Wednesday 6 February 2019

विधानसभा: घपलों का अड्डा

कड़वा सच...
  पावर के नशे में किस प्रकार कोई भी काम आसानी से किया जा सकता है, यह झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष व वहां तैनात रहे अधिकारियों से सीख सकता है। बशर्ते, सरकार व सरकारी अधिकारी राज्य के विकास की दलीलें देते रहें, लेकिन विधानसभा में कड़ी-दर-कड़ी जिस तरह के घपले सामने आ रहे हैं,  उसने सभी को हैरत में डाल दिया है।  उच्च पदों पर बैठे अधिकारी अपनी जेब भरने व अपने लोगों को फायदा देने के लिए कैसे नियमों को दरकिनार कर देते हैं, इसका बड़ा उदाहरण विधानसभा में हुई घपलेबाजी है।
 चाहे वह भत्तों के वितरण को लेकर बरती गई अनियमितता हो या फिर नियमों की अनदेखी कर बाहरी लोगों की भर्ती का मामला हो। वहीं, प्रोन्नति में आरक्षण के नियमों की अनदेखी से लेकर बिना अनुभव के लोगों को बड़ी जिम्मेदारी देने का मामला क्यों न हो। ऐसे मामलों की फेहरिस्त और भी लंबी है। इन घोटालों के सामने आने के बाद बजट सत्र बहुत हंगामेदार होने की प्रबल संभावना है। विपक्षी इन सब मामलों को लेकर जहां सरकार को घेरने की पूरी कोशिश करने की तैयारी में जुटे हुए हैं, वहीं सरकार किस प्रकार अपना बचाव करेगी, यह अपने-आप में बड़ा मुद्दा है।

गुरुदत्त दायित्व भत्ता
गुरुदत्त दायित्व भत्ते के वितरण में अनियमितता बरतने के लिए विधानसभा में तैनात अधिकारियों ने तो कमाल कर दिया। फेरबदल की ऐसी तरकीब निकाल डाली कि कुल 98 लाख रुपए का घोटाला कर डाला। दरअसल, इससे संबंधित पत्रावली में जहां-जहां अवर सचिव लिखा गया था, वहां पर अवर को वाइटनर के प्रयोग से मिटा दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि गुरुदत्त दायित्व भत्ता, जो अवर सचिव स्तर के अधिकारियों तक ही मिलता था, उसे सचिव स्तर तक कर दिया गया, क्योंकि सचिव के आगे लिखे अवर शब्द को वाइटनर से मिटा दिया गया। इस फेरबदल की वजह से लगभग 98 लाख रुपए का गलत तरीके से भुगतान अवर सचिव से अपर सचिव स्तर तक के अधिकारियों तक को किया गया। इस घाटाले की जांच में जुटी न्यायिक जांच आयोग ने तत्कालीन सचिव श्री अमरनाथ झा को दोषी माना है और उनसे 98 लाख रुपए वापस करने की मांग की गई है।



बाहरी लोगों की दी नियुक्ति
झारखंड विधानसभा सचिवालय में जमकर आरक्षण नीति का उल्लंघन भी किया गया और राज्य के बाहर के लोगों को नियुक्ति दी गई। ऐसा अधिकारियों ने अपने लोगों को भर्ती करने के लिए किया। झारखंड की आरक्षण नीति के अनुसार झारखंड राज्य से अलग किसी भी जाति एवं व्यक्ति को आरक्षण का लाभ देय नहीं है, लेकिन झारखंड विधानसभा सचिवालय में कुल 19 लोगों को गलत आरक्षण देकर नियुक्त कर दिया गया। इस मामले में खुलेतौर पर झारखंड राज्य के लोगों के अधिकारों का हनन किया गया, जबकि ऐसे पदों पर राज्य के लोगों का ही हक था। इनमें मुख्य रूप से निजी सहायक पद पर जैकी अहमद व संजय कुमार की नियुक्ति की गई। ये दोनों बिहार राज्य के निवासी हैं। यहीं नहीं, ओबीसी के तहत आरक्षण का लाभ देते हुए भी नियुक्तियां दी गईं। उसी तरह अनुसेवक में मुन्नी लाल सोरेन, प्रेमलता मरांडी, रेणु गुप्ता की तैनाती की गई। ये सब भी बिहार के रहने वाले ही हैं और इन्हें भी आरक्षण का लाभ देने के नाम पर तैनात किया गया। न्यायिक जांच आयोग ने जांच के क्रम में कुल 19 ऐसे लोगों को गलत तरीके से आरक्षण का लाभ देते हुए नियुक्त किया गया है, उन्हें बर्खास्त करने की अनुशंसा की है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसे लोगों का बर्खास्त करने का आदेश दिया है।


