देवानंद सिंह
आरोपों से आहत केसीसीआई प्रबंधन ने विभाग के साथ-साथ उपायुक्त ,एसएसपी सिविल सर्जन र्वी सिंहभूम को आवेदन देकर निष्पक्ष जांच की मांग की है
किसी ने ठीक ही कहा है, जिसकी लाठी उसका भैंस। यह कहावत झारखंड के स्वास्थ्य क्षेत्र के मामले में सटीक बैठती दिख रही है, क्योंकि हाल के दिनों में गर्भपात मामले में भी यह बात देखने को मिली थी, और अब केसीसीआई अस्पताल से जुड़े प्रकरण में देखने को मिल रही है। यानि जिसके पास पद-प्रतिष्ठा और पैसा है, उसका कुछ भी नहीं बिगड़ना है, जिसके पास पैसा-पद प्रतिष्ठा नहीं है, उसकी सबको खैर लेनी है। यह न केवल पक्षपातपूर्ण रवैया नजर आता है, बल्कि साजिशन उठाए जाने वाला कदम जान पड़ता है। गर्भपात प्रकरण में क्या स्थिति है, यह तो सबके सामने है, लेकिन केसीसीआई अस्पताल से जुड़े मामले की सच्चाई से शायद ही बहुत कम लोग रुबरु होंगे। दरअसल, मरीज का ऑपरेशन किसी और अस्पताल में हुआ है, पर विरोध की लकीर केसीसीआई अस्पताल के खिलाफ खींची जा रही है। इससे न केवल उच्च महकमा सवालों के घेरे में है बल्कि उन लोगों पर भी सवाल खड़ा हो रहा है, जो लोग मरीज की मदद करने के बजाय उसे उकसाने का काम कर रहे हैं। दरअसल, घाटशिला के रहने वाले गंगाधर सिंह का केसीसीआई अस्पताल में पिछले साल 18 नवंबर 2021 को मोतियाबिंद का सफल ऑपरेशन हुआ था। अस्पताल द्वारा मरीज को सलाह दी गई थी कि वह कुछ दिनों के लिए काफी एहतियात बरते और कोई ऐसा काम न करे, जिससे आंख पर बुरा प्रभाव पड़े। 24 नवंबर 2021 को मरीज गंगाधर सिंह दोबारा अस्पताल में आया कि उसके आंख में दर्द हो रहा है। जब उससे पूछा गया कि क्या उसने कोई लापरवाही तो नहीं बरती, तब उसने बताया कि उसने खेतों में काम किया। जब अस्पताल के डॉक्टर ने जांच की तो आंख में संक्रमण होने की बात सामने आई। तब अस्पताल ने उसे ऑपरेशन के लिए कोलकाता मेडिकल कॉलेज ऑफ हॉयर सेंटर में भेजा, जहां जांच में पेन ऑफ टलमिट्स (आंख का संक्रमण) सामने आया, जिसके बाद उसके आंख का ऑपरेशन कर डुप्लीकेट आंख लगाई गई। चार दिन पूर्व गंगाधर के आंख में खुजली हुई और उसकी डुप्लीकेट आंख गिर गई। इसके बाद इस प्रकरण पर मरीज की मदद करने के बजाय केसीसीआई अस्पताल के खिलाफ साजिश होने लगी।
कथित समाजसेवी बहादुर सोरेन इसके अगुआ बने जो खुद हमेशा विवादों में रहे हैं उनका इतिहास ही विवादों से भरा पूरा है पूर्व में ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए बन रही विश्वविद्यालय के लिए उन्होंने क्या किया क्षेत्र की जनता जान रही है खैर यह बात अपने-आप में चौंकाती है कि जब केसीसीआई अस्पताल में ऑपरेशन ही नहीं हुआ तो उसे क्यों साजिशन बदनाम किया जा रहा है ? यह एक बड़ा सवाल है। वैसे तो बहुत सारी स्वयं संस्थाएं और राजनीतिक पार्टियां सामाजिक सेवा के नाम पर खूब बातें करती हैं, लेकिन इस मामले में केवल अपनी टीआरपी बढ़ाने का काम हो रहा है। अगर, मरीज की डुप्टीकेट आंख निकल गई तो क्या इसके लिए संबंधित अस्पताल के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला जाना चाहिए था ? केसीसीआई को साजिशन बदनाम करने का क्या फायदा, जहां मरीज का मोतियाबिंद का सफल ऑपरेशन हुआ था, डुप्लीकेट आंख तो कोलकाता मेडिकल कॉलेज ऑफ हॉयर सेंटर में लगाई गई थी, तो उसके खिलाफ ही विरोध होना चाहिए था। वहीं, समाज सेवा का बीड़ा उठाए स्वयंसेवी संस्थाओं को मरीज की
