Thursday 6 December 2018

क्यों राह से भटक गई भाजपा?

क्यों राह से भटक गई भाजपा ?
मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूं,
मैं इन नजारों का अंधा तमाशबीन नहीं...।

भाजपा ने सत्ता में आने से पहले जिस तरह का विश्वास लोगों के बीच जगाया, वह फुस्स होता नजर आ रहा है, क्योंकि सरकार ने जो दावे किए थे वे कहीं से भी पूरे होते नहीं दिख रहे हैं। नरेंद्र मोदी की जो साहसिक नेता होने की छवि रही है, वह कारगर होती नहीं दिख रही है। ऐसे में, इस बात की संभावना से बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस सरकार का हश्र भी कांग्रेसी सरकार की तरह ही न हो जाए।
सरकार की कहानी का वर्णन करने से पहले एक नजर भाजपा के इतिहास पर डालना जरूरी है। असल में, 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ ने अपनी विचारधारा को देश के राजनीतिक पटल पर पहुंचान के लिए सबसे पहले 'जनसंघ’ के नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई। देशवासियों के बीच कार्य करने को दम भरते हुए 'जनसंघ’ परिस्थितिवश 6 अप्रैल 198० से 'भारतीय जनता पार्टी बन’ गई।
समय बीतता गया। संघ की विचारधारा और उनकी पाठशाला से शिक्षित राजनेताओं पर जनता का विश्वास बढ़ता गया और एक दिन आया, जब संघ कि विचारधाराओं से ओत-प्रोत यशस्वी व्यक्तित्व के धनी अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने। उस दौर में कई बड़े कार्य किए गए, जिससे भारत की छवि में काफी सुधार हुआ। हर मोर्चे पर देश मजबूत हुआ, लेकिन वाजपेयी सरकार को 'फील गुड’ का फार्मुला निगल गया। उसके बाद पुन: कांग्रेस की वापसी हुई। डॉ. मनमोहन सिंह छवि र्इमानदार पीएम के रूप में रही, जिसकी वजह से उन्हें दो कार्यकाल मिल गए, लेकिन आगे यह ज्यादा नहीं चल सका और गुजरात में मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य कर रहे नरेन्द्र मोदी साहसिक निर्णय लेने के कारण भाजपा सहित देश की जनता के बीच लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे।
कांग्रेस सरकार की विफलताओं से ऊब चुकी देश की जनता ने पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा और नरेन्द्र मोदी पर विश्वास किया। पिछले साढ़े चार वर्षों से केन्द्र में भाजपा की सरकार है। कुछ इसी तरह की परिस्थिति नवसृजित राज्य झारखंड में बनी। पूर्ण बहुमत के अभाव में बराबर त्रिशंकू सरकार बनने के कारण झारखंड की जनता ने भाजपा पर विश्वास किया और पार्टी ने राज्य की बागडोर रघुवर दास को सौंप दी। जमशेदपुर पूर्वी विधान सभा में 1995 से लगातार विधायक बनने का रिकार्ड वह बना चुके थे। उनके इस रिकार्ड के पीछे जनता का पूर्ण समर्थन था। समर्थन क्यों न हो, कभी पार्टी लीक से हटकर इन्होंने बस्ती विकास समिति का गठन कर यहां अतिक्रमित बस्ती में बसे लोगों को मालिकाना हक दिलाने हेतु लंबी लड़ाई लड़ी, विकास कार्यों को विधायक रहते गति दी।  परंतु सरकार के निर्णय के खिलाफ 6 दिसंबर को विपक्षी एकता का जो स्वरूप दिखा वह चौंकाने वाले हैं केन्द्र और राज्य में भाजपा की सरकार से जनता की उम्मीदें बढ़ गईं, लेकिन आज जनता निराश है, क्योंकि सरकार के कुछ निर्णय चौंकाने वाले हैं।
भारत की जनता ने भाजपा को राम मंदिर बनवाने, धारा-37० को समाप्त करने, समान नागरिकता का कानून लागू करने के लिए चुना था, लेकिन सरकार ने किया क्या? राम मंदिर निर्माण को कोर्ट के फैसले के सहारे छोड़ दिया, धारा-37० हटाने की बात को ठंडे बस्ते में डाल दिया और समान नागरिकता कानून की जगह हिंदू समुदाय को बांटने के लिए पिछड़ वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दे दिया। वहीं, जिस एससी/एसटी कानून से अन्य वर्ग प्रताड़ित था, और उच्चतम न्यायालय ने इसे समाजोपयोगी एवं तर्क संगत बनाया था, उसे और कठोर बनाने का बिल संसद से पास करा कर लागू करने की योजना चल रही है। बताया जा रहा है कि इस बिल में प्रथम सूचना पर चाहे वह झूठी ही क्यों ना हो, गिरफ्तारी का प्रावधान कर रहे हैं, वहीं झूठी रिपोर्ट लिखाने वाले पर कार्यवाही का कोई प्रावधान नहीं कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट द्बारा दिए गए निर्णय को वोट के लालच में उलट कर समाज विरोधी कार्य करने जा रहे हैं। क्या आप समझते हैं कि ऐसा करने से एससी/एसटी वोट भाजपा को मिलेगा या इनका वोट पूर्व निर्धारित पार्टियों को जाएगा या असंतुष्ट सामान्य वर्ग का वोट भाजपा से कट जाएगा।
अंग्रेजों वाली नीति 'बांटो और राज करो’ पर कांग्रेस चल कर के अपने अंजाम को जा चुकी है, अब वही नीति भाजपा अपना कर उसी तरफ जा रही है। इससे निश्चित ही
'माया मिले न राम’ वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। अच्छा होता सरकार अपना पूरा जोर लगाकर राम मंदिर बनवाती, धारा-37० हटवाती और पिछड़ा वर्ग, एससी/एसटी का चक्कर छोड़कर समान नागरिक कानून लाती। राजधर्म छोड़कर एक को मलाई, एक को पिटाई की नीति भारी पड़ जाएगी। घोषित योजनाओं के क्रियान्वयन पर बल देती, वास्तविक सतही परिस्थिति को पहचान कर देशहित में राष्ट्र धर्म सर्वोपरि है को चरितार्थ करती। कुल मिलकार असंतोष बढ़ रहा है। सरकार और संगठन को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।

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