Wednesday 8 September 2021

आखिर सरकार का इतना महिमामंडन क्यों…..?

देवानंद सिंह

जब भी पत्रकारिता की बात आती है, इसे जनता की ताकत के रूप में देखा जाता है। जब शासन व प्रशासन में बैठे लोग जनता की बात नहीं सुनते हैं तो मीडिया ही एकमात्र माध्यम होता है, जिसके माध्यम से जनता अपनी बात रखती है, लेकिन जब मीडिया जनता की बात सुनने के बजाय केवल सरकार की बात करने लगे तो जनता किसके पास जाएगी, क्योंकि वर्तमान के जो हालात दिख रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि बहुत से मीडिया संस्थान अब जनता की आवाज रहने के बजाय सरकार की आवाज बन चुके हैं, उन्हें न तो आम जनता से सरोकार है और न ही किसानों के मुद्दों से सरोकार रहा, इसीलिए आज मीडिया पूरी तरह सरकार के हाथ की कठपुतली बनकर रह गई है।



 देश की मीडिया जिस तरह बंटी हुई है, उससे लगता है कि निकट भविष्य में मीडिया के बीच यह लड़ाई ऐसी ही चलती रहेगी। मुज्जफरनगर में हुए किसान आंदोलन के दौरान भी हमने यही दिखा, मीडिया का एक ग्रुप किसानों की बात करता रहा और दूसरा ग्रुप सरकार की बात करता रहा। हर बार सरकार के ही पक्ष की बात करने वालों के खिलाफ खूब आक्रोश भी दिखा। किसानों ने एक महिला पत्रकार के यहां पहुंचने पर गोदी मीडिया वापस जाओ के नारे भी लगाए। वास्तव में, देश में आज मीडिया की बड़ी ही अजब स्थिति हो गई है, एक जमाना था, जब पत्रकारों को खूब सम्मान मिलता था, लेकिन आज पत्रकारों को कोई सम्मान नहीं देना चाहता, बल्कि आज पत्रकारों को दलाल की उपाधि दी जाने लगी है। इसके लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि खुद को बड़ा पत्रकार मानने वाले पत्रकार ही जिम्मेदार हैं, क्योंकि आज पत्रकार राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं से ज्यादा कुछ और काम नहीं कर रहे हैं। जब पत्रकारों को सरकार की कमियों को उजागर करने का काम करना चाहिए था, तब ये लोग सरकार का महिमामंडन करने में जुटे हुए हैं। जब ऐसे पत्रकारों को यह समझने की जरूरत है कि सरकार का चुनाव तो अच्छे काम करने के लिए ही किया जाता है, ऐसे में जब आपको सरकार के खराब कामों की चर्चा करनी चाहिए, तब भी पत्रकारिता जगत के बड़े बड़े लोग हर बार सरकार को बचाने में जुटे रहते हैं और ठीक यही काम राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं का भी रहता है। चैनलों पर होने वाले डिस्कशन के दौरान भी हम देखते हैं कि चैनलों का एजेंडा भी सरकार के हिसाब से सेट होता है। यही वजह है कि कुछ चंद पत्रकारों की वजह से न केवल सरकार लगातार पत्रकारों पर हावी हो रही है, बल्कि पत्रकारिता का भविष्य भी विनाश की तरफ बढ़ रहा है। बहुत सारे संस्थान बंद हो चुके हैं, जिसकी वजह से हजारों पत्रकार सड़क पर पहुंच चुके हैं। यहां सवाल यह है कि जब पत्रकार ही एकजुट नहीं हैं तो सरकार उसका फायदा तो उठाएगी ही। लेकिन, इस वक्त सरकार का महिमामंडन करने वाले पत्रकार यह न भूले कि जब सरकार बदलेगी तो उन्हें भी नई सरकार के प्रकोप को झेलने के लिए तैयार रहना होगा।

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