विज्ञापन सेवा शर्तों का उल्लंघन
घोटालों की फेहरिस्त में विज्ञापन सेवा शर्तों की अनदेखी का मामला भी जुड़ा है। असल में, यह मामला नियुक्ति के संबंध में निकाले गए विज्ञापन में सेवा शर्तों का खुलेआम उल्लंघन से जुड़ा हुआ है। हैरानी की बात यह है कि नियुक्ति के लिए भरे गए मूल आवेदन की छटनी में भी अनियमितता बरती गई। इसके तहत राजनेताओं के करीबी विधानसभा अध्यक्ष के क्षेत्र के लोगों को बहाल कर दिया गया। जैसे प्रतिवेदन के लिए नियुक्ति के लिए अशुलिपि की गतिसीमा संबंधी प्रभाव-पत्र नहीं रहने के बावजूद भी इंदर सिंह नामधारी के गृह जनपद पलामू के नौ लोगों का चयन कर दिया गया। आलम यह है कि राज्य विधानसभा में काम कर रहे 29 प्रतिवेदकों में 10 के पास आज तक आशुलिपि गतिसीमा, जो विज्ञापन में मांगी गई थी, उससे संबंधित प्रभाव-पत्र ही नहीं है और वे आज द्वितीय श्रेणी के अफसर बने हुए हैं। इस घपले में कई लोगों के नाम सामने आए हैं। और न्यायिक जांच आयोग ने नियुक्ति के लिए भरे गए मूल आवेदन की गलत छटनी करने वाले विधानसभा के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को बर्खास्त करने की अनुशंसा की है, इनमें संयुक्त सचिव राम सागर, रवीन्द्र कुमार सिंह, तेज नारायण पाण्डेय एवं श्री अहमद अप्सानो अंजुम आदि शामिल हैं, जिन्हें बर्खास्त करने की अनुशंसा की गई है। इसके इतर तकनीकी पदों पर ऐसे लोगों को बहाल कर दिया गया, जो संबंधित योग्यता ही नहीं रखते थे। जैसे प्रतिवेदक में 10 लोग, जिनका आशुलिपि संबंधित प्रभाव-पत्र है ही नहीं तथा 29 में से 12 लोगों को अशुलिपि में शुन्य अंक प्राप्त हैं, फिर भी उन्हें प्रतिवेदक के पद पर बहाल कर लिया गया, जबकि प्रतिवेदक का मुख्य कार्य आशुलिपि ही है।
उधर, झारखंड विधानसभा सचिवालय में कुल अनुसेवक के 199 तथा माली मेहतर फरर्स एवं दरबान के 92 पदों के लिए साक्षात्कार हुए, जिसमें अनुसेवक के कुल 199 पदों के लिए साक्षात्कार समिति के सभी पांचों सदस्यों द्वारा अलग-अलग दिए गए अंकों में वाइटनर लगाकर अंकों को बढ़वा दिया गया। मजे की बात यह है कि कुल 199 चयनित अनुसेवकों में से 101 तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के गृह जनपद के निवासी हैं। वैसे ही, पद्वति प्रतिवेदक तथा निजी सहायक की नियुक्ति हेतु साक्षात्कार लिया गया, लेकिन बिना किसी अनुभव वाले व्यक्ति को मन मुताबिक नंबर देकर उनका चयन किया गया।
प्रोन्नति को लेकर घपला
