देवानंद सिंह
सरकार के तीसरे कार्यकाल को लेकर कई बातें मीडिया में चल रहीं हैं। भले ही अभी मोदी सरकार बनाने में कामयाब हो जाएं, लेकिन क्या वह पांच साल तक सरकार चला पाएंगे, क्योंकि नीतीश कभी भी पलटी मार सकते हैं, इसीलिए तरह-तरह के सवाल सियासी गलियारों में चल रहे हैं।
नीतीश कभी भी पलटी मार सकते हैं, इस बात को लेकर इसीलिए भी चर्चा हो रही है, क्योंकि इसकी वजह यह भी है कि नीतीश कुमार एनडीए की बैठक में शामिल होने के लिए जिस फ्लाइट से दिल्ली गए, उसी प्लेन से तेजस्वी यादव इंडिया गठबंधन की बैठक में भाग लेने दिल्ली जा गए। अब इस संयोग को हवा इस रूप में लग गई कि क्या यात्रा के दौरान इंडिया गठबंधन में लौटने को लेकर बात तो नहीं हुई? इस शंका को बल इसलिए भी मिला कि खबर आ रही थी कि एनसीपी नेता शरद पवार ने नीतीश कुमार से बात की। मीसा भारती का बयान आया कि चाचा आ जाओ।
नीतीश कुमार की राजनीतिक जीवन मे हार-जीत का दौर चलता रहा है। कई बार जब लोग उन्हें चुका हुआ मान लेते हैं तो वो फिर से उठकर खड़े हो जाते हैं, जितना वह उठकर खड़े होते हैं, ठीक उसी तरह पलटी भी मार लेते हैं। भारतीय राजनीति में नीतीश कुमार ऐसे अकेले नेता हैं, जो पलटी मारने के लिए मशहूर हैं। भले ही, इसे संयोग कह लें या हकीकत, कभी-कभी स्थितियां ऐसी बन जाती है। जहां पलटी मारने पर एक बड़ा स्पेस दिखाई पड़ता है। लोकसभा चुनाव के परिणाम को ही देख लें तो नीतीश कुमार के पास पलटी मारने का स्पेस खुद-ब-खुद चला आया है। लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार की 40 सीटों में से एनडीए को 30 सीटों पर जीत मिली है। जदयू को 12 सीटों पर सफलता मिली। ये संख्या बल इसलिए महत्वपूर्ण हो गया कि भाजपा को लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिली। एनडीए के अन्य दलों की सीटों को जोड़ दें तो वो संख्या 292 यानी बहुमत से 20 ज्यादा।
खतरा इसीलिए भी है, क्योंकि नीतीश कुमार ने दो-दो बार एनडीए और महागठबंधन का साथ छोड़ा है। साथ छोड़ने का कारण वो अपने आसपास के लोगों को बताते हैं। महागठबंधन का साथ छोड़ा तो बताया कि संजय झा ने कहा इसलिए एनडीए में चले आए। जब महागठबंधन के साथ गए तो ठिकरा ललन सिंह और विजेंद्र यादव पर फोड़ा था। ये राजनीतिक परिवर्तन के फैक्टर बनते हैं, आज भी नीतीश कुमार के पास ही हैं।
1974 में छात्र आंदोलन के साथ राजनीतिक जीवन का सफर शुरु करने वाले नेता नीतीश कुमार ने 1994 में जार्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था, जिसके बाद वे 1995 में लेफ्ट पार्टी के साथ गठबंधन में आकर चुनाव लड़ें, हालांकि नतीजा पक्ष में नहीं आने पर उन्होंने पलटी मारते हुए 1996 में एनडीए गठबंधन का दामन थाम लिया। इस गठबंधन के साथ उन्होंने काफी लंबी दूरी तय की और 2013 तक बिहार में सरकार बनाते रहें, जिसके बाद 2014 में जोरदार पलटी मारते हुए एनडीए को चुनौती डे डाली। उन्होंने 17 सालों तक एनडीए में काम करने के बाद 2014 लोकसभा चुनाव में खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। इस चुनाव में अकेली लड़ाई लडी और सफलता ना मिलने पर कांग्रेस का दामन थाम लिया। जिसके बाद 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने बीजेपी का बिहार से सफाया कर दिया, हालांकि दो साल सरकार चलाने के बाद नीतीश कुमार ने फिर पलटी मारी को आरजेडी-कांग्रेस से अलग हो गए। जिसके बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी से पुराना रिश्ता जोड़ते हुए बिहार के मुख्यमंत्री पद का शपथ लिया। साथ ही बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी को उप मुख्यमंत्री बनाया।
साल 2017 से लेकर 2022 के शुरुआती महीने तक बीजेपी और जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने मिलकर बिहार में शासन किया, जिसके बाद नीतीश एक बार फिर नीतीश कुमार ने बीजेपी से पलड़ा झारते हुए आरजेडी का दामन थामा। डेढ़ साल तक सत्ता संभालने के बाद उन्होंने 28 जनवरी 2024 बीजेपी के साथ मिलकर नई सरकार बनाई और शपथ ग्रहण किया। आपको बता दें कि नीतीश कुमार अबतक 9 बार शपथ ग्रहण कर चुके हैं। वहीं, देश भर में राज करने वाली बीजेपी बिहार में अबतक एक बार भी मुख्यमंत्री पद नहीं ले सकी है। अब देखना होगा कि नीतीश पांच साल तक एनडीए गठबंधन में ही रहेंगे या फिर पलटी मारकर खेमा बदल लेंगे।
No comments:
Post a Comment