देवानंद सिंह
जयंती विशेष…..
कई मायनों में विशेष होने जा रही है स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती
धूमधाम से मनाई जाएगी स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती तैयारी पूरी
किसान आन्दोलन के जनक थे स्वामी सहजानन्द सरस्वती…. हर साल की तरह इस बार भी स्वामी सहजानन्द सरस्वती की जयंती धूमधाम से मनाई जाएगी। स्वामी जी की 133वीं जयंती पर 12 मार्च शनिवार को विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा और स्वामी जी के कार्यों के बारे में लोगों को बताया जाएगा, क्योंकि समाज
में उनके द्वारा किए कार्यों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। वह न केवल भारत में किसान आन्दोलन के जनक थे, बल्कि राष्ट्रवादी नेता एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। स्वामी जी आदि शंकराचार्य सम्प्रदाय के दसनामी संन्यासी अखाड़े के दण्डी संन्यासी थे। उनकी गिनती महान बुद्धजीवियों, लेखक, समाज-सुधारक, क्रान्तिकारी और इतिहासकार के रूप में भी होती है। उन्होंने ‘हुंकार’ नामक एक पत्र भी प्रकाशित किया। स्वामी सहजानन्द की पुण्य स्मृति में उनके गृह जनपद गाजीपुर में स्वामी सहजनन्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय भी स्थापित है।
कई मायनों में विशेष होने जा रही है स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती
स्वामी सहजानंद सरस्वती कल्याण संस्थान एवं ब्रह्मर्षि विकास मंच के संयुक्त तत्वावधान में कल यानि 12 मार्च को मनाई जाने वाली स्वामी सहजानंद सरस्वती की 133वी जयंती कई मायनों में विशेष होने जा रही है। यह न केवल ब्रह्मर्षि विकास मंच द्वारा 2023 में आयोजित किए जाने वाले राष्ट्रीय सम्मेलन का सेमीफाइनल माना जा रहा है, बल्कि उन सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए आइना दिखाने वाला होगा, जिन्होंने पिछले डेढ़ दो दशक के दौरान स्वामी जी के शुभचिंतकों और समाज को नजर अंदाज किया है स्वामी जी का समाज के उत्थान के लिए कार्य काफी महत्व रखते हैं, इसीलिए यह बहुत आश्चर्यजनक है कि यह सब जानते हुए भी राजनीतिक पार्टियों को स्वामी जी की याद नहीं आईं। अब जिस तरह ब्रह्मर्षि विकास मंच व स्वामी सहजानंद सरस्वती कल्याण संस्थान जमशेदपुर ने चुनौती के रूप में लिया है और स्वामी के कार्यों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के प्रयास कर रहा है, उससे मंच और संस्थान की भी सामाजिक पृष्ठभूमि को और भी महत्व मिलेगा। हालांकि संस्थान लगातार कई वर्षों से स्वामी जी की जयंती पर कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है, लेकिन बड़े स्तर के कार्यक्रमों की कमी देखी गई, लेकिन अब जिस तरह की योजना बनाकर चल रहा है, उससे निश्चित तौर पर समाज का हर व्यक्ति स्वामी जी के कार्यों से अवगत होगा, जो काफी प्रेरणादायक साबित होगा
स्वामी जी का जन्म उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले के देवा गांव में सन् 1889 में महाशिवरात्रि के दिन हुआ था। बचपन में ही उनकी माताजी का स्वर्गवास हो गया था। कहते हैं पुत के पांव पालने में हीं दिखने लगते हैं। पढ़ाई के दौरान ही उनका मन आध्यात्म में रमने लगा था। दीक्षा को लेकर उनके बालमन में धर्म की इस विकृति के खिलाफ विद्रोह पनपा। धर्म के अंधानुकरण के खिलाफ उनके मन में जो भावना पली थी, कालांतर में उसने सनातनी मूल्यों के प्रति उनकी आस्था को और गहरा किया। वैराग्य भावना को देखकर बाल्यावस्था में ही इनकी शादी कर दी गई। संयोग ऐसा रहा कि गृहस्थ जीवन शुरू होने के पहले ही इनकी पत्नी का देहांत हो गया।
इसके बाद उन्होंने विधिवत संन्यास ग्रहण की और दशनामी दीक्षा लेकर स्वामी सहजानंद सरस्वती हो गए। इसी दौरान उन्हें काशी में समाज की एक और कड़वी सच्चाई से सामना हुआ। दरअसल, काशी के कुछ पंड़ितों ने उनके संन्यास का ये कहकर विरोध किया कि ब्राह्मणेतर जातियों को दण्ड धारण करने का अधिकार नहीं है। स्वामी सहजानंद ने इसे चुनौती के तौर पर लिया और विभिन्न मंचों पर शास्त्रार्थ कर ये साबित किया कि भूमिहार भी ब्राह्मण हीं हैं और हर योग्य व्यक्ति संन्यास धारण करने की पात्रता रखता है। बाद के दिनों में स्वामीजी ने बिहार में किसान आंदोलन शुरू किया। उन्होंने कांग्रेस में रहते हुए किसानों को हक दिलाने के लिए संघर्ष को हीं जीवन का लक्ष्य घोषित किया। उन्होंने नारा दिया- कैसे लोगे मालगुजारी, लट्ठ हमारा ज़िन्दाबाद। बाद में यही नारा किसान आंदोलन का सबसे प्रिय नारा बन गया। वे कहते थे- अधिकार हम लड़ कर लेंगे और जमींदारी का खात्मा करके रहेंगे। उनका ओजस्वी भाषण किसानों पर गहरा असर डालता था। काफ़ी कम समय में किसान आंदोलन पूरे बिहार में फैल गया।