प्रोन्नति में आरक्षण के नियमों का पालन नहीं किए जाने वाले मामले ने भी सभी को हिलाकर रख दिया। हैरानी की बात यह है कि इसमें पात्रता सूची को ही ठीक ढंग से तैयार नहीं किया गया और मन चाहे लोगों को प्रोन्नति दे दी गई। आश्चर्यजनक बात यह है कि लगभग 18 साल बीत जाने के बाद भी झारखंड विधानसभा सचिवालय में कोई भी वरीयता सूची नहीं बनी है। झारखंड विधानसभा में किसी भी पद पर सरकार द्वारा निर्धारित प्रोन्नति में आरक्षण नियम का पालन नहीं किया गया। जैसे प्रतिवेदक में वरीय प्रतिवेदक के पद पर प्रोन्नति में चतुर्थ स्थान सामान्य श्रेणी के लिए होते हैं, लेकिन अनिल कुमार, जो ओबीसी श्रेणी में आते हैं, उन्हें सामान्य दर्शाते हुए प्रोन्नति दे दी गई। ठीक वैसी ही प्रक्रिया निजी सहायक आप्त सचिव की प्रोन्नति में भी अपनाई गई। वहीं, संजय कुमार को सामान्य दर्शाते हुए चतुर्थ स्थान पर प्रोन्नति दे दी गई, जबकि वह भी ओबीसी से आते हैं। अब जांच आयोग ने राज्य विधानसभा सचिवालय में दिसंबर 2004 से अब तक सभी पदों पर प्रोन्नत हुए अधिकारियों व कर्मचारियों को उनके मूल पद पर रखने करने की अनुशंसा की है, क्योंकि किसी भी परिस्थिति में उनकी प्रोन्नति जायज नहीं है। झारखंड विधानसभा नियमावली 2003 में किसी भी पद पर प्रोन्नति के लिए न्यूनतम कालावधि 2 वर्षों का उल्लेख है, लेकिन विधानसभा में लगभग कोई भी कर्मी, जो अधिकारी बन बैठे हैं, उन्होंने अपने किसी भी पद पर दो वर्षों की सेवा पूर्ण नहीं की है।
झारखंड विधानसभा सचिवालय में चतुर्थ एवं तृतीय श्रेणी के पद पर प्रोन्नति, जो समिति प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर होनी चाहिए थी, उसका उल्लंघन किया गया और तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी ने कुल 17 ऐसे लोगों को चतुर्थ श्रेणी एवं तृतीय श्रेणी में प्रोन्नति दे दी, जो किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा में बैठे ही नहीं और उनकी शैक्षिक योग्यता तृतीय संवर्ग पद के लायक भी नहीं थी। संचिका पर इंदर सिंह नामधारी द्वारा उनकी शैक्षणिक योग्यता को गौण करते हुए अनुभव के आधार पर कुल 17 लोगों को प्रोन्नति दे दी। जैसे कि अमीर दास तथा वीरेन्द्र कुमार। तृतीय श्रेणी में सहायक पद पर हुई समिति प्रतियोगिता परीक्षा में ये फेल थे, फिर भी उन्हें सहायक के पद पर प्रोन्नति दे दी गई। न्यायिक जांच आयोग ने अपनी जांच में पाया है कि जो तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के 17 लोगों को प्रोन्नति दी गई है, वह गलत है। यही नहीं, उन्हें डिमोट करने की अनुशंसा के साथ-साथ प्रोन्नति देने वाले अधिकारियों एवं अध्यक्ष को दोषी मानते हुए उन पर राज्यपाल से कार्रवाई की अनुशंसा भी की है।
                                                         क्रमश...

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