Friday 3 December 2021

आखिर छात्रा की मौत का जिम्मेदार कौन ?

देवानंद सिंह

स्कूल बदलने से बाराडीह स्कूल की एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली। छात्रा स्कूल बदलने से आहत थी। कोराेना की वजह से छात्रा के पिता का कारोबार प्रभावित हो गया था तो उन्हें बाराडीह हाईस्कूल से नाम कटाकर हिंदुस्तान मित्र मंडल स्कूल में दाखिला कराना पड़ा। जबकि छात्रा चाहती थी कि वह बारडीह हाईस्कूल में ही पढ़े। ये घटना एक छात्रा द्वारा आत्महत्या करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि एक झकझोर देने वाली घटना भी है। यह घटना गंभीर सवाल भी खड़े करती है कि क्या वाकई हमारे देश की पब्लिक एजुकेशन इतनी क्रूर हो गई है ? फीस के दबाब में किसी छात्रा को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा ? यह घटना एक तरह से हत्या जैसी है।



 वैसे भी यह एकमात्र घटना नहीं है। बल्कि हर साल ऐसी कई घटनाएं होती हैं। लेकिन केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें ऐसी घटनाओं पर चुप रहते हैं। कभी भी किसी स्कूल के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है। सरकारों पर शिक्षा माफिया इतने हावी हैं कि उन्हें मनमर्जी से काम करने की आजादी है। कोई भी कानून इन शिक्षा माफियाओं पर लागू नहीं किया जाता है। स्कूल वाले जिस तरह से मनमर्जी से फीस बढ़ाते रहते हैं, उसको लेकर शासन व प्रशासन स्कूल प्रबंधकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता है। इसमें सिर्फ और सिर्फ आम आदमी पिसता है। वैसे तो हमारे देश में शिक्षा को लेकर बड़ी बड़ी बातें होती हैं, लेकिन ये बातें हमेशा ही कागजी रहती हैं। क्या जिस तरह कानून आम जनता पर लागू होता है, क्या स्कूल संचालकों पर लागू नहीं हो सकता है ? यह सब निर्भर करता है शासन प्रशासन की सख्ती पर। अगर, शासन प्रशासन सख्त रहते तो कभी भी स्कूल संचालक मनमर्जी से फीस नहीं बढ़ाते। हर साल स्कूल संचालक 20 प्रतिशत तक फीस बढ़ा रहे हैं, जो किसी भी नौकरी पेशा आदमी के हर साल होने वाली वेतन बढ़ोतरी से बहुत अधिक रहता है। इसीलिए एक आम आदमी या नौकरी पेशा आदमी कैसे इन स्कूलों की फीस भरेगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन इस बात की पीड़ा न तो शिक्षा माफियाओं को है और न शासन प्रशासन को। कोरोना काल में हम सबने देखा कि किस तरह प्रशासन के साथ कई राज्यों की सरकारों ने एक दो माह की फीस माफ करने को कहा, लेकिन मुश्किल से ही ऐसे कम उदाहरण देखने को मिले, जहां स्कूल संचालकों द्वारा फीस माफ की गई। लॉकडाउन में नौकरी गंवाने के बाद भी अधिकांश अभिभावक फीस भरने को मजबूर हुए। अभिभावकों द्वारा भारी विरोध किए जाने के बाद भी न तो स्कूल संचालकों के मन में मानवता झलकी और न ही शासन प्रशासन के। लिहाजा, मजबूरी में अभिभावकों को फीस भरने के लिए मजबूर होना पड़ा। अभिभावकों ने कैसे फीस भरी होगी, इस दर्द को वही समझ सकते हैं। जो अभिभावक फीस नहीं भर पाए तो उन्होंने महंगे स्कूलों से नाम कटाकर अपने बच्चों का नाम सस्ते स्कूलों में लिखवाया। वैसे ही, केसों में यह केस भी शामिल रहा। जो छात्रा को मंजूर नहीं था, जिसके चलते उसने आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठा लिया। पर यहां सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह कि आखिर छात्रा की मौत का जिम्मेदार है कौन ? क्या इसके लिए वह स्कूल प्रबंधन जिम्मेदार नहीं है, जिसके दबाव के चलते छात्रा के पिता को मजबूरन दूसरे स्कूल में दाखिला कराना पड़ा ? क्या प्रशासन को ऐसे स्कूलों की मान्यता खत्म नहीं कर देनी चाहिए ? क्योंकि यह मामला बहुत ही गंभीर श्रेणी में आता है। अगर, ऐसे स्कूलों के खिलाफ कार्यवाई नहीं की गई तो भविष्य में ऐसे और भी कई मामले देखने को मिलेंगे। अगर, देश का भविष्य बनाने वाले स्कूलों की वजह से बच्चों को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़े तो फिर देश के भविष्य का क्या होगा ? इस पर गभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

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