर हमेशा रही पर धन का घमंड उन्हें लेशमात्र तक छू नहीं गया था ।स्वदेशी आंदोलन के पक्षधर और बाबा रामदेव के प्रशंसक आदरणीय के के सिंह बेशक एक ईमानदार देशभक्त थे ।वो कदाचित इस तथ्य से अवगत थे कि स्वदेशीकरण की नीति से गरीबों को भी रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे । दुष्यंत कुमार ने ऐसे ही महान लोगों के लिए लिखा है —
गीत गाकर चेतना को वर दिया मैंने ,
आँसुओं से दर्द को आदर दिया मैंने ,
प्रीत मेरी आत्मा की भूख थी, सहकर
जिंदगी का चित्र पूरा कर दिया मैंने ।
ऐसे लोग समाज के मन से कभी विस्मृत नहीं होते जो निजहित का त्याग कर परहित में तत्पर रहते हैं ।
वो एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने कार्यों से युवा वर्ग को प्रेरित किया । उनकी कथनी और करनी का चेहरा अलग - अलग नहीं था ।अब इस दौर में ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं जो पेशे से व्यवसायी हों पर भावनाओं से समाजसेवी । साहित्य और शिक्षा के आग्रही थे आदरणीय के के सिंह जी ।
जमशेदपुर से प्रकाशित होने वाली कई साहित्यिक पत्रिकाओं के साथ साथ राष्ट्र संवाद पञिका को उनका संरक्षण और मार्गदर्शन प्राप्त था ।उन्हें इस बात का भान था कि सद्साहित्य की खाद से ही समाज की मिट्टी में नैतिकता की पौध तैयार हो सकती है ।कदाचित इसलिए वे अच्छी पुस्तकों के प्रकाशन को प्रेरित करते थे । कह सकते हैं कि एक बिजनेसमैन होने के बावजूद वे शिक्षा और साहित्य के प्रति एक जागरूक सोच रखते थे । समाज और राष्ट्रहित का कोई भी मौका हो, ये जरूर आगे आते थे । ये अपने सहयोगियों से आग्रह करते थे कि ऐसे गरीब परिवार की जानकारी इकट्ठा करें जो अपने बच्चों को पढ़ाने - लिखाने में असमर्थ हैं ताकि उनकी मदद की जा सके । ऐसी सह्रदयता तो उसी मनुष्य का आभूषण हो सकती है जिसका जीवन समाज को समर्पित हो । उनके व्यक्तित्व को नमन करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर की ये पंक्तियाँ भी उन्हें समर्पित :—-
उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है
सुख नहीं धर्म भी नहीं , न तो दर्शन है
विज्ञान ज्ञान बल नहीं, न तो चिंतन है
जीवन का अंतिम ध्येय स्वयं जीवन है ।
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