देवानंद सिंह
क्या विधायक सरयू राय घर वापसी के लिए बेताब हैं ? यानि फिर से वह भाजपा में आने के लिए बिलबिला रहे हैं। अगर, ऐसा नहीं है तो फिर उनकी हर गतिविधियां भाजपा के इर्द-गिर्द क्यों घूम रही हैं ? अपनी पार्टी भारतीय जनतंत्र मोर्चा बनाने के बाद भी वह भाजपा हाईकमान के नेताओं के साथ घुसपैठ की कोशिश क्यों कर रहे हैं और भाजपा के जो भी घोषित कार्यक्रम हैं, उन्हें अपनी पार्टी के बैनर तले क्यों मना रहे हैं ? जी हां, उनकी ऐसी ही गतिविधियों से राजनीतिक गलियारों में इसी तरह के तमाम सवाल तैर रहे हैं। यह आश्चर्यजनक है कि वह पूर्व मुख्यमंत्री रघुवरदास और उनके समर्थकों के खिलाफ बगावती तेवर दिखाते रहे हैं। इसमें शक नहीं कि उन्होंने निर्दलीय उम्मीद के रूप में रघुवर दास को जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट से हराया है। पर जनता ने उन्हें जिताया है तो इस बात के लिए कि वह उनके लिए कुछ काम करें, लेकिन वह जिस तरह से विकास के कार्यों को भूलकर रघुवर दास और उनके समर्थकों के खिलाफ आरोप लगा रहे हैं, उससे जनता के बीच भी यह सवाल तेजी से उठ रहा है कि क्या उन्हें इसीलिए जिताया गया है कि वह जनता के लिए विकास कार्यों पर ध्यान देने के बजाय दुष्प्रचार भरी राजनीति को बढ़ावा दें ? क्यों वह जनता के मुद्दों को भूलकर सिर्फ रघुवर दास और उनके समर्थकों के खिलाफ मौहाल बनाने तक सीमित रह गए हैं ? उन्हें विधायक बने दो साल होने को हैं, इसके बाद भी उनके क्षेत्र में विकास का कोई भी कार्य नजर नहीं आ रहा है। विकास के लिए जो उद्घाटन और शिलान्यास हुए हैं उसमें से अधिकतर रघुवर कार्यकाल के ही हैं यह बहुत ही अजीब बात है कि एक तरफ तो
वे पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के साथ तकरार का माहौल बनाए हुए हैं दूसरी तरफ प्रदेश भाजपा के साथ व भाजपा केंद्रीय कार्यकारिणी और आरएसएस लॉबी से गलबहियां करने में जुटे हुए हैं। जिससे भी यह साबित होता है कि वह राजनीति जनता की सेवा के लिए नहीं कर रहे हैं! बल्कि अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि जिस तरह से आज के दौर में चुनाव महंगे हो गए हैं और पार्टी का संचालन आसान नहीं है, ऐसे में उन्हें लगता है कि घर वापसी से ही उनका उद्घार हो सकता है कि इसीलिए हाल के दिनों में जब वह दिल्ली गए थे तो वह आरएसएस के साथ ही भाजपा के नेताओं के साथ भी मिले थे और उन्हें स्वयं द्बारा लिखी किताबें-लम्हों की खता और रहबर की रहजनी की प्रतियां दी थीं। पर यहां भी सवाल खड़ा होता है कि उनका भाजपा के साथ यह कैसा लगाव है। मान लेते हैं कि भाजपा से उनका पुराना नाता है तो फिर वह भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी को बिना किसी वजह बदनाम करने की कोशिश क्यों कर रहे हैं ? जिन पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उन्हें अपनी सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय दिया था, उनके खिलाफ प्रदेश में माहौल क्यों बनाया जा रहा है। क्या उनका मकसद सिर्फ रघुवर दास को बदनाम करना है? चाहे उसके लिए उन्हें किसी भी हद तक जाना पड़े। ऐसी परिस्थितियों में अगर, वह घर वापसी करते भी हैं तो उनकी दाल गलेगी कैसे ? क्योंकि पूरी प्रदेश कार्यकारिणी में वह किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होंगे। जिस तरह से उन्होंने राज्य में भाजपा को बदनाम किया है, उससे नहीं लगता है कि उन्हें किसी भी प्रकार का समर्थन केंद्रीय कार्यकारिणी और प्रदेश कार्यकारिणी की तरफ से मिलेगा। लिहाजा, सरयू राय को यह समझना चाहिए कि जनता ने जिस मुख्यमंत्री रघुवर दास को दनकिनार कर उन्हें वोट देकर जिताया है, कम-से-कम वह उनके बारे में तो सोचें। दुश्मनी की राजनीति छोड़कर राजनीति के लिए मिसाल पेश करें और विकास पर अपना ध्यान लगाएं, तभी क्षेत्र की जनता उन्हें माफ करेगी। भाजपा से अलग होकर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया था उसका हश्र भी झारखंड की जनता ने देखा है उससे भी विधायक सरयू राय को सबक लेने की जरूरत है
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