Wednesday 23 January 2019

आंकड़ों का बजट

आकड़ों का बजट
देवानंद सिंह
वित्तीय वर्ष 2०19-2० के लिए मुख्यमंत्री ने 85,429 करोड़ रुपए का बजट पेश किया है। पहली बार सरकार ने 'बाल बजट’ भी पेश किया है। यानि इसके तहत बच्चों के कल्याण के लिए विश्ोष व्यवस्था की गई है। सरकार की तरफ से कोशिश की गई है कि बजट में हर वर्ग को शामिल किया जाए। सरकार इस बजट को जहां हर वर्ग के कल्याण का बजट मान रही है, वहीं विपक्ष का मानना है कि बजट में महज आंकड़ेबाजी की बाजीगिरी की गई है, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। लिहाजा, मुख्यमंत्री को यह भी साफ करना चाहिए था कि आखिर योजनाओं को धरातल पर कैसे सफल बनाया जाएगा?

सरकार के बजट की बात करें तो इसमें कोई शक नहीं है कि बजट में हर वर्ग को टच करने की कोशिश नहीं की गई है। किसानों, बुजुर्गों,बच्चों, महिलाओं, ग्रामीणों से लेकर युवाओं के कल्याण के लिए कुछ न कुछ किए जाने की व्यवस्था में बजट में की गई है। विकास के परिपेक्ष्य में देख्ों तो शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग व कृषि आदि क्ष्ोत्रों का भी पूरी तरह बजट में फोकस किया गया है। मेडिकल शिक्षा पर विश्ोष जोर दिया गया है। सरकार ने बजट में आकड़ेबाजी का गेम कर इसे चुनावी बजट बनाने में कोई भी कोर-कसर नहीं छोड़ी है, क्योंकि आगामी लोकसभा चुनावों की अग्निपरीक्षा से बीजेपी नीत सरकार को गुजरना है। 

इसमें शक नहीं है कि झारखंड आज तेज विकास दर के लिए देश के दूसरे राज्यों के लिए एक मिसाल है, लेकिन कई क्ष्ोत्रों की दयनीय जमीनी हकीकत से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। शिक्षा के प्राथमिक स्तर के हकीकत को समझना जरूरी-सा लगता है, क्योंकि किसी भी राज्य की असली पहचान उसकी शिक्षा व्यवस्था से होती है। अगर, शिक्षा व्यवस्था ही चरमराई हुई हो तो हम आकड़ों को पेश करते रहें, उससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। कुल मिलाकर कहने का सार यह है कि राज्य की प्राथमिक शिक्षा का हाल काफी बुरा है। भले ही, प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा में नामांकन अनुपात में वृद्धि हुई हो, लेकिन सच्चाई यह है कि प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा की गुणवत्ता की स्थिति बेहद दयनीय है। कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि 5वीं कक्षा के 4० फीसदी बच्चे ठीक ढंग से दूसरी कक्षा की किताब तक नहीं पढ़ पा रहे हैं। वहीं, दूसरी और तीसरी कक्षा के 5० फीसदी बच्चों को अक्षर ज्ञान तक नहीं है। ऐसे में, सवाल उठता है कि क्या स्कूलों में महज बच्चों की संख्या बढ़ाकर विकास होगा या फिर उनको मिलने वाली शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाकर। सरकार योजनाओं का संचालन कर स्कूल, कॉलेजों में छात्रों की संख्या तो बढ़ा दे रही है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लिहाजा, बजट में इस तरफ फोकस किया जाना चाहिए था आखिर किस प्रकार शिक्षा की गुणवत्ता पर सुधार लाया जा सकेगा। वहीं, सरकार यह भी कहती है कि आने वाले दिनों में राज्य मेडिकल शिक्षा का हब बन जाएगा। राज्य में पांच नए हॉस्पीटल खोले जा रहे हैं, जिसमें तीन हॉस्पीटल तो बनकर तैयार हो गए हैं, लगभग डेढ़ हजार बच्चे आगामी दो वर्षों में डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर लेंगे। डेढ़ हजार महज आकड़ा है, लेकिन क्या सरकार इस तरफ भी कभी सोचती है कि ये छात्र अपने प्रोफेशन पर काम करने के लिए झारखंड को ही चुनेंगे या फिर दूसरे राज्यों का रुख करेंगे। ऐसा इसीलिए भी, क्योंकि जो पुराने मेडिकल कॉलेज हैं, उन पर तकनीकी कारणों से एमसीआइ की तलवार हर समय लटकी रहती है। सरकार को गिड़गिड़ाना पड़ रहा है कि गुणवत्ता सुधार लेंगे, पर बजट में इसका जिक्र न होना बेहद चिंताजनक है। युवाओं को कुशल बनाने की बात की गई है, लेकिन उनके शिक्षा के स्तर पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। स्किल मिशन फिलहाल निजी व सरकारी क्ष्ोत्रों के बीच लूट का स्रोत बनता जा रहा है, कहीं मॉनिटरिंग नहीं हो रही है। शिक्षा के साथ-साथ ग्रामीण स्वास्थ्य भी बहुत मायने रखता है। सरकार ग्रामीण स्वास्थ्य की बात तो करती है, लेकिन बगैर स्वास्थ्य कर्मियों का ध्यान दिए कैसे ग्रामीण स्वास्थ्य को सुधारा जा सकेगा, इस पर बात नहीं करती है। ऐसे में, इससे संबंधित योजनाएं कैसे सफल हो पाएंगी, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। मेडिकल कॉलेजों से डॉक्टर पढ़ाई कर निकल रहे हैं, लेकिन अपने ही राज्य में डॉक्टरों के पद खाली रह जा रहे हैं। विश्ोषज्ञ डॉक्टर दूसरे राज्यों के शहरों में जाने को लेकर लालायित नजर आते हैं। ऐसे में, सरकार कैसे ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की नैया पार लगाएगी, यह बड़ा सवाल है। बजट में स्वास्थ्य सुविधाओं को निचले स्तर तक पहुंचाने के लिए मोहल्ला क्लीनिक व मुख्यमंत्री बाइक योजना शुरू करने की घोषणा की गई है। लेकिन सवाल यह है कि पंचायत स्तर पर जो स्वास्थ्य केंद्र खोले गए हैं, उसकी स्थिति कब सुधरेगी, इसके लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। इस पूरी प्रक्रिया में यह बात सरकार को सोचनी पड़ेगी कि महज चुनावी बजट है, इसीलिए आकड़ों की बाजीगिरी कर जनता को उलझा देते हैं, इससे काम नहीं चलेगा, बल्कि योजनाओं को धरातल पर लाने के लिए सरकार को अपने अधीन मॉनिटरिंग सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए भी कड़े कदम उठाने होंगे।

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