Friday 1 March 2024

गीता कोड़ा को साथ लेकर अपने प्रयोग में सफल हुई बीजेपी....!

गीता कोड़ा को साथ लेकर अपने प्रयोग में सफल हुई बीजेपी....!

देवानंद सिंह 

सिंहभूम से सांसद और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा ने कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी का दामन थामकर झारखंड में सियासी हलचल बढ़ा दी है। गीता कोड़ा का बीजेपी का दामन थामने के पीछे इसे बीजेपी का सियासी दांव कहा जाए या फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली सरकार में उनकी खराब होती जा रही स्थिति रही, हालांकि लोकसभा चुनावों के मद्देनजर ये दोनों ही परिस्थितियां जिम्मेदार इसीलिए मानी जा सकती हैं, क्योंकि कांग्रेस में रहते जहां गीता कोड़ा को आगामी लोकसभा चुनावों में सिंहभूम से टिकट नहीं मिलने की अटकलें थीं, वहीं बीजेपी के पास सिंहभूम से चुनाव लड़ने के लिए कोई दमदार चेहरा नहीं था, 



इसीलिए गीता कोड़ा का कांग्रेस का दामन छोड़ना बीजेपी के लिए अच्छा संकेत माना जा सकता है। एक तरह से  सिंहभूम के लिए दमदार चेहरा खोजने का बीजेपी का प्रयोग सफल हुआ। द्दरासल, गठबंधन में ज्यादा भाव नहीं मिलने की वजह से गीता कोड़ा झारखंड में कांग्रेस, जेएमएम और आरजेडी गठबंधन पिछले काफी समय से नाखुश थीं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की मौजूदगी में गीता कोड़ा ने पार्टी की सदस्यता लीं।


बता दें कि गीता गोड़ा 2009 से 2019 तक दो बार विधायक रह चुकी हैं। 2019 में पहली बार सिंहभूम लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं थी। गीता कोड़ा 2019 में कांग्रेस के लिए झारखंड से एकमात्र सांसद थीं। गृहमंत्री अमित शाह के झारखंड दौरे के बाद से ही उनके बीजेपी में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं, हालांकि उन्होंने इन अटकलों पर अक्सर विराम लगाया, लेकिन 26 फरवरी 2024 को आखिरकार उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया। अब यह तय माना जा रहा है कि 2024 के आम चुनाव में बीजेपी उन्हें टिकट देकर चुनाव में उतारेगी। अगर, वह कांग्रेस में ही रहती तो उन्हें 2024 में कांग्रेस द्वारा संसदीय सीट का टिकट नहीं दिया जाना तय था। 




दरअसल, झारखंड मुक्ति मोर्चा के जिला अध्यक्ष सुखराम उरांव ने झारखंड के मुख्यमंत्री के पास अपना अल्टीमेटम भेज दिया था, जिसमें सिंहभूम संसदीय सीट कांग्रेस को नहीं देकर झारखंड मुक्ति मोर्चा को देने की बात कही गई थी। इस संबंध में जिला अध्यक्ष सुखराम उरांव ने महत्वपूर्ण तर्क देते हुए लिखा कि सिंहभूम संसदीय क्षेत्र के अंदर रहने वाली 6 विधानसभा सीटों में से पांच विधानसभा सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है तो वे किस आधार पर कांग्रेस के लिए संसदीय सीट छोड़ दें। मालूम हो सुखराम उरांव खुद सिंहभूम संसदीय सीट पर 2024 का संसदीय चुनाव लड़ना



 चाहते हैं। इस तरह गीता कोड़ा की स्थिति बेसहारा के समान हो गई थी, इसीलिए 2024 का चुनाव कांग्रेस से लड़ने की उनकी उम्मीद पर लगभग पानी फिर गया था, इसलिए सही समय देखकर वह बीजेपी में चली गईं। ऐसा नहीं कि बीजेपी ने गीता कोड़ा को अपने दल में लेकर उन पर कोई एहसान किया है। सिंहभूम संसदीय सीट पर चुनाव लड़ने लायक भारतीय जनता पार्टी के पास कोई नेता नहीं था, दूसरा, गीता कोड़ा के जाने के बाद सुखराम उरांव का झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से संसदीय चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। अगर, ऐसी स्थिति आती है तो जमशेदपुर संसदीय सीट कांग्रेस के हिस्से में जाएगी, जिससे डॉक्टर अजय कुमार को चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा, लेकिन इस सियासी बदलाव का असर लोकसभा चुनावों में देखने को जरूर मिलेगा। 





दीगर बात है कि गीता कोड़ा के पति मधुकोड़ा ने झारखंड के मुख्यमंत्री रहने के दौरान इतना बड़ा घोटाला किया कि पूरे देश में झारखंड की छवि धूल में मिल गई थी। इस बात को लेकर बीजेपी की इज्जत उछालने का मौका दूसरे दलों को मिल गया है। 2009 में जब मधु कोड़ा को भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाना पड़ा, तब गीता कोड़ा ने राजनीति में कदम रखा था। अब देखने वाली बात होगी कि क्या बीजेपी का दामन थामकर गीता कोड़ा गठबंधन सरकार के लिए सियासी चुनौती पेश कर पाएंगी या नहीं।

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