मदद के लिए आगे नहीं आना चाहिए था, क्योंकि मरीज ग्रामीण परिवेश से है, उसे राजनीति नहीं बल्कि मदद की जरूरत है। इस प्रकरण में पुलिस-प्रशासन और चिकित्सा अधिकारियों को भी गंभीरता से सोचना चाहिए और विरोध कर रहे पक्ष को समझाए कि पहला तो ऑपरेशन के बाद एहतियात बरतने की जरूरत थी, और दूसरा मरीज ने कोई लापरवाही बरती भी है तो उसके लिए जिम्मेदार अस्पताल का विरोध किया जाना चाहिए न कि केसीसीआई का, क्योंकि केसीसीआई ने सफल मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया था, जबकि डुप्लीकेट आंख तो कोलकाता मेडिकल कॉलेज ऑफ हॉयर सेंटर ने लगाई थी। उधर, मीडिया को भी केवल ट्रॉयल के नाम पर खबर चलाने के बजाय खबर की तहकीकात में जाकर हकीकत को प्रचारित करना चाहिए, तभी मीडिया की साख बरकरार रहेगी। क्योंकि सवाल इसीलिए खड़े हो रहे हैं, क्योंकि हाल ही में जब 132 भ्रूण हत्याओं का मामला सामने आया था, उसमें परिवार क्लीनिक के झोलाछाप डॉक्टर को तो गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि दिग्गज अस्पताल के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया, वो आज भी खुलेआम अपना क्लीनिक चला रहे हैं। इसके पीछे की वजह केवल पद-प्रतिष्ठा और पैसा है। यही स्थिति अगर, केसीसीआई के प्रकरण में भी देखने को मिल रही है तो निश्चित ही यह किसी साजिश का हिस्सा है। लिहाजा, चिकित्सा महकमे को इस मामले में गंभीरता से विचार करना चाहिए।
कहीं केसीसीआई अस्पताल को टारगेट तो नहीं किया जा रहा
एक कथित समाजसेवी इसके अगुआ बने हैं. हालांकि उन समाजसेवी का इतिहास ही विवादों से भरा है. एक सवाल यह भी है कि जब गंगाधर का कोलकाता के अस्पताल में ऑपरेशन हुआ था, तो केसीसीआई अस्पताल को क्यों टारगेट किया जा रहा है. वह भी कई महीनों बाद. सवाल यह भी है कि जब कोलकाता में ऑपरेशन के बाद से ही मरीज गंगाधर नकली आंख के साथ रह रहा था. कृत्रिम आंख से दिखाई नहीं देता. वह आंख इसलिए लगायी
गयी थी, ताकि बिना आंख का चेहरा देखने में खराब नहीं लगे. फिर गंगाधर को इतने समय बाद धोखाधड़ी का पता कैसे चला. उसे तो तभी पता चल जाना चाहिए था, जब उसकी दाहिनी आंख से दिखाई देना बंद हो गया था. आखिर गंगाधर को शिकायत किस बात की है. ऑपरेशन में आंख खराब होने की अथवा कृत्रिम आंख के गिर जाने की. यह जाने बिना कुछ लोगों ने केसीसी अस्पताल और उसके प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उस गरीब गंगाधर की मदद करने के बजाय कथित समाजसेवियों ने उसे भयादोहन का जरिया बनाने की कोशिश की. यह किसी ने नहीं सोचा कि केसीसीआई अस्पताल में तो मरीज का मोतियाबिंद का सफल ऑपरेशन हुआ था. डुप्लीकेट आंख तो कोलकाता मेडिकल कॉलेज ऑफ हॉयर सेंटर में लगायी गयी थी.
क्या है गंगाधर सिंह का आरोप
गंगाधर ने बताया कि 18 नवंबर 2021 को अस्पताल संचालक ने कुछ और लोगों की मदद से उनको जमशेदपुर बुलवाया और बहला-फुसलाकर अपने हॉस्पिटल में दाहिनी आंख का ऑपरेशन कर दिया. डॉक्टर एके गुप्ता ने यह आपरेशन किया. इसके बाद उनके दाहिने आंख के ऊपर सूजन आ गयी.
उन्होंने अस्पताल के प्रबंधक को इसकी जानकारी दी, तो एक महीने के बाद इसी हॉस्पिटल की ओर से उन्हें कोलकाता रेफर किया. एक महीने तक कोलकाता में रखकर उनका इलाज किया गया. फिर वापस जमशेदपुर लाकर एक महीने तक यहां रखा गया. गंगाधर ने बताया कि उनकी असली आंख निकाल कर कांच की गोली लगा दी गयी थी. इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी. ऑपरेशन के वक्त उनको बेहोश कर दिया गया था.
आगे हम बताएंगे कौन है बहादुर सोरेन
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