स्वामी जी का प्रांतीय किसान सभा संगठन के तौर पर खड़ा होने के बजाए आंदोलन बन गया। हर ज़िले और प्रखण्डों में किसानों की बड़ी-बड़ी रैलियां और सभाएँ हुईं। बाद के दिनों में उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी नेताओं से हाथ मिलाया। सर्वश्री एम जी रंगा, ई एम एस नंबूदरीपाद, पंड़ित कार्यानंद शर्मा, पंडित यमुना कार्यजी जैसे वामपंथी और समाजवादी नेता किसान आंदोलन के अग्रिम पंक्ति में। आचार्य नरेन्द्र देव, राहुल सांकृत्यायन, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, पंडित यदुनंदन शर्मा, पी. सुन्दरैया और बंकिम मुखर्जी जैसे तब के कई नामी चेहरे भी किसान सभा से जुड़े थे। वामपंथी रुझान के चलते सीपीआई उन्हें अपना समझती रही और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ भी वे अनेक रैलियों में शामिल हुए। आज़ादी की लड़ाई के दौरान जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तो नेताजी ने पूरे देश में ‘फ़ारवर्ड ब्लॉक’ के ज़रिये हड़ताल कराई। किसानों के बच्चों को शिक्षार्जन हेतु आर्थिक सहायता देने, उच्च न्यायालय में लड़ाई लड़कर 16 सरकारी गन्ना मिलों में किसानों के गन्ना मूल्य की लंबित राशि ब्याज सहित दिलवाने, किसान रथ के माध्यम से राज्य के 162 प्रखंडों में भ्रमण कर ‘कृषक-जागृति अभियान’ चलाने, राज्य मुख्यालय में स्वामीजी की आदमकद प्रतिमा स्थापित कराने, स्वामीजी की जयंती को राजकीय समारोह के रूप में मनाने की सरकारी घोषणा कराने आदि कार्य अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय हैं। स्वामी जी कई पुस्तकों की रचना भी कर चुके हैं, जिनमें ब्रह्मर्षि वंश विस्तार, ब्राह्मण समाज की स्थिति, झूठा भय मिथ्या-अभिमान, कर्म-कलाप, गीता-हृदय (धार्मिक) क्रान्ति और संयुक्त मोर्चा, किसान सभा के संस्मरण, किसान कैसे लड़ते हैं, झारखण्ड के किसान, किसान क्या करें, मेरा जीवन संघर्ष (आत्मकथा) जैसी पुस्तकें मुख्य रूप से शामिल हैं। इसके अलावा कई पत्रों का संपादन भी स्वामी जी ने किया।
धूमधाम से मनाई जाएगी स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती तैयारी पूरी
धूमधाम से मनाई जाएगी स्वामी सहजानंद सरस्वती की जयंती स्वामी सहजानंद सरस्वती कल्याण संस्थान एवं ब्रह्मर्षि विकास मंच के संयुक्त तत्वावधान में कल यानि 12 मार्च को स्वामी जी की 133वी जयंती पर पारिवारिक मिलन समारोह एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कदमा स्थित संस्थान के भवन में होने जा रहा है। बता दें, यह आयोजन पिछले 7 साल से लगातार किया जा रहा है। समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बिहार के राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद, स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता एवं जमशेदपुर सांसद विद्युत वरण महतो मौजूद रहेंगे। ब्रह्मर्षि विकास मंच के अध्यक्ष विकास सिंह, महासचिव अनिल ठाकुर एवं संस्थान के अध्यक्ष दीपू सिंह ने आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में संयुक्त रूप से कहा कि स्वामी सहजानंद सरस्वती कल्याण संस्था स्वामी जी के वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को हमेशा से चरितार्थ कर रही है। इस संस्थान के द्वारा बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा, गरीब कन्याओं की शादी में मदद एवं विभिन्न तरह के जरूरतमंद परिवार को हर तरह की मदद की जाती रही है। विकास सिंह ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस 28 अप्रैल को ऑल इंडिया स्वामी सहजानंद दिवस मनाने का निर्णय लिया था। यह निर्णय स्वामी जी का राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना को देखते हुए लिए थे। स्वामी जी देश के पहले ऐसे किसान आंदोलन के जनक हैं, जिन्होंने कहा था कि मेरा खून खौल उठता है, जब मैं किसी किसान दलित या आदिवासी को प्रताड़ित होते देखता हूं। स्वामी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी महान मानव थे। उनके बताए मार्ग एवं आदर्शों का पालन कर ही हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं। प्रेस कांफ्रेंस के दौरान ब्रह्मर्षि विकास मंच के अध्यक्ष विकास सिंह, महासचिव अनिल ठाकुर, संस्थापक महासचिव राज किशोर सिंह, स्वामी सहजानंद कल्याण संस्थान के अध्यक्ष दीपू सिंह, महासचिव जयकुमार, देवानंद सिंह, राकेश कुमार, सुधांशु कुमार, शुभाशीष उपाध्याय, अशोक कुमार, रवि भूषण शर्मा, राजेश आदि भी मौजूद थे। स्वामी सहजानंद सरस्वती कल्याण संस्थान के अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह ने बताया कि स्वामी सहजानंद सरस्वती किसानों के सबसे बड़े हिमायती थे और जमीदारी प्रथा के घोर विरोधी थे। उन्होंने सर्वहारा अभियान की नींव डाली थी। वे किसी खास जाति की बात नहीं करते थे। उन्होंने बताया कि हर साल स्वामी जी की जयंती को धूमधाम से मनाई जाती है। इस साल भी स्वामी जी की जयंती को धूमधाम से मनाई जा रही है, जिसमें समाज के ही कलाकार रंगारंग प्रस्तुति देंगे।
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