Monday 25 November 2019

विपक्षी चक्रव्यूह में फंसे रघुवर दास!

देवानंद सिंह
मोदी फैक्टर करेगा काम!
बीजेपी और आजसू का गठबंधन टूटने से झारखंड विधानसभा का चुनाव रोमांचक स्थिति में आ गया है। कुछ दिनों पूर्व तक भाजपा के पक्ष में जा रहे समीकरणों पर इसका काफी असर पड़ने वाला है और अब मुकाबला सीधी फाइट का नजर आने लगा है। पूर्वी विधानसभा जमशेदपुर सीट के लिए मुकाबला पहले से ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है, लेकिन भाजपा आजसू गठबंधन टूटने और मंत्री सरयू राय के निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उक्त सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी से सीएम रघुवर दास की समस्या बढ़ गई है,


 क्योंकि अब मुकाबला पूरी तरह से सीधी टक्कर की हो गई है हालाकि कांग्रेस व जेवीएम इसे त्रिकोणीय बनाने की मशक्कत कर रहे हैं दूसरी तरफ, झामुमो कांग्रेस व राजद महागठबंधन, जो पहले कमजोर दिख रहा था, वह झाविमो के अलग होने से अब मजबूत होता नजर आ रहा है। इस स्थिति में भी मुख्य सत्तारूढ़ दल बीजेपी के लिए ही चुनौती बढ़ने वाली है।
पूर्वी विधानसभा जमश्ोदपुर सीट राज्य की सबसे प्रतिष्ठित सीट है। सीएम रघुवर दास पिछले 25 सालों से इस सीट से जीतते आए हैं। लगातार जीतते रहने से निश्चित ही आत्मविश्वास बढ़ता ही है, ऐसे में रघुवर दास के संबंध में इस बात से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन राज्य में बदली सियासी हवा में जीत को साधना सीएम के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि कई तथ्य ऐसे हैं, जिनको लेकर लोगों में सरकार के प्रति विरोधी हवा बन रही है। एक तो सरयू राय के सीएम के खिलाफ चुनाव लड़ने के ऐलान से राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं, दूसरा आजसू से गठबंधन टूटने की वजह से भी बीजेपी के प्रति विरोधी हवा तेजी से गति पकड़ रही है। टिकट बंटवारे में मनमानी और बाहर से आए लोगों को अधिक तब्बजों दिए जाने से भी आरएसएस कैडर राज्य बीजेपी से खफा दिखाई दे रहा है।



दीगार बात है कि बीजेपी के लिए चुनाव के मद्देनजर आरएसएस कैडर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन टिकट बंटवारे में कैडर की अनदेखी किए जाने से स्थिति नियंत्रण से बाहर दिखाई दे रही है। इसीलिए दो स’ाह पहले तक के जो समीकरण थ्ो या सर्वे में यह बात सामने आ रही थी कि बीजेपी लगभग 55 सीटें निकाल लेगी, पर बदले हालातों में अब यह आसान नहीं दिखाई दे रहा है।
चुनावों में फैक्टर की बात की जाए तो तीन महत्वपूर्ण फैक्टर होते हैं, जिसमें पब्लिक फैक्टर बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसके बाद दूसरा महत्वपूर्ण फैक्टर राजनीतिक होता है और तीसरा फैक्टर सत्तारूढ़ सरकार का कामकाज होता है। हालांकि, बीजेपी के मामले में फिलहाल नरेंद्र मोदी तीसरा महत्वपूर्ण फैक्टर है। तीनों ही फैक्टरों की समीक्षा की जाए तो झारखंड की स्थिति अलग नजर आ रही है।



पब्लिक फैक्टर की बात करें तो बदले राजनीतिक हालातों में स्थिति परिवर्तनकारी है और दूसरा सीएम के जमीनी हकीकत से भी दूर बना रहना, उनके लिए नुकसानदेह साबित होने वाला है, क्योंकि उनका चाटूकारों से घिरा रहना, उन्हें सदा ही जमीनी हकीकत से दूर रखता रहा है। बहुत से पब्लिक के मुद्दों को हल करने में सरकार की नाकामी भी इस फैक्टर को प्रभावित करता है। राजनीतिक फैक्टर की बात करें तो राज्य की स्थिति सबके सामने है। राज्य की राजनीति के दिग्गज चेहरा माने जाने वाले सरयू राय स्वयं सीएम रघुवर दास को सीधी फाइट देने को तैयार हैं और आजसू भी सरकार को घ्ोरने के लिए उससे अपना दामन छुड़ा चुकी है।

