Wednesday 1 April 2020

जब संकट बड़ा हो तो संघर्ष भी बड़ा अपेक्षित होता है




देवानंद सिंह
कोरोना ऐसा संकट ऐसा है, जिसने भारत के लोगों को संकट में डाल दिया है। इस महासंकट के निजात पाने में दुनिया की बड़ी-बड़ी शक्तियां धराशायी हो गई या स्वयं को निरुपाय महसूस कर रही है, ऐसे समय में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन



स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता सजग हैं और अपने पदाधिकारियों की बदौलत महामारी से निपटने के लिए तैयार भी हैं



हम बात करते हैं जमशेदपुर की.
जमशेदपुर जिला प्रशासन उपायुक्त रविशंकर शुक्ला के नेतृत्व में तो पुलिस पदाधिकारी एसएसपी अनूप बिरथरे के दिशा निर्देश मे



, जबकि डॉक्टरों की टीम सिविल सर्जन डॉक्टर महेश्वर प्रसाद साथ मुस्तैदी के साथ आपदा से निबटने के लिए तैयार हैं,वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, स्वयंसेवी संस्थाएं राष्ट्रीय राजनीतिक दल के लोग अपनी सुनियोजित तैयारियों, संकल्प एवं सेवा-प्रकल्पों के जरिये कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जरूरतमंदों की सहायता के लिये मैदान में हैं



इस महामारी के दौरान सबसे बड़ी चीज जो देखने को मिल रही है वह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का संकल्प
‘नर सेवा नारायण सेवा’ के मंत्र पर चलते हुए देश के 529 जिलों में 30 लाख से अधिक स्वयंसेवक हर स्तर पर राहत पहुंचाने में जुटे हैं। सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी के प्रभावी नेतृत्व में देश के अलग-अलग हिस्सों में वे गरीब और जरूरतमंदों को भोजन खिला रहे हैं, बस्तियों में जाकर मास्क, सेनेटाइजर, दवाइयां एवं अन्य जरूरी सामग्री बांटकर कर लोगों को राहत पहुंचा रहे हैं , जागरूक कर रहे हैं।



वे इस आपदा-विपदा में किसी देवदूत की भांति सेवा कार्यों में लगे हुए हैं। उनके लिए खुद से बड़ा समाज है। उनकी संवेदनशीलता एवं सेवा-भावना की विरोधी भी प्रशंसा करने से स्वयं को रोक नहीं पा रहे हैं। यह ऐसी उम्मीद की किरण है जिससे आती रोशनी इस महासंकट से लड़ लेने एवं उसे जीत लेने की संभावनाओं को उजागर कर रही है।



कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में भी संभावनाभरा नजारा दिखाई दे रहा है। जब सारा देश अपने घरों में कैद होने को मजबूर है। वायरस जानलेवा है, ऐसे मेें जहां शहर के शहर लॉकडाउन हो गए हैं। चारों तरफ आवागमन बंद हुआ पड़ा है। ऐसी स्थिति में भी जिला प्रशासन, पुलिस, डॉक्टर , स्वयंसेवी संस्थाएं और संघ के स्वयंसेवक बिना अपनी जान की परवाह किए अलग-अलग हिस्सों में जरूरतमंद लोगों तक राहत पहुंचाने में जुटे हुए हैं। जब संकट बड़ा हो तो संघर्ष भी बड़ा अपेक्षित होता है। इस संघर्ष में मुट्ठियां तन जाने का अर्थ है कि किसी लक्ष्य को हासिल करने का पूरा विश्वास जागृत हो जाना।



अंधेरों के बीच जीवन को नयी दिशा देने एवं संकट से मुक्ति के लिये कांटों की ही नहीं, फूलों की गणना जरूरी होती है। अगर हम कांटे-ही-कांटे देखते रहें तो फूल भी कांटे बन जाते हैं। जबकि उम्मीद की मद्धिम लौ, नाउम्मीदी से कहीं बेहतर है। हकीकत तो यह है कि हंसी और आंसू दोनों अपने ही भीतर हैं। अगर सोच को सकारात्मक बना लें तो जीवन हंसीमय बन जाएगी और संकट को हारना ही होगा।



संकट की इस घड़ी में मीडिया भी देश के साथ खड़ा है अपनी जान की परवाह किए बिना बैगर आप तक खबर पहुंचाने के लिए तत्पर है तो आइए एक बार हम सब मिलकर जिला प्रशासन पुलिस पदाधिकारी डॉक्टर्स, मीडियाकर्मियों के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाओं और संघ से जुड़े स्वयंसेवकों, सफाई कर्मियों को आभार प्रकट करें साथ ही साथ सरकारी निर्देशों का पालन करें
*कोरोना के महायुद्ध को सरहद से नहीं घर से जीतें*
*अपने क़िरदार की हिफाज़त जान से बढ़कर कीजिए*

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