 महागठबंधन की बात करें तो कई दल एक साथ आकर बीजेपी को चुनौती देने के लिए चुनाव मैदान में हैं। क्या ऐसे में नहीं लगता है कि बीजेपी के साथ-साथ स्वयं रघुवर दास की समस्या बढ़ने वाली है ? अगर, मोदी फैक्टर की बात करें तो भी स्थिति सीएम रघुवर दास के पक्ष में नहीं जा रही है। विधानसभा चुनावों में जनता स्थानीय मुद्दों को ज्यादा तब्बजो देती है। उसे केंद्र के कार्यों से बहुत कुछ लेना देना नहीं होता है। पिछले पांच वर्षों की बात करें तो राज्य में स्थानीय सरकार के कार्यों से ज्यादा केंद्र सरकार के कार्यों की बात होती रही है। केंद्र की ही योजनाओं का प्रचार-प्रसार भी अधिक होता रहा, जिसमें सरकार के कार्यों से जनता अधिक अवगत नहीं हो पाई। इन हालातों में सीएम रघुवर दास कैसे डैमेज कंट्रोल कर पाएंगे, यह अपने-आप में बहुत बड़ा सवाल है। वहीं, सीएनटी-एसपीटी एक्ट को लेकर सरकार के खिलाफ हुए विरोध व भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर भी सरकार निशाने पर आते दिख रही है। नए राजनीतिक हालातों में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा बनकर उभरने वाला है। खासकर, झारखंड भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कद्दावर नेता सरयू राय के बगावत करने के बाद। निश्चित ही, सरयू राय की छवि राज्य में एक ईमानदार नेता की रही है और विपक्ष भी इसी मुद्दे को हवा देने की तैयारी में जुट गया है। भ्रष्टाचार को लेकर सरयू राय के सरकार के खिलाफ बयानों को विपक्ष ने न केवल जमशेदपुर में, बल्कि पूरे प्रदेश में रघुवर सरकार के खिलाफ पहुंचाने की रणनीति तैयार की है।


झारखंड की मुख्य विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने सरयू राय की बगावत को 'भ्रष्टाचार बनाम ईमानदारी की लड़ाई' का नाम देकर इस रणनीति के संकेत भी दे दिए हैं। भाजपा के प्रदेश नेता भी इसे लेकर सकते में हैं। इसमें कोई शक नहीं कि राय की छवि एक ईमानदार की नेता रही है। ऐसे में, सरयू राय की बगावत के बहाने हेमंत सोरेन को सरकार पर हमला करने का एक और मौका मिल गया है और हेमंत इस मौके को किसी तरह छोड़ना नहीं चाहते। सोरेने ने सभी विरोधी दलों से सरयू राय को समर्थन देने की अपील की है।
उल्लेखनीय है कि सरयू राय मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतर गए हैं। सरयू राय कहते भी हैं कि पार्टी के कुछ नेता उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने देना नहीं चाहते। जब बीजेपी भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने की बात करती है तो ऐसे में यह मुद्दा उसी के खिलाफ जाने वाला है। हेमंत सोरेन सिर्फ मुख्यमंत्री रघुवर के खिलाफ उनकी सीट पर ही नहीं, बल्कि सरयू राय के उक्त बयान और पुराने बयानों के आधार पर पूरे राज्य में भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाने में जुट गए हैं। हेमंत अब सरयू राय को भ्रष्टाचार से लड़ने वाला नेता बताते हुए उनका भाजपा के खिलाफ इस्तेमाल करने में जुट गए हैं। यहां बता दें कि झारखंड के सभी चुनावों में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा रहता है, ऐसे में माना जा रहा है कि इस चुनाव में भ्रष्टाचार चुनावी मुद्दा बनेगा।

सोशल मीडिया में भी सरयू राय को लेकर भाजपा के खिलाफ मुहिम चलाई जा रही है। ऐसे में, भाजपा के नेता भी सकते में हैं। इसे लेकर सोशल मीडिया में भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री इस चुनाव प्रचार में आकर भ्रष्टाचार के खिलाफ क्या बोलेंगे, यह देखने वाली बात होगी। इन सब परिस्थितियों में मुख्यमंत्री रघुवर दास के लिए स्थिति सामान्य नहीं रह जाती है, क्योंकि आखिरकार हार या जीत के लिए उन्हें ही सबसे अधिक जिम्मेदार माना जाएगा। फिलहाल, पहले चरण का मतदान करीब है और विपक्षी दल किसी भी तरह से बीजेपी को सत्ता को दूर रखना चाह रहे हैं, जबकि 2014 के बाद हर चुनाव में मोदी फैक्टर कामयाब होता रहा है, लेकिन झारखंड चुनाव में इस फैक्टर का कितना असर होगा। यह बात खास मायने रख्ोगी।
अगर, यह फैक्टर चल गया तो राज्य में बीजेपी के लिए जीत आसान हो जाएगी, लेकिन इन सब पस्थितियों में जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह है टिकट बंटबारे में अनदेखी के चलते राष्ट्रीय स्वयं संघ की केतली में आए उबाल की। इस उबाल को मुख्यमंत्री रघुवर दास द्बारा शांत किए जाने की आवश्यकता है। इसके अलावा बस्ती विकास समिति के पदाधिकारियों के मनोबल को बढ़ाना भी आवश्यक है, तभी चुनाव को फतह किया जा सकता है और खतरे में आई बीजेपी और आरएसएस की साख को भी बचाया जा सकता